वर्त्तमान समय में हर देश इस बात पर जोर दे रहां है कि किस प्रकार देश की जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित किया जाय l जनसंख्या वृद्धि दर कम होगी तो देश की विकास योजनायें सफल होगी | देश का विकास होगा तो लोगो का जीवन स्तर ऊँचा उठेगा | सरकार और परिवार के सामने कुपोषण ,अशिक्षा , बेरोजगारी ,स्वस्थ समस्याएं , गरीबी जैसे समस्याएं मुंह बाए खड़ी है ! इन समास्याओं से सफलतापूर्वक तभी लडा जा सकता है जब जनसंख्या वृद्धि दर नियंत्रित हों | आज तक भारत में यह दर अनियंत्रित होने के कारण बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं , १४ आयु तक अनिवार्य शिक्षा अभियान असफल हो गया है | गरीब माँ बाप बच्चों को स्कुल भेजने के बदले काम करने भेजते हैं या फिर भीख मांगने |उनकी सामर्थ नहीं है कि आज वे ३,४ बच्चों को पढ़ा सके | गाँव में यदि एक या दो बच्चे हुए तो किसी हाल में स्कुल तो भेज देते हैं पर बच्चो के पास एक या दो कपडे के अलावा कोई कपडे नहीं होते | शहर में पढ़े लिखे नौकरी पेशा लोग भी आज शिक्षा के दिन प्रतिदिन बढ़ते खर्चे से परेशान और भवभीत है | शंकित है कि अपने बच्चों को शिक्षित कर पायेंगे या नहीं .....? माला जपने वाले संत और भष्टाचारी नेता को शायद इस भयावह स्थिति ज्ञान नहीं है ,यही कारण है कि वे हर हिन्दू औरत को ४-४ ,३-३ बचे पैदा करने की सलाह दे डाले | एक दो बच्चे ही आज माँ बाप पर भारी पड रहा है वहाँ ४ बच्चो से परिवार की हाल क्या होगी ..? क्या कभी इन सांसद महोदय ने सोचा है ...? क्या उनके पालन पोषण ,शिक्षा ,रोग निवारण आदि का खर्च सांसद महोदय उठाएंगे ..?या उन्हें कीड़े मकोड़े की तरह जीने के लिए छोड़ देंगे और खुद संसद द्वारा दिया गया सब सुख सुविधा का उपभोग करेंगे ...? अगर बीस करोड़ हिन्दू औरत प्रजजन ग्रुप में हैं और प्रत्येक औरत चार बच्चे पैदा करे तो २०x४=८० करोड़ बच्चे होंगे अर्थात एक और भारत | क्या सासद ने इन सबके लिए संतुलिन भोजन ,स्वस्थ सेवा ,शिक्षा ,रोज़गार ,आवास ,कपडे ,बिजली पानी जैसे मुलभुत आवश्यकता का प्रबंध कर रखा है या बिना सोचे समझे अर्थहीन बयां दिया है ? इनती बड़ी जनसंख्या के किये कोई भी देश प्रभावी ब्यवस्था नहीं कर सकता | नतीजा यह होगा कि हर हिन्दू परिवार गरीब होता चला जायगा |देश गरीब होगा ,अशिक्षित जनता की संख्या बढ़ेगी ,अंध विश्वास बढेगा तो धर्म के धंधे में लगे लोगो को ही फैयदा होगा |
चार -चार बच्चे पैदा करने की सलाह देने वाले हिन्दू धर्म के हिमायती संत /नेता से कोई पूछे कि उन्होंने कितने बच्चे पैदा करके हिन्दू धर्म की सेवा की............ ? ऐसे संत/नेता या तो अविवाहित हैं या बच्चे ही नहीं पैदा किये | इसीलिए बाल बच्चों वालों को उनका सलाह ऐसा लगता है मानो एक अँधा एक आँख वाले को रास्ता दिखा रहा है | बाल बच्चेवाले अच्छी तरह जानते हैं कि एक बच्चे को इच्छानुसार शिक्षित किया जा सकता है परन्तु चार बच्चों के लिए आज संभव नहीं है |चार बच्चों को अशिक्षित या अर्ध शिक्षित ,गरीब और समाज का तिरस्कृत नागरिक बना सकते हैं !
हर औरत को यह सोचना होगा कि वह अपने बच्चों को स्वस्थ ,शिक्षित, समाज में उच्च स्थापित देखना चाहती है या कुपोषित ,अशिक्षित ,गरीब ,तिरस्कृत और सब आधुनिक सुविधाओं से बंचित देखना चाहती है| अपनी आर्थिक समर्थ के अनुसार ही औरत को खुद निर्णय लेने की आज़ादी होनी चाहिए कि वह कितने बच्चे पैदा करे | किसी सांसद /संत/नेता या धर्मगुरु के मूर्खतापूर्ण निर्देश के अनुसार नहीं क्योकि बच्चों की पालन पोषण तो उन्हें ही करना है किसी और को नहीं |
कालीपद "प्रसाद "
3 टिप्पणियां:
सामयिक और प्रभावी लिखा है ...
सार्थक प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (12-01-2015) को "कुछ पल अपने" (चर्चा-1856) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
विचारणीय आलेख...
एक टिप्पणी भेजें