गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

कुम्भ मेला








चित्र गूगल से साभार 


कुम्भ मेला भारत भूमि पर

होता है केवल चार स्थान पर

उज्जैन. नासिक ,प्रयाग और हरिद्वार.

देव दैत्य मिलकरकिया समुद्र मंथन ,

एक के बाद एक ,  ग्यारह रत्न निकले,

पर नहीं थमा मंथन।

बारह रत्न  अमृत कलश देख

देव न कर पाए लोभ सम्बरण,

लेकर कुम्भ मोहिनी भागी, सह देवगण

रण छोड़ ,पीछे पीछे भागे दैत्यगण।

छलक गया अमृत कलश सेबूंद गिरे

 हरिद्वार, प्रयाग ,नासिक और उज्जैन।


सत्य युग की कहानी है यह 

 त्रेता गया , द्वापर गया, कलियुग है यह"

अभी भी पड़ा है अमृत बूंद  वहाँ

"विश्वाश है ? या आस्था है यह ?

"आस्था "पोषण करते पण्डे ,पुजारी

इनसे प्रभावित है ,भारत के नर नारी।

दिल में लेकर मोक्ष की लालसा,

या अमृत से  पाने  अमरता ,

दौड़कर आते कुम्भमेला में

छोड़ संसार की सारी जिम्मेदारी।

करते है गंगा ,गोदावरी , क्षिप्रा

और संगम  में स्नान

,धूलकर पाप ,पाने स्वर्ग में स्थान।

साही स्नान से कटते पाप ,

तरते हैं सारा खानदान ,

ऐसा  ही कहते है पण्डे पुजारी

लेकर सहारा वेद  पुराण।

स्वर्ग नरक हैं कल्पना लोक

कहाँ है? नहीं पता किसी को,

किन्तु स्वर्ग पाने की जोखिम में

खो देते है प्राण ,छुट जाता है यह लोक।


धर्म के धंधेबाजों ने

बिछाया ऐसा जाल ,

पढ़े लिखे ज्ञानी भी

नहीं समझ पाते उनकी छल।

पानी चाहे कितना  गन्दा हो

स्वर्ग पाने की भी जहाँ

प्रबल लालसा हो ,

गन्दा पानी में दुबकी से भी पाप धुलता  है ,

पण्डे पुजारी भक्तों को

ऐसा ही विश्वाश दिलाते है।


अनहोनी होती है हर कुम्भमेला में

कईयों की जान जाती है अपघात में

धर्म के ठेकेदार कहते है --

"पाप कट गया ,मोक्ष मिल  गया

आकर कुम्भ  मेले में,"

कोई जरा उनसे पूछे ...

"तुम ऐसे कैसे कह सकते हो ,

क्या तुम  यमराज के निजी सचिव हो ?

सब के पाप पुन्य का हिसाब रखते हो ?"


ना वह यमराज को जानता है

ना वह उसका सचिव है

पर आपको स्वर्ग में भेजने  का

पूरा दावा करता है।


मृयु के बाद क्या होता है

कोई नहीं यह राज जानता,

पण्डे पुजारी के धंधे के राज

हम इंसान की यही अज्ञानता।




कालीपद "प्रसाद "
©सर्वाधिकार सुरक्षित







11 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जहाँ आस्था होती है वहाँ इतना कुछ नहीं देखा जाता ... प्रेम भी तो एक आस्था ही है ...

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ,बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें.

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

इन मेलों में जो सांस्कृतिक और सामाजिक संस्कार निहित हैं उनका महत्व कम नहीं है. भिन्न भाषाओं-भूषाओँ और परंपराओं के इस देश में आस्था और विश्वास से संचालित यह मेला बहुत से ऐसे संदेश दे जाता है और जन-भावनाओं से जोड़ता है ,जो अन्य किसी प्रकार संभव नहीं .

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

जहां आस्था और विस्वास होता है वही पर लोगों की जन भावनाए जुडती है ,,,

Recent post: गरीबी रेखा की खोज

Kailash Sharma ने कहा…

आस्था में तर्क काम नहीं करते...

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

saty ka bodh karati prastuti....lekin koi kahan samajhta hai.

prabhavi prastuti.

Dinesh pareek ने कहा…

बहुत उम्दा पंक्तियाँ ..... वहा बहुत खूब
मेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

सुन्दर विचारणीय बिंदु,आस्था श्रद्धा संस्कृति का संगम है new post-rasta dikha dijiye

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

sahi bat ....aashtha men bada dam hai.....

Ramakant Singh ने कहा…

आपकी बातों से सहमति फिर भी देव स्थान में जाना चाहिए आस्था और विश्वास कभी टूटना चाहिए?

मन के - मनके ने कहा…



कुम्भ-मेले के विषय में दी गई जानकारिये के
लिये शुक्रिया,साथ ही गंगा को लेकर उठाए मुद्दे
काबिलेगौर हैं,