सोमवार, 7 नवंबर 2016

चाल,चलन,चरित्र

                    आज देश में चारित्रिक अराजकता है।नव युवक/युवती  राजनेता , सामजिक नेता  को आदर्श मान कर अपना चरित्र  निर्माण करते हैं। परन्तु आज देश में कोई भी व्यक्ति ऐसा दिखाई नहीं दे रहा है जिसे नई पीढ़ी आदर्श मान सके। पहले स्कूलों में चरित्र निर्माण के उद्देश्य से नैतिक शिक्षा  दी जाती थी, जिसमे महान  व्यक्तियों की जीवनियाँ ,कुछ मूल्यपरक कहानियाँ होती थीं।उस से बच्चों में जीवन के  उपयोगी मूल्यों का ज्ञान होता था और वे उन मूल्यों  को अपने जीवन में पालन कारने की प्रयत्न करते थे। परन्तु  आज मूल्यपरक शिक्षा की हल्ला तो होती है परन्तु कार्य नहीं होता। आज कल किसी ने कुछ कहा उसको लेकर अलग अलग व्यक्ति .अलग अलग अर्थ निकल  रहे है। इसे देखकर बचपन में पढ़ी हुई एक कहानी याद आ गई।
                    प्राचीन काल में प्रकाण्ड ज्ञानी एक महर्षि थे।उनके ज्ञान की चर्चा देव ,मानव ,दैत्य, सभी में  होती  थी।सभी उनसे शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे।उनका नाम था महर्षि यज्ञवल्क। एक दिन  महर्षि यज्ञवल्क के पास  एक- एक कर तीन बालक शिक्षा ग्रहण करने  के लिए आये। पहला बालक एक देव कुमार था। देव कुमार महर्षि के पैर छू कर प्रणाम किया। .तत्पश्चात हाथ जोड़कर कहा ,"गुरुदेव ! मै आपसे शिक्षा प्राप्त करने  की अभिलाषा लेकर आया हूँ। आप मुझे शिष्य के रूप में स्वीकार कर मुझ पर अनुकम्पा करें । ".
                   देव कुमार की आग्रह को देख कर महर्षि ने कहा "तथास्तु ". और अन्य शिष्यों ने देवकुमार को लेकर गुरुदेव द्वारा निर्दिष्ट स्थान पर उसको पहुचां दिया। उसके रहने और पड़ने की ब्यवस्था कर दी।
                   थोड़ी देर बाद आया एक मानव बालक।उसने भी महर्षि  के पैर छू कर प्रणाम किया और कहा, "गुरुदेव मैं आपसे शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा लेकर आया हूँ।आप मुझे शिष्य बनाकर मुझ पर कृपा करे  " महर्षि ने पूर्ववत सर  हिलाया और कहा ,"तथास्तु ". तब मानव पुत्र भी यथा स्थान जाकर अपना अध्ययन शुरू कर दिया ।
                   अंत में  आया एक दानव पुत्र। उसने महर्षि को प्रणाम करने बाद कहा ,"गुरुदेव मैं आपका शिष्य बनना चाहता हूँ। आप मुझे शिष्य के रूप में ग्रहण करें। गुरु देव ने उसको भी "तथास्तु " कहा और तीनो शिष्य अध्ययन में रत हो गए।
                   देवता में बुद्धि तीक्ष्ण  होती है। कोई भी विषय को हो जल्दी समझ जाते है। यहाँ भी वही  हुआ। कुछ दिनों के बाद सबसे पहले देवकुमार अपनी पढाई बहुत जल्दी समाप्त कर महर्षि के पास आकर प्रणाम किया और कहा , "गुरुदेव मैंने आपके दिए हुए  वेद , पुराण आदि सब शास्त्रों का अध्ययन पूरा कर लिया है। आप मुझे उपदेश दीजिये।"
                   गुरुदेव मुस्कुराते हुए देवकुमार को देखा और कहा ," द ".और चुप होगये। देव कुमार को कुछ भी समझ में नहीं आया । वह सोच रहा था, गुरुदेव बहुत अच्छी अच्छी बातें बताएँगे, जिसे वह ध्यान लगाकर सुनेगा और जीवन में उसका पालन करेगा।लेकिन यह क्या गुरुदेव के मुहँ से केवल एक शब्द "द " और कुछ नहीं? लेकिन दुरुदेव के मुहँ से कोई निरर्थक शब्द नहीं निकल सकता ,यही सोचकर वह   "द "  का अर्थ समझने की कोशिश करने लगा। थोड़ी देर सोचने के बाद उसने कहा ,"गुरुदेव मैं आपके उपदेश  का अर्थ समझ गया।"
 गुरुदेव ने कहा ,"हूँ  .  ....., बताओ।"
  देवकुमार ने कहा ,  " 'द'  का अर्थ 'दमन'। "
गरुदेव ने "हाँ " में सिर हिलाया और देवकुमार प्रणाम कर प्रस्थान किया।
                    मनुष्य में देवतायों से कम परन्तु दैत्यों से अधिक बुद्धि होती है।इसलिए मानव पुत्र ने भी जल्दी ही अपनी पढाई समाप्त कर गुरुदेव के पास आया, प्रणाम किया और निवेदन किया ," गुरुदेव मैंने सभी वेद पुराण आदि शास्त्रों का अध्ययन कर लिया है, मुझे उपदेश दीजिये।"
गुरुदेव ने पूर्ववत मुस्कुराया और कहा ,"द " और चुप हो गए।  मानव को आश्चर्य हुआ।सोचने लगा - गुरुदेव का यह कैसा उपदेश? परन्तु यही सोचकर की दुरुदेव के मुहँ से जो निकला है उसका कुछ तो अर्थ होगा ,वह सोचने लगा। कुछ देर बाद उसने कहा , "गुरुदेव आपके उपदेश का अर्थ मेरे समझ में आ गया है।"
गुरुदेव ने कहा ,"बताओ ",
मानव ने कहा ," 'द' का अर्थ है 'दान' "
गरुदेव ने फिर हाँ में सिर हिलाया और मानव प्रणाम कर आशीर्वाद लिया  और चला गया।
                  अन्त में दानव आया।उसने भी प्रणाम करने के बाद कहा," गुरुदेव मुझे उपदेश दीजिये।"
गुरुदेव ने वही शब्द फिर से कहा , "द ".
दानव भौंचक्का रह गया।उसकी मोटी बुद्धि में कुछ नहीं आया।  यह सोचकर की गुरुदेव जो कुछ बोलते हैं उसका कुछ न कुछ अर्थ जरुर होता है। वह सोचता रहा ,अंत में उसने "द " का अर्थ समझ लिया। उसने ख़ुशी ख़ुशी कहा, "गुरुदेव मुझे आपके उपदेश का अर्थ समझ में आ गया।"
गुरुदेव ने कहा ,"बताओ "
" 'द ' का  अर्थ है  'दया' " दानव  ने कहा।
गुरुदेव ने  मुस्कुराया । दानव प्रणाम किया और चला गया।
                उन तीनो शिष्यों के जाने के बाद आश्रम में उपस्थित अन्य शिष्यों ने  उत्सुकता से प्रश्न किया , "गुरुदेव आपने तीनों को एक ही उपदेश दिया। परन्तु उन तीनों ने अलग अलग उतर दिया, दमन ,दान और दया, और अपने तीनो उत्तर को सही बताया यह कैसे हो सकता है?
गुरुदेव ने कहा, "वत्सों किसी भी शब्द का एक अर्थ नहीं होता ,अनेक अर्थ होते है। यह व्यक्ति के सोच, उसकी समझ ,उसका परिवेश और जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण ही निर्धारित करता है कि वह कौन सा  अर्थ समझेगा। देश , काल, परिवेश के अनुसार शब्द का अर्थ बदलता है।" गुरुदेव ने आगे कहा ," देवता स्वभाव से भोग विलासी होते हैं। इन्द्र सुख के लिए कुछ भी कर सकते है।यही इन्द्रियां उन्हें सुख देती है और दुःख भी। इसलिए देवकुमार ने सोचा कि गुरुदेव ने मुझे इन्द्रियां दमन करने के लिए कहा। इसलिए उसने 'द ' का अर्थ 'दमन' बताया।"
 मानव के बारे में गुरुदेव ने बताया ," मानव स्वभाव से संचयी होते हैं। उसे जितना चाहिए  उससे ज्यादा संग्रह करना चाहता है। जीवन भर इतना संग्रह कर लेता है कि मृत्यु तक उसका उपयोग भी नहीं कर पाता।  इसलिए मानव  ने सोचा कि जिसका हम उपयोग नहीं कर सकते उसका 'दान' करने के लिए गुरुदेव ने कहा है।यही सोचकर मानव ने 'द ' का अर्थ 'दान' कहा है।"
                 "दानव स्वभाव से क्रूर ,निर्दयी होते है।मारपीट में विश्वास  रखते हैं। "द " से उसने सोचा कि गुरुदेव ने उसे दुसरो पर "दया " करने के लिये कहा है। इसलिए उसने 'द ' का अर्थ 'दया ' बताया। "

इस प्रकार महर्षि यज्ञवल्क ने शिष्यों को समझाया कि  परिवेश, पारिवारिक संकृति बच्चों के चरित्र निर्माण, उसकी सोच को दिशा देने में  महत्वपूर्ण भूमिका निभाते  हैं।


(अगले अंक में देखिये: - हमारे देश में अलग अलग परिवेश से आये नेता गण के चाल ,चलन , चरित्र  "द " के संदर्भ में।)

कालीपद "प्रसाद "

                    




                
















13 टिप्‍पणियां:

अशोक सलूजा ने कहा…

आप की कथा में आनंद और ज्ञान दोनों का समावेश है ......
आभार!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

पारिवारिक परिवेश ही चरित्र निर्माण करने और सोच की दिशा देने में महत्वपूर्ण
भूमिका निभाते है ,,,,,

RECENT POST शहीदों की याद में,

Madan Mohan Saxena ने कहा…

VERY NICE STORY.

Anita ने कहा…

रोचक व संदेशप्रद प्रस्तुति..

Sadhana Vaid ने कहा…

बहुत ही रोचक कथा ! अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी ! वह और भी होगी ऐसा अनुमान है क्योंकि हम अपने नेताओं के चहरे उसमें देख सकेंगे ! आभार आपका !

Shalini kaushik ने कहा…

बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक रोचक प्रस्तुति बेटी न जन्म ले यहाँ कहना ही पड़ गया . आप भी जाने मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ?

Jyoti khare ने कहा…

जीवन के सही रूप को दर्शाती
बहुत कहीं गहरे तक उतरती ------बधाई

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

प्रेरक रचना !!

Asha Lata Saxena ने कहा…

बहुत सुन्दर तरीके से लिखी गयी सारगर्भित कथा बहुत अच्छी लगी |
आशा

Unknown ने कहा…

thanks for providing interesting and useful information ant that too in our hindi language.

MOUTH WATERING RECIPES OF INDIA

Unknown ने कहा…

VERY NICE STORY.
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Unknown ने कहा…

नव वर्ष की मंगलकामनाएं
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कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

sabhi ko dhanyvaad