विविधा -2
कवि ,कृषक,बनिक, वकील और डॉक्टर
कभी नहीं होते हैं वे अपने काम से रिटायर।
कर्मवीर हैं ये कर्म करते रहते हैं जीवन भर
थमते हैं तब ,जब जाते हैं दुनियां के पार।।
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बह गए कितने पानी बनकर उफनती धारा,
चुप चाप खड़ा है वहीँ के वहीँ , नदी के दो किनारा।
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इश्क कमबख्त छुत की बिमारी है ,तू इधर उधर मत देख
हो जाता है किसी में होता देख ,कभी किसी को करता देख।
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रात कितनी भी लम्बी हो , कितना गहरा हो अँधेरा
हिम्मत का हाथ थामे रहो ,निश्चित है ,आएगा सबेरा ।
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बहुरूपिये से भरी है दूनियाँ, गर असली नकली को नहीं पहचानोगे
वजूद मिट जायगा ,गर दोस्त छोड़, कातिल को गले लगाओगे ।
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कहता है तू घमंड से , ख़ुदा से तेरा इश्क है बेइन्ताह
क़ाफ़िर भी ख़ुदा की खुदाई है ,खुदाई से क्यों नफरत है ?
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मज़हब के नाम से इन्सान को बाँटा ,कोई बात नहीं ,
क़ाफ़िर से इश्क़ करेगा तो आसमां ख़ुश होगा।
शब्दार्थ :आसमां = ख़ुदा
रचना :
कालीपद "प्रसाद"
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14 टिप्पणियां:
रात कितनी भी लम्बी हो , कितना गहरा हो अँधेरा
हिम्मत का हाथ थामे रहो ,निश्चित है ,आएगा सबेरा ।.... बहुत सुन्दर भाव...
मेरी नई पोस्ट "जरा अज़मां कर देखिए" ...
बहुत सुन्दर
रात कितनी भी लम्बी हो , कितना गहरा हो अँधेरा
हिम्मत का हाथ थामे रहो ,निश्चित है ,आएगा सबेरा ।
बहुत सुंदर एवँ सार्थक पंक्तियाँ कालीपद जी ! बहुत बढ़िया लिखा है !
वाह ... बेहतरीन
बहुत सटीक विचार
सुन्दर
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.
sundar...sateek rachna
शानदार प्रस्तुति
बहुत खूब सर |
बहुत सुन्दर चिंतन...
रात कितनी भी लम्बी हो , कितना गहरा हो अँधेरा
हिम्मत का हाथ थामे रहो ,निश्चित है ,आएगा सबेरा ...
सच कहा है .. सवेरा जरूर आता है ... सभी छंद सार्थक सन्देश देते हैं ...
बहुत सुंदर सार्थक रचनाऐ ,,,
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