मंगलवार, 19 मार्च 2013

सद्वुद्धि और सद्भावना का प्रसार

 

 

चित्र गूगल साभार 

 

 

 

                    रोहित  अपने घर में सत्यनारायण की कथा करवा रहा  था. पति पत्नी और दो बच्चे, एक बेटी सुशीला और बेटा शंकर के साथ रहते थे। सुशीला नौवीं कक्षा में पढ़ती थी और शंकर सातवीं में। स्कूल की छुट्टी थी इसलिए सुशीला और शंकर ने अपने अपने कुछ दोस्तों को भी पूजा के लिए बुला लिया था।

                      पूजा का  आयोजन पूरा कर पंडितजी कथा  सुनाने  लगे।  सबलोग  तन्मय होकर कथा सुनने लगे। हर अध्याय के समाप्ति के बाद पंडित जी  बोलते "बोलो सत्यनारायण भगवान की जय " और पूरा माहोल जय जयकार से गूंज उठता। इस प्रकार कथा का समापन हुआ।कथा समाप्ति के बाद हवन  का आयोजन किया जा रहा था। पंडित जी हवन  की तैयारी कर रहे थे तभी  शंकर ने उत्सुकता वस पूछ लिया , "पंडित जी इस हवन  से क्या होता है ?"

पंडित जी ने कहा ,"हवन के द्वारा देवताओं को खुश करने के लिए अग्नि देव के माध्यम से उनको भेंट अर्पण किया जाता है।"

शंकर ने फिर पूछा ,"हवन में तो सब वस्तु जलकर राख हो जाता है फिर  भगवान् को कैसे मिलता है ?"

'देवता कोई भी चीज पञ्च तत्व के रूप में स्वीकार करते है।   अग्निदेव इसे जलाकर पंचतत्व में परिवर्तन कर देते हैं।तब सूक्ष्म रूप में यह ईश्वर के पास पहुँचता है। तुमने विज्ञानं में पढ़ा है न ? कोई भी चीज को नष्ट नहीं किया जा सकता ,केवल उसका रूप परिवर्तन होता है। अग्निदेव इन वस्तुयों का रूप बदल देते हैं।"    

शंकर के दोस्त ने पूछा ,"हवन  नहीं करेंगे तो भगवन खुश नहीं होंगे ?"

'भगवान को कुछ अर्पित करना चाहिए भगवान खुश होते है।" पंडित जी ने कहा .

शंकर के दोस्त ने फिर कहा," मेरे दादा जी तो कहते है कि भगवान को केवल भक्तों  की   श्रद्धा और भक्ति चाहिए और कुछ नहीं चाहिए।उनके पास सब कुछ है। वही हम को सब कुछ देते हैं।मनुष्य उनसे ही मांग मांगकर लेते है।फिर उनको घी, नारियल  ,केला इत्यादि क्यों चाहिए ?"    

पंडित जी ने कहा ,"यह सब नियम है ,यह अब तुम्हारे  समझ में नहीं आएगा। बड़े हो जाओ   समझमे आ जायेगा।"

इसपर सुशीला बोली ,"पंडित जी ! हमारे साइंस मैडम कहती है कि जो बात समझ में न आये , उसे बार बार पूछो जब तक समझ में न आ जाये, अन्यथा बड़े होकर तुम्हारे दिमाग में संदेह बनी रहेगी और तुम कभी भी सही निर्णय नहीं ले पाओगे।"

बच्चों के प्रश्न से पंडित जी असहजता महसूस कर रहे थे। इसे देखकर रोहित ने कहा ,"बच्चों ! पंडित जी तुम्हे हवन  के बाद सब कुछ विस्तार से बताएँगे। अब उन्हें हवन  करने दो। बच्चे मान गए। 

                  पंडित जी ने हवन शुरू किया।  रोहित ,पत्नी के  साथ हवन करने बैठ गये । पंडित जी मंत्र पढ़ते गए और वे पति पत्नी हवन  के सामग्री हवन कुंड  में डालते गए। हवन समाप्त हुआ तो पंडित जी ने कहा कि जो सामान  बचे हुए है एवं पूजा के फुल पत्तियों आदि सब  इकठा कर पानी में बहा  देना।

                  इसपर सुशीला ने कहा ,"पंडित जी इस से तो पानी गन्दा हो जयेगा। हमारे देश की सभी प्रमुख  नदियाँ  गंगा ,यमुना ,नर्मदा ,कावेरी ,गोदावरी  इसके वजह से प्रोदुषण से जूझ रही है। सरकार कोशिश कर रही है कि  इन नदियों को प्रोदुषण से मुक्त किया जाय परन्तु प्रतिदिन पूजा के सामग्री इस प्रकार नदी में फेंका जायेगा तो नदी का पानी साफ कैसे रह पायेगा ? इनको नष्ट करने का कोई दूसरा उपाय क्यों  नहीं सोचते ?"

पंडित जी ने कहा, "बेटा यह नियम है। पूजा का सामग्री पानी में ही बहा दिया जाता है। "

                  सुशीला ने कहा,"पंडित जी!यह नियम तो इन्सान ने ही बनाया है न? पौराणिक काल में जनसंख्या कम थी। पूजा पाठ केवल मुनि ऋषि एवं कभी कभी  राजा ,महाराजा ही हवन कराते थे। उस समय पानी का प्रोदुषित होने का इतना खतरा नहीं था। अब परिस्थिति भिन्न है। परिस्थिति के अनुसार विधि विधान में परिवर्तन होना चाहिए ना? आज खान पान ,परिधान सब बदल रहा है तो पूजा के विधि विधान में क्यों नहीं ?"

बेटी की बात रोहित को तर्क संगत  लगी  और अच्छी  भी लगी । उसने कहा ,"पंडित जी सुशीला ठीक  कह् रही है, इससे तो  पानी प्रोदुषित हो जायेगा। क्यों न हम इसे जमीन  में गड्ढा खोदकर उसमें गाड़  दें या फिर इस अग्निकुण्ड के हवाले कर दे ,पूरा जलकर राख  हो जायेगा?"

पंडित जी पढेलिखे थे ,पर्यावरण का महत्त्व समझते थे ,इसलिए उन्होंने उनकी बात  पर  सहमती जताई । कहा ,"आप जैसे उचित सम्झे, करें। " पंडित जी बडप्पन दिखाते हुए सुशीला की तारीफ की और पूछा ,"बेटी तुमने इतनी अच्छी २ बातें कहाँ से सीखी ?"  'हमारी साइंस मैडम ने बताया " सुशीला ने जवाब  दिया। पंडितजी ने फिर पूछा ,"मैडम ने और क्या क्या बताया ?"

                     सुशीला कहने  लगी  ,"मैडम ने बताया कि हमारे शारीर तभी स्वस्थ रह सकता है जब हम हवा , पानी , धरती को स्वस्थ रखेंगे। विज्ञानं के अनुसार हमारे शरीर बहुत से तत्व जैसे लोहा, सोडियम , कार्बन, कैलसियाम  ,ओक्सिजेन .....इत्यादि ,न जाने कितने तत्व से बना हुआ है। परन्तु धार्मिक दृष्टि कोण से  पञ्च तत्त्व से बने हुए है। जल, वायु ,मृत्तिका ,अग्नि और आकाश। इनमे जल ,वायु और मिटटी अर्थात धरती बहुत महत्वपूर्ण हैं। शुद्ध पानी पियेंगे तो शारीर निरोग रहेगा।  शुद्ध वायु होगा तो शरीर स्वस्थ रहेगा।मिटटी जिसमे  हमारे सभी खाद्य द्रव्य  ,.......चावल,गेहूं ,शाक शब्जी पैदा होता है ,यदि शुद्ध होगा तो इन उपजों में विकृतियाँ नही आएगी। हम स्वस्थ और निरोग उपज खायेंगे तो हम भी स्वस्थ रहेंगे। इसलिए मिटटी को भी प्रोदुषण से बचाना चाहिए।  हमारी मैडम  आगे कहती है कि नदी के पानी को शुद्ध रखने के लिए यह जरुरी है कि इसमें पूजा तथा श्राद्ध के सामग्री ,मृत जानवर  या शव न फेंका जाय। इसपर  पूर्ण रूप से रोक लगनी चाहिए। फेक्टरियों से निकलने वाली विषाक्त पदार्थ तो नदी में कभी नहीं  फेंकना चाहिए। नदियों से मछली पकड़ना बंद होना चाहिए। मछलियां  पानी को स्वच्छ  रखती है। मिटटी और वायु को शुद्ध रखने के लिए सबसे अच्छा तरीका है अधिक अधिक पेड़ लगना। इस से वातावरण में अधिक से अधिक प्राणवायु फ़ैल जायगा और कार्बन डाई ऑक्साइड कम हो जायेगा। पृथ्वी ,जल,वायु  हमारे लिए स्वस्थ की कुंजी है।इन्हें स्वस्थ रखेंगे तो हम भी स्वस्थ रहेंगे।"

                " बहुत अच्छी बाते बताई तुम्हारे मैडम ने। अब से मैं भी किसी जजमान को होम या पूजा के सामग्री पानी में बहाने के लिए नहीं कहूँगा। सड़ने वाले सभी सामग्री को जमीं में गाड देने केलिए कहूँगा।बांकि सभी को जला  देने लिए कहूंगा।"   पंडित जी ने कहा।

                  रोहित को लगा पूजा सफल हुआ।  चारो तरफ सद्वुद्धि  और सद्भावना का प्रसार हो रहा था ,यह एक अच्छा लक्षण है।उस  ने खुशी खुशी  सब को प्रसाद  वितरण किया। बच्चे एवं अतिथि प्रसाद लेकर ख़ुशी ख़ुशी विदा हो गए।

 

** पुराने रीति रिवाज जो आज के सन्दर्भ में हानिकारक  या अर्थहीन है बदल  देना ही श्रेयष्कर  है। 

 

कालीपद "प्रसाद "

सर्वाधिकार सुरक्षित  

  

                       

 

 

 

 

26 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

अति उत्तम है आदरणीय-
आभार आपका-

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही सुन्दर ख्याल,रीति-रिवाज के चक्कर में पर्यावरण को नही भूलना चाहिए.

सुज्ञ ने कहा…

हानिकारक रूढ़ियों को बदल देना ही श्रेयस्कर है।

सुज्ञ: तनाव मुक्ति के उपाय

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वाह...!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आभार!

Unknown ने कहा…

sundar khayalt prakiti ke prati aastha avm paryavaran ke prati jagrujta hamara naitik dayeetw hai

Jyoti khare ने कहा…

सहज
सुंदर सार्थक रचना
बधाई

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

समय के साथ नए विचारों को अपनाना ही होगा ......

Dr. pratibha sowaty ने कहा…

v nc sr

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच कहा ... ऐसी बातें बदल देना ही उचित ...

Alpana Verma ने कहा…

बहुत अच्छे नए सुझाव दिए हैं..समय के साथ पुराने तरीकों में बदलाव लाने से पर्यावरण पर अच्छा असर होता है तो इस में कोई बुराई नहीं है.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

समय के अनुसार बदलना ही होगा,,,,

RecentPOST: रंगों के दोहे ,

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत बढ़िया....
बेहद सार्थक पोस्ट.

सादर
अनु

Anita ने कहा…

पर्यावरण की रक्षा सभी को करनी है, पुरानी रीतियों में संशोधन आवश्यक है..रोचक व सार्थक प्रस्तुति..

Unknown ने कहा…

बहुत प्रेरणाप्रद कहानी है ...मैं स्वयं भी नदी में कुछ भी प्रवाहित न करके मिटटी में ही डालती हूँ ...और इसमें ईश्वर के प्रकोप से डरने जैसी कोई बात ही नहीं ....कर्मकांड तो केवल आत्म-संतोष के लिए हैं ...ईश्वर तो मात्र अच्छे कर्म और सच्चे मन से ही प्रसन्न होते हैं .

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

आप सही करती हैं ,कर्मकांड को पत्तर की लकीर मानना उचित नहीं है .समयानुकूल उसमे सुधार लाना अत्यंत आवश्यक है आभार !

Sushil Bakliwal ने कहा…

बिल्कुल सही और उत्तम संदेश. धन्यवाद.

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

ठीक बात है -परंपराओं में समय के अनुरूप परिवर्तन करते रहना चाहिये!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बहुत सुन्दर, हमारे रिवाजो से जो कुछ प्रश्न उभरते है उनका उत्तर भी आपने सरल वे में समझाया है।

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

पर्यावरण को ध्यान में रखकर ही धार्मिक नियम बनाए जाने चाहिए और जो पर्यावरण के विरुद्ध हो उनको बदल देना ही ठीक है !
आभार !!

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढाती अच्छी अभिव्यक्ति .....

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सार्थक रचना !

HARSHVARDHAN ने कहा…

लोग ऐसे ही पर्यावरण के प्रति जागरुक हो सकते हैं। :)

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Poonam Matia ने कहा…

गंभीर भाव से सहज शब्दों में लिखी गयी कहानी अत्यंत अर्थपूर्ण है और अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचनी चाहिए ........साधुवाद

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

सार्थक, गंभीर, सुन्दर और जागरूकता का संदेश

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

जागरूकता बहुत जरुरी है ...और अन्धविश्वास को हम सबको मिल के ही हटाना होगा


होली की शुभकामनाएँ

avanti singh ने कहा…

बहुत ही उत्तम पोस्ट,बधाई....