1. प्रेम
संक्रामक है
बिना जीवाणु के।
2. प्रेम
सच्चा है ,पक्का है
रंग धीरे धीरे चढ़ता है।
3 प्रेमोन्माद
जल्दी चढ़ता है
कच्चा है ,जल्दी उतरता है।
4 प्रेम,बुखार है
चढ़ता है,कभी उतरता है
कभी नफरत ,कभी परहेज है।
5 प्रेम ,
पागलपन है
रिश्ते तोड़ता है,नया बनाता है
6 प्रेम, अँधा है
ना जात-पात ,ऊंच-नीच
ना उम्र का बंधन है।
7 विरह की अग्नि
दूर से जलती है
पास आकर बुझती है।
8 ईर्षा
दुसरे की खूशी
अपनी बर्बादी।
कालीपद "प्रसाद "
©सर्वाधिकार सुरक्षित
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15 टिप्पणियां:
VIRAH KI AGNI DOOR SE JALTI HAE, PAS AAKAR BUJHTI HAE
SUNDAR RACHNA
भावपूर्ण अभिव्यक्ति !
ईर्षा
दुसरे की खूशी
अपनी बर्बादी।
बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति .एक एक बात सही कही है आपनेनारी खड़ी बाज़ार में -बेच रही है देह ! संवैधानिक मर्यादा का पालन करें कैग
bilkul sahi prem pagalpan bhi hai........khud ko bhul jaate hain auron ko yad karke...
प्रेम पर नए -पुराने दृष्टि-कोण पर एक और कोण -
शुभकामनायें आदरणीय-
प्रेम का बहुत ही उम्दा और सटीक वर्णन किया आपने | बहुत सुन्दर प्रस्तुति | बधाई
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
जो भो दो दिलो की भाषा है |बहुत सुन्दर
प्रेम के रंग में पके ... लजवाब हाइकू ...
बहुत खूब ...
बहुत ही भावपूर्ण प्रेम की प्रस्तुति.
bahut khoob....prem aisa hi hota hai
प्रेम के कई रूप..सु्ंदर
प्रेम आदत है ,खुद से संवाद है .बहुत सुन्दर प्रस्तुति .प्रेम आदत है .स्वभाव है .
वाकई..!!! प्रेम कुछ ऐसा ही है ...:)
वाह क्या बात है
वाह.....
सटीक परिभाषाएँ....
बहुत बढ़िया.
सादर
अनु
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