इसके बाद प्रकाश हमारे घर अक्सर आने लगा।
थोड़ी ही दिनों में हम दोनों में मित्रता हो गई।हम हर विषय पर खुलकर चर्चा
करते थे।लेकिन उसे मेरी चंचलता ,अधिक बात करना पसंद नहीं था। हर समय
टोकता था ,"रश्मि ऐसा नहीं करना चाहिए, .... ऐसा नहीं बोलना चाहिए
...सोचकर बोलना चाहिए।" मुझे गुस्सा तो आता था परन्तु मैं चुप रहती थी
क्यकि मैं उसे चाहने लगी थी। मैं उसे किसी भी हालत में खोना नहीं चाहती थी।
सोचती थी कि समय के साथ साथ सब ठीक हो जायेगा। एकदिन बातों ही बातों में
प्रकाश ने कहा था ,"रश्मि तुम बहुत खुबसूरत हो लेकिन यदि तुम अपनी तुनक
मिजाजी छोड़कर थोडा गंभीर हो जाओगी तो और खुबसूरत हो जाओगी।" प्रकाश ने
आगे कहा था ,"बुरा न मानना ,तुम्हारा उग्र स्वाभाव और असहनशीलता तुम्हारे
वैवाहिक जीवन में कटुता ला सकता है। " तब मैंने हंसकर जवाब दिया था ,"अजी
साहब ! कटुता और मधुरता दोनों ही चाहिए जिंदगी में जायका बदलने के
लिए।एक रस से जी उब जायगा।" प्रकाश ने कुछ नहीं कहा था ,केवल मुस्कुरा
दिया था।
उसके चार वर्ष बाद मेरा व्याह प्रकाश से हो गया था।उसमे
मेरी ही आग्रह ज्यादा थी।माँ राजी नहीं थी परन्तु मेरी ही जिद के कारण
पिताजी ने माँ को समझा बुझा कर राजी किया था। विवाह के बाद दो वर्ष बड़ी
ख़ुशी से बीत गए। उसके बाद बात बात पर टकराव होने लगा। मेरी हर बात उन्हें
कांटे जैसे चुभने लगी । हर बात पर टोकते ,कबतक मैं चुप रहती ? मैं भी
पढ़ी लिखी हूँ। चाहूँ तो नौकरी कर सकतीहूँ।आजादी से रह सकती हूँ
................
रश्मि करवट बदल कर लेट गई।उसके मन में कभी विद्रोह तो कभी संदेह घर कर रहा
था।कभी सोचती , "शायद प्रकाश उस से छुटकरा पाने का बहाना ढूढ़ रहा है,
,लेकिन क्यों ? क्या वह दूसरी शादी करना चाहता है ? क्या वह किसी और को
चाहने लगा है ?" कई प्रश्न एक साथ उसके दिमाग में कौंध गए। पर इन प्रश्नों
का कोई तार्किक जवाब उसके पास नहीं था।"तो फिर क्या गृह कलह ही एक मात्र
कारण है ?" रश्मि सोचने लगी।
"लेकिन इस झगडे में केवल मैं ही तो दोषी नहीं हूँ।वह भी तो जिम्मेदार है।
एक बात कहो तो दश उपदेश सूना देता है। अभी उस दिन की बात है जब मैं कुछ
ब्लाउज पीस ,एक साडी ,एक शर्ट पीस और कुछ जरुरत की चीजे लाई तो जनाब कहने
लगे ," अरे इतने सारे चीजों की क्या जरुरत है ?तुम्हारे पास तो कई नई
साड़ियाँ हैं ,मेरे पास कई कमीजें हैं। तुम्हे कई बार कहा कि मित व्यायी
बनो परन्तु तुम्हारे समझ में तो बात आती नही।" कहते हुए बाहर निकलकर बरांडे
में जाकर बैठ गए।मुझे भी गुस्सा आ गयी । मैं भी पीछे पीछे गई। गुस्से में
मैंने कहा ," मेरी माँ बाजार से अपने लिए कई साड़ियाँ एकसाथ लाती थी लेकिन
मेरे पापा ने मम्मी को कभी कुछ नहीं कहा और तुम हो कि मुझे हर बात पर लानत
देतो हो।"
तब प्रकाश ने कहा था ,"तुम्हारा मतलब तुम्हारी मम्मी ने तुम्हे फ़िज़ूल खर्ची का पाठ पढाया है? मुझे नहीं लगता । खैर ,मेरे पास फ़िज़ूल खर्च के लिए पैसे नहीं है। "
"तुम कंजुष हो , शादी के पहले नहीं सोचा था कि बीबी के आने से खर्चा बढ़ जाएगी"मैंने गुस्से में उबलते हुए कहा।
" अजी यहीं तो मैं गलती कर बैठा, बीबी पाने के चाह में मैं
................." प्रकाश की बात काटकर रश्मि ने कहा ,"मैं बीबी नहीं
हूँ तो क्या हूँ ?"
"तुम पूरी बात तो सुनती नहीं हो और हर बात का गलत अर्थ निकाल लेती हो। " कहकर प्रकाश घर से निकल गया था।
रश्मि को नींद नहीं आ रही थी। करवट बदलते बदलते सुबह का पांच बज
गया था । "मेरी कोई इज्जत ही नहीं यहाँ।अब मैं यहाँ नहीं रहूंगी
।" उसने निर्णय ले लिया । सुबह उठते ही उसने जल्दी जल्दी जरुरत की चीजें
सूटकेस में भर लिया। नौकर को कहकर टेक्सी भी बुलवा लिया। टेक्सी की आवाज
सुनकर प्रकाश की नींद टूट गई।जबतक वह उठकर बाहर आया तबतक रश्मि तैयार होकर
टेक्सी के पास पहुँच गई थी । प्रकाश हैरान था। उसने पूछा ,"रश्मि कहाँ
जा रही हो ?"
"............."रश्मि ने कोई जवाब नहीं दिया।
उसने रश्मि को फिर आवाज़ लगाया," रश्मि .............!,रश्मि ...........!!,
रश्मि ने एक पैर कार के अन्दर डाल कर मुड़कर देखा तो प्रकाश ने पूछा ,"कहाँ जा रही हो ?"
"माँ के पास " रश्मि ने जवाब दिया।
"कब आओगी ?"
"........." रश्मि ने कुछ नहीं कहा। गाड़ी में बैठ गई और गाड़ी आगे बढ़ गई।
प्रकाश दौड़ कर गाड़ी को पकड़ने की कोशिश किया परन्तु देखते ही देखते
टेक्सी आँखों से ओझल हो गई। `उसने एक दीर्घ स्वांस छोड़ा और कुछ देर
निर्वाक वहीँ खड़ा रहा ,फिर बरन्दे(बरामदे ) में आकर एक कुर्सी पर बैठ गया।
"श्यामू चाचा " उसने बूढ़े नौकर को आवाज़ दिया।
"जी हुजुर "
"बीबी जी ने तुमसे कुछ कहा था क्या ?"
"जी हुजुर, सुबह उठते ही मुझेएक टेक्सी लाने के लिए कहा , पूछने पर बताया कि जरुरी काम से मायका जाना है। "
"हूँ " उसने श्यामू से कहा, "अच्छा तूम जाओ। "
प्रकाश फिर जा कर लेट गया। बहुत सी बातें एक साथ उसके दिमाग में आने लगी
लेकिन किसी भी बात पर विचार करने की स्थिति में वह नहीं था। वह
शांति चाहता था अत: वह सोने की कोशिश करने लगा।
रश्मि को मायके गए करीब पांच छै महीने हो गए थे परन्तु न रश्मि
ने कोई पत्र लिखा न प्रकश ने। कौन पहल करे ?यही समस्या थी। एक ही शहर में
रहते हुए भी बहुत दूर थे। रश्मि जब से गयी थी , तब से समाचार पत्र और रोजगार
समाचार के एक एक कोना छान डालती थी ।जो भी विज्ञापन उसके योग्यता के अनुसार
उपयुक्त लगता ,उसके लिए आवेदक करती। वह वनस्पति शास्त्र में पोस्ट
ग्रेजुएट थी, फिर भी नौकरी पाने में सफलता नहीं मिली। यह एक विडम्बना ही
है आज के पीढ़ी के लिए । भाई भाभी पहले ही उस से नाराज थे , माँ और पिताजी
का व्यव्हार भी उसके प्रति धीरे धीरे बदल गया था। विशेषकर माँ का व्यव्हार
जैसे रुखा हो गया था। बात बात में कहती "तुम्हारे डैडी ने तुम्हे सर पर
चढ़ा रखा है।" कभी कहती ,"तुम्हारी नादानी के वजह से वेचारा प्रकाश भी
परेशां है। प्रकाश तुम्हारा पति है, कुछ अगर बोल भी दया तो क्या हुआ ? पतिपत्नी में कभी कभी छोटी मोटी ख़ट पट चलती रहती है।इस से कोई रिश्ते थोड़े तोड़ते हैं ? चलो मैं तुम्हे उसके पास छोड़ आती
हूँ,उसको समझा भी दूंगी । " रश्मि को ये बाते मानो सुई चुभो देती ,सोचती ..."यदि नौकरी मिलजाए
तो इनसे भी अलग हो जाउंगी।" ( क्रमश :)
कालीपद "प्रसाद"
सर्वाधिकार सुरक्षित
7 टिप्पणियां:
वाकई में उत्सुकता का ग्राफ ऊपर उठ रहा है ,सुन्दर आंशिक कहानी
कहानी ठीक आगे बढ़ रही है,उत्सुकता से आगे इंतजार रहेगा
फिर आगे क्या हुआ .....!
आगे की कहानी की राह देख रहे हैं |
आशा
AASHAA JI AABHAR, AAGE TUESDAY 13TH KO PADH PAYENGE ,
रोचक प्रवाहमयी रचना..
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