विविधा -1
१
सुख के हर दिन, हर पल, ख़ुशी के नहीं होते
महकते मखमली गुलाब भी निष्कंटक नहीं होते।
सड़क पर खून से लटपत औरत दम तोड़ रही है
संवेदनहीनता देखिये गाडी से झांककर कायर भाग रहे है।
इंसान थे ,बन गए नेता ,इंसानियत खो गयी कहीं
शायद मर गई ,हो गया मुर्दा ,उनमे अब संवेदना नहीं।
गम -ए -ज़माना का आलम अजीब है
आदमी ही आदमी का खून प़ी रहा है।
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२
दुनिया फरेबी हो जाए तो होने दीजिये ,खुद न बदलिए.
ले जाने दीजिये सब तगमे ,आप लालच न कीजिये।
ना काया से ,ना मोह कोई रिश्तों से, क्षण भंगुर है सारा
मौसम के अनुकूल चढो ऊपर नीचे जैसे धातु पारा। .
हर परिचय के लिए थकना पड़ता है
तब कहीं अनाम को नाम मिलता है।
ना मंदिर , ना मस्जिद ,ना गिरजे में मिलेंगे
आँखें मुदों , दिल-द्वार खोलो , खुदा वहीँ मिलेंगे।
रचना :
कालीपद "प्रसाद"
सर्वाधिकार सुरक्षित
26 टिप्पणियां:
बहुत खूब ,सभी पंक्तियाँ कथा व्यथा और संदेस की प्रतिक हैं
बहुत बढ़िया प्रस्तुति !!सभी लाइन सन्देश से भरपूर .....
सार्थक प्रस्तुति |
आशा
sandesh deti rachna....bahut khoob
सच कहा है ...अच्छी प्रस्तुति
सुन्दर प्रस्तुति !!
बहुत ही सुन्दर संदेश देती प्रस्तुति,आभार.
बहुत सुंदर रचना
क्या बात
सच कहा है ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..आभार.
सुंदर !
आँखें मुदों , दिल-द्वार खोलो , खुदा वहीँ मिलेंगे।
SAHI KAHA ....
अर्थपूर्ण एवँ सशक्त प्रस्तुति ! बहुत सुंदर !
सार्थक प्रस्तुति ...
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .sahi jagah batayi hai aapne khuda ke milne kee . .आभार . मेरी किस्मत ही ऐसी है .
साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3
धन्य वाद, आभार
बहुत बढ़िया प्रस्तुति !
बहुत कुछ का अनुसरण कर बहुत कुछ देखें और पढें
बहुत खूब लिखा आपने..
भावनात्मक अभिव्यक्ति सार्थक प्रस्तुति
bahut hi acchi rachnaein
बहुत खूब
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सुन्दर आनुभूति, खूबशूरत विचरों का प्रवाह
सुंदर सार्थक प्रस्तुति ....
सुन्दर भाव... सुन्दर रचनाए.... कृपया मेरा ब्लॉग का भी अनुसरण कीजिए
मानवता का सन्देश
सुन्दर सार्थक प्रस्तुति
ना मंदिर , ना मस्जिद ,ना गिरजे में मिलेंगे
आँखें मुदों , दिल-द्वार खोलो , खुदा वहीँ मिलेंगे।
achhi prastuti
shubhkamnayen
sunder racahana
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