मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

चाल ,चलन, चरित्र (दूसरा भाग )

              पिछले  अंक में आप ने देखा महर्षि याज्ञवल्क के तीन शिष्यों ने एक ही उपदेश " द " का तीन अलग अलग अर्थ कैसे निकाला था। उन्होंने जो अर्थ निकाले  उसमे किताबी ज्ञान नहीं था ,वरन उनके पारिवारिक एवं सामाजिक शिक्षा के आधार पर निकाला  था। आज देखिये हमारे नेता ,मंत्री ,संत्री ,अफसर "द "का अर्थ क्या क्या निकालते  हैं।
             हमारे नेता ,मंत्री ,संत्री ,अफसर अच्छी  तरह जानते है कि प्रजातंत्र में अकेला कोई किसी बात का अर्थ निकालेंगे तो उसका कुछ  फ़ायदा नहीं होगा। इसलिए सब मिल बैठ कर , विचार विमर्श कर अर्थ निकालो और उसको सबलोग मानो या फिर नेता जी जो कुछ कहे , चाहे  वह गलत हो, फिर भी सब लोग बोलो, वही  सही है। तभी  उसका फ़ायदा उठा सकते है।इसलिए मंत्री ,संत्री आदि सभी "द " का सर्व मान्य अर्थ निकाल  लिया है।इनके लिए " द " का तीन अर्थ वही हैं  परन्तु अलग2 सदर्भ में।

             देवता स्वाभाव से भोग विलासी  है। धरती पर मंत्री,संत्री ,अफसर  भी भोग विलासी  के आदि हो चुके है।सरकारी माल दोनों हाथ से उड़ा रहे हैं। राजकोष को अपनी बपौती समझकर उसका मलाई का स्वाद केवल वही लेना चाहते है। अपना हक़ समझते हैं। जनता का कोई हक़ नहीं। भोग-विलास   उन्होंने अपना जन्म सिद्ध अधिकार मान लिया है। इसपर यदि कोई आपत्ति करे या अंगुली उठाय तो वे उनका दमन करने में कोई क़सर  नहीं छोड़ते। "द " का अर्थ यहाँ खुद के इन्द्रियों का दमन नहीं, वल्कि "द " का अर्थ विरोधियों को दमन करना।
बीते दिनों में हमने बाबा राम देव का  कालाधन विरोधी आन्दोलन को देखा , अन्ना  हजारे जी का  भ्रष्टाचार  विरोधी आन्दोलन सबने  देखा। इन आन्दोलनो  को दमन करने के लिए सरकार ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी।
इसलिए  नेता ,मंत्री ,संत्री , अफसर ने  "द " का अर्थ यहाँ खुद के इन्द्रियों का दमन नहीं, वल्कि "द " का अर्थ विरोधियों को दमन करना सिखा।
           चुनाव के समय सभी नेता विनम्र भिखारी बन जाते है। दान देने के लिए नहीं दान लेने के लिए। हर उद्योगपति के पास कटोरी लेके पहुँच जाते हैं, दान मांगने के लिए। "माई बाप कटोरी में कुछ डाल दो चुनाव केलिए।" दूसरा कटोरी लेके पहुँचते हैं जनता के पास। एक नेता  हाथ जोड कर खड़ा रहता है  औरदूसरा  चिल्लाता   है 'दे दो, व्होट दे दो, माई बाप व्होट दे दो ,  राम के नाम से दे दो , रहीम के नाम से दे दो ...........। "  नेता दान करना नहीं सीखा , दान लेना सीखा   है। भिखरियों से भी हाथ जोड़ कर कहेंगे " व्होट दे दो ना, हम तुम्हारी  झोपड़ी बनवा देंगे   ।"
           जनता से व्होट का दान लेने के बाद दूसरा  दान लेने के लिए तैयार हो जाते हैं। दूसरा दान ठेकेदारों से, खदान के मालिकों  से ,एजेंटों से। सरकारी संपत्ति को सस्ते में अपने रिश्तेदारों को ,दोस्तों को देकर उनसे    मोटी   रकम का दान लेते  है ( जनता गलती से इसे रिश्वत समझ  लेते है)।सरकारी खरीददारी में कमीसन  लेना , कोयला खदान घपला  , कॉमन वेल्थ गेम्स (c w g ) घपला, इसी का अंग है।
                नेता ,मंत्री ,संत्री , अफसर ने  "द " का अर्थ देना नहीं दान लेना सीखा है।  

मंत्री ,संत्री,नेता,  किसी के दिल  में जनता के प्रति दया नहीं है। सब क्रूर ,निर्दयी , स्वार्थी  है। पर ये चाहते है, जनता इन पर दया करे। चुनाव के समय  व्होट तो मांगते ही  हैं , साथ में यह कहना नहीं भूलते कि  उनकी पुरानी  गलतियों को  माफ़ करे और एक बार फिर उनको व्होट देने की कृपा  करे। जनता को दया आ जाती है और उनको व्होट दे देती है। जनता उनकी  चाल ,चलन, चरित्र  नहीं देखती। देखती है केवल यह कि  वह उसकी जात का है और व्होट दे देतीहै। .यहीं   भारतीय  समाज मात खा जाती है और नेता नकली  आंसू बहाकर जनता का  सहानुभूति  प्राप्त करने में कामयाब हो जाता है।

नेता ,मंत्री ,संत्री , अफसर ने  "द " का अर्थ " दया करो "नहीं   सीखा , सीखा है दया प्राप्त करो। 


              आज देश में  चाल, चलन, चरित्र  का दम्भ  भरने वाले लोग खुद अपनी चरित्र की  पाक साफ़ की दावा नहीं कर सकते , चाहे कितनी ऊँची आवाज में कहे,चाहे कितनी बार कहे कि  उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया ,उनकी आत्मा की कम्पन उनकी आवाज में सुनाई देती है।फिर ख-खर कर गला साफ करने लग जाते है।
            एक दो को छोड़ कर ऐसा कोई नहीं है जिन्होंने अपनी वाजिब प्राप्त वेतन भत्ता के अलावा धोखेधडी से सरकारी खजाना को लुटा ना हो।  सस्ते में ठेका(कोयला )   दे कर ठेकेदारों से पैसा लिया  है।  सरकारी खरीद दारी में पैसा खाया है (बोफोर केस ), नियुक्ति ,पदोन्नति, स्थानांतर में पैसा खाया (चौटाला केस) , क्या क्या गिनाया जाय ? सरकारी कामों में एक आदमी नहीं होता है।यहाँ एक दल होता है। दल  के सभी सदस्य भ्रष्टाचार में लिप्त  होते हैं, इसलिए सभी को दोषी माना जाना चाहिए। CWG  के सभी पदाधिकारियों के विरुद्ध केस चलना चाहिए। दामिनी केस में जैसे सब लोग एक जुट  होकर सरकार पर दबाव बनाया और सरकार को बलात्कार के विरुद्ध अध्यादेश लाना पड़ा वैसे ही जनता को ही आगे आकर इन नेतायों को दमन ,दान, दया का सही अर्थ  समझाना पड़ेगा ,तभी ये सुधरेंगे। तभी देश तेजी से आगे बढेगा।


कालिपद  "प्रसाद"





              

14 टिप्‍पणियां:

Sadhana Vaid ने कहा…

बेहतरीन कहानी ! सटीक एवं सार्थक कटाक्ष ! पौराणिक कहानी को वर्तमान सन्दर्भों में बड़ी कुशलता से ढाला है ! बधाई एवं शुभकामनाएं !

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…


आभार साधना जी !

पद्म सिंह ने कहा…

बेहतरीन और सटीक व्यंग्य... बधाई

अशोक सलूजा ने कहा…

आप को पढना ही ...बहुत कुछ सीखना है मेरे लिए !
आभार!

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

behtarin .....

Jyoti khare ने कहा…

बहुत सटीक बात कही है आपने वाकई यही यथार्थ है
बधाई आपको

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

धन्यवाद प्रदीप जी

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

आपकी टिप्पणी प्रेरणा दायक है,आभार सलूजा जी 1

Anita ने कहा…

बहुत सार्थक पोस्ट..

Rajesh Kumari ने कहा…

बहुत सामयिक सार्थक कटाक्ष इसकी आज जरूरत भी है हार्दिक बधाई इस बेहतरीन पोस्ट पर

Asha Lata Saxena ने कहा…

सटीक और सार्थक अभिव्यक्ति |
आशा

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत बढ़िया....
सटीक एवं सार्थक...

सादर
अनु

Satish Saxena ने कहा…

एक ईमानदार लेख , मुखौटों पर ...
आभार आपका !

Unknown ने कहा…

सटीक एवं सार्थक कटाक्ष