चमन में यहाँ से वहाँ घूमता फिरता रहा हूँ मैं,
हर जगह तुम्हे ढूंढा पर तुम कहीं न मिली।
देखा चम्पा, चमेली ,गुलाबी ,नरगिसी रातरानी
सबके चहरे अलग अलग, पर खुशबु थी तुम्हारी।।
आई जब सामने मेरे ,मैं झिझका ,तुम झिझकी
मैं पलक न झपक सका , पर नज़र थी नीची तेरी
नज़र उठाके ज्यों देखा मुझको , धड़कन बढ़ गई
न तुमने कुछ कहा न मैंने कुछ कहा ,निगाह२ में बात हो गई।।
यादों की दुनियाँ में तो तुम थी, रहोगी सदा
यूँ मुलाक़ात तुमसे राह में भी, होगी यदा कदा।
एक झटके में बे -वफा ,तूने दामन हमसे छुड़ा लिया ,
और दामन छोड़ दिया ,ये इलज़ाम भी मुझ पर लगा दिया।
मुझे मंजूर है इलज़ाम तुम्हारा ,पाक साफ़ हो दामन तुम्हारा
इल्ज़ाम की बारिश हो मुझपर ,अश्क बारी न हो तुम्हारा।।
(सभी चित्र गूगल से साभार )
कालीपद "प्रसाद"
©सर्वाधिकार सुरक्षित
9 टिप्पणियां:
अतिसुंदर भावएक , झटके में बे -वफा ,तूने दामन हमसे छुड़ा लिया ,
और दामन छोड़ दिया ,ये इलज़ाम भी मुझ पर लगा दिया।
मुझे मंजूर है इलज़ाम तुम्हारा ,पाक साफ़ हो दामन तुम्हारा
इल्ज़ाम की बारिश हो मुझपर ,अश्क बारी न हो तुम्हारा।।
सुंदर रचना ! मन की सच्चाई और सद्भावना की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !
बहुत सुन्दर...
एक झटके में बे -वफा ,तूने दामन हमसे छुड़ा लिया ,
और दामन छोड़ दिया ,ये इलज़ाम भी मुझ पर लगा दिया। इश्क में ऐसा ही होता है,और इश्क करने वाले इन सब से वाकिफ भी होते ही हें,सुन्दर प्रस्तुति जनाब
बहुत सुन्दर रचना ,,
बहुत सुंदर रचना
ऐसी रचनाएं कभी कभी ही पढने को मिलती है
sundar...bhavpurn rachna
नज़र उठाके ज्यों देखा मुझको , धड़कन बढ़ गई
न तुमने कुछ कहा न मैंने कुछ कहा ,निगाह२ में बात हो गई।।--------
प्रेम के पारदर्शी रूप का बहुत सुंदर चित्रण
सादर
आग्रह है
गुलमोहर------
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