स्वाधीनता के बाद राष्ट्र के निर्माताओं ने भारत के संविधान में यह विकल्प खुला रखा था कि आवश्यकतानुसार देश हित में और अच्छे साफ़ सुथरा प्रशासन केलिए यदि जरुरत पड़े तो संविधान के धारायों में परिवर्तन किया जा सके या नई धारा जोड़ा जा सके.। परन्तु इस विकल्प का उपयोग अब दोषी ,अपराधियों को बचाने में किया जा रहा है . जन लोकपाल बिल जो दोषियों के दण्ड देने के लिए बनना था उसे लटका दिया गया और दोषियों को बचाने का बिल एक दिन में पास हो गया.।न्यायालय के आदेश को निरस्त करने के लिए इसका उपयोग किया जा रहा है.। चुनाव आयोग,आर टी आई जैसे संवैधानिक संस्थाओं को पंगु बनाने में किया जारहा है.। क्या यह संविधान द्वारा दिया गया अधिकार का दुरूपयोग नहीं है ? भ्रष्टाचार समाप्त कैसे होगा जब भ्रष्टाचारियो को सुरक्षा मिलेगा ? सरकार का नियंत्रण न मूल्य वृद्धि पर है न रुपये की मूल्य पर है। देश सुधरेगा तो कैसे ? देश किधर जा रहा है ?
कालिपद "प्रसाद "
कालिपद "प्रसाद "
20 टिप्पणियां:
aapane sach kaha chintaniy
जो लोग बबूल के बीज बोते हैं, उसे पानी देते हैं, उन्हें आम तो उस वृक्ष पर नहीं मिलेंगे.
हम गलत लोगों को चुनते है तो उनसे उम्मीद कैसे रखे।।
हम गलत लोगों को चुनते है तो उनसे उम्मीद कैसे रखे।।
unhe is sai kya matlab...sach kaha apne
सुंदर रचना...
आप की ये रचना शनीवार यानी 24/08/2013 के ब्लौग प्रसारण में मेरा पहला प्रसारण पर लिंक की गयी है...
इस संदर्व में आप के सुझावों का स्वागत है।
कहाँ जाकर रुकेगा पता नही..
देश हमारा, हमारे आज के नेताओं की मर्ज़ी के मुताबिक तयशुदा डगर की ओर ही अग्रसर है
बस एक आम नागरिक ही इस पर चलने से घबरा रहा है ????
चिंतनीय!
सटीक विश्लेषण कालीपद प्रसाद जी प्रभावी लेखन।
सच और खरी बात
जागरूक करती पोस्ट
desh ki sthiti vakai chinta janak hai pr kr hi kya sakate hain ......gore angrej gaye aur ab kale angrej shashan kr rhe hain .....desh aajad kahan hua ? ham tb bhi gulam the hm aj bhi gulam hain
कृष्ण-जन्माष्टमी की अग्रिम वधाई ! मित्र आज गद्य में विचार अभिव्यक्ति को रोक नहीं पाया | दुराचार का ऐसा भीषण स्वरूप जोअध्यातं में पैठ गया है,एक ही सन्त (तथाकथित) के आचरण में पाया गया है , मन को हिला कर रख गया है |
वास्तव में यह बेचैनी की बात ही है कि देश उस क्षेत्र में भी बदनाम हो रहा है जिसमें जगद्गुरु रहा है !
बहुत खूब लिखा है। शुक्रिया आपकी टिपपणी का।
अजी कैसी सरकार।
बे -असर सरदार ,
तुम कहते सरकार।
प्रजा तंत्र में ऐसे ही लोगों की है दरकार।
बहुत सटीक प्रस्तुति...
मौका तो हमें मिलता है पांच साल में एक बार। काश कि हम ज्यादा से ज्यादा संख्या में मतदान करें और बेहतर लोग चुनें।
जहाँ ले जा रहे हैं उधर को ही जा रहा है !
उन्हें जनता से बधाई की अपेक्षा भी नही है उन्हें तो वोट चाहिेय़े। बधाई देने के लिये तो उनके अपने ही बहुत है।
उन्हें जनता से बधाई की अपेक्षा भी नही है उन्हें तो वोट चाहिेय़े। बधाई देने के लिये तो उनके अपने ही बहुत है।
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