छोटा सुदर्शन अवोध शिशु
माँ के गोद में लेटा निश्छल शिशु
कभी मुस्कुराता है
कभी जोरजोर से रोता है
कभी ऊँगली मुहँ में डालता है
कहता है मानो ,मुहँ ही ब्रह्माण्ड है l
कभी जीभ निकालकर
दुनियाँ वालों को चिढाता है ,
कभी किसी बात पर हँसता है
कभी गंभीर एकटक निहारता है ,
कभी जोरसे चीखकर अपनी
नाराजगी का इज़हार करता है l
उसकी ख़ुशी हो या गम
आ ..आ ..ओ ..ओ .वो.. की ध्वनि
उसके शब्दकोष का प्रथम शब्द
मानव शब्दकोष की जननी l
भूख लगती है तो
मुख खोलकर दिखाता है ,
माँ ना समझे तो
रोने लगता है l
दूध पी कर सो जाता है दुनियाँ को भूलकर
किन्तु फिर उठता है दुगुना ताजा होकर l
ज्यादा देर सोना उसे पसंद नहीं
सुस्त बैठना भी उसे रास आता नहीं
उसे तो खड़ा होना है
अपने पैरों पर नाचना है
खुद खुश होना है
औरो को भी खुश करना है l
उसका निष्पाप निश्छल अलाप
धो देता हैं मनुज के मन के पाप
करता है दूर कलुष, सब मनस्ताप l
तन मन हो जाता है पवित्र ,शिशु संग
कोरा ,निर्मल और निष्कलंक l
रचना : कालीपद “प्रसाद “
सर्वाधिकार सुरक्षित
24 टिप्पणियां:
तन मन हो जाता है पवित्र ,शिशु संग
कोरा ,निर्मल और निष्कलंक l
.लाज़वाब....दिल को छूते बहुत कोमल अहसास...
वाकई एक शुशु के सान्निध्य में मन सचमुच निर्मल निष्कलुष हो जाता है ! सारी चिंताएं और कड़वाहट स्वयमेव तिरोहित हो जाता है ! बहुत सुंदर रचना !
बहुत सुन्दर .
नई पोस्ट : आराम बड़ी चीज है
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
इस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 22/02/2014 को "दुआओं का असर होता है" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1531 पर.
तन मन हो जाता है पवित्र ,शिशु संग
कोरा ,निर्मल और निष्कलंक l
लाज़वाब,बहुत कोमल अहसास......!
RECENT POST - आँसुओं की कीमत.
sundar prastuti ...
aapkaaa aabhaar Rajiv Ji
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस, गूगल और 'निराला' - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत सुन्दर
धो देता हैं मनुज के मन के पाप
करता है दूर कलुष, सब मनस्ताप l
तन मन हो जाता है पवित्र ,शिशु संग
कोरा ,निर्मल और निष्कलंक l// atyant sunder shabd sanrachna evam bhav
man agar shishi ki bhanti ho jaye to kya kahiye ...bahut sundar
मनोहारी-
आभार आदरणीय-
बहुत कोमल अहसास .......
बहुत बहुत आभार !
mamtamayi ahsas ....
अष्टांग हृदयम को मथ के आपने मख्खन परोस दिया है। विस्तृत पड़ताल करती श्रंखला आयुर्वेद के बुनियादी सिद्धांतों और आधार का। आभार आपकी निष्काम टिप्प्णियों का।
सुन्दर है श्रीमान !
सुन्दर शब्द चित्र है शिशु का।
बहुत भाव-प्रवण रचना है !
'यह शिशु,अपनी नन्ही मुट्ठियों मे ,
कसकर बाँधे है सारा भविष्य !
''मेरे शिशु ,क्या ले कर आए हो इस मुट्ठी में ?"
और मुंदी कली- सी अँगुलियाँ खोलना चाहती हूं ,
वह कस कर भींच लेता है !
..और मैं हँस पड़ती हूँ ....'
-प्रतिभा.
शिशु के मुट्ठी में भविष्य है और मुस्कराहट में रहस्य है !
ma avum shishu ka prem alokik hota hai... sunder rachna
shubhkamnayen
आपकी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
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आपकी इस अभिव्यक्ति की चर्चा कल सोमवार (24-03-2014) को ''लेख़न की अलग अलग विद्याएँ'' (चर्चा मंच-1561) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
aadarniya aapki rachnaye hamesha nav srijan ki prerana deti hain..bahut bahut abhiwadan
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