ईसु
परमपिता परमेश्वर नहीं
चाहते बनना ,मानव शिशू
दूत बनाकर पुत्र को भेजा
नाम था उसका ईसु |
समाज की रीतियाँ ,बेड़ियों,
अन्धविश्वास को त्तोडना था
बेत्लेहेम में ,अस्तबल में
कुवांरी माँ से जन्मा था !
मरियम माता थी और
पिता परमेश्वर की इच्छा थी
मानव और ईश्वर के बीच की
वही तो मुक्ति बैतरनी थी |
तीस वर्ष की उम्र तक किया
साधारण मजदूर बढाई का काम
तीसवें साल में दीक्षा ली और
गुरु बना उनका युहन्ना जॉन |
सहृदय,निशंकोच, धर्मप्रचारक थे
किन्तु निर्लिप्त ,अनाशक्त थे
'पाप से घृणा करो पापियों से नहीं "
ऐसे उत्तम उनके विचार थे |
ईश्वर रूपहीन हैं ,वह अदृश्य हैं
पर ईशु,परमेश्वर का दृश्य रूप है
ईश्वर अकथनीय ,अव्यक्त हैं
किन्तु ईशु उनकी अभिव्यक्ति है |
ईशु के माध्यम सन्देश दिया
प्रेम करो और प्रेम से रहो सब साथ
पडोशी हो ,मित्र हो या शत्रु हो
प्रेम से मिलो ,प्रेम से मिलाओ हाथ |
क्षमा करना कष्ट दाता को
मानना उसे नादान ,अबोध है
करो प्रेम परमात्मा से सदा
वह जग पिता ,सबका पिता है |
ईशु ने किया क्षमा सब आततायी को
किया प्रार्थना परमेश्वर से
"हे प्रभु ! वे नादान है ,मुझे क्रूस पर जो लटका रहे हैं
इन्हें क्षमा करना ,नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं |"
कालीपद "प्रसाद "
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12 टिप्पणियां:
सुंदर रचना !
BEHATARIN RACHANA
rachna kay madhyam say sundar sandesh.....
सुन्दर!
सुंदर रचना ....
बड़े दिन की बधाई
यीशु को नमन
सुन्दर और ज्ञानात्मक प्रस्तुतीकरण !
सुन्दर अति सुन्दर
बहुत उम्दा प्रस्तुति।।।
बहुत सुंदर रचना !
यीशु को नमन ......
आ० बहुत बढ़िया प्रस्तुति , नव वर्ष २०१४ की हार्दिक शुभकामनाएं , धन्यवाद
नया प्रकाशन -; जय हो विजय हो , नव वर्ष मंगलमय हो
सुंदर !!
आभार इस पोस्ट के लिए !!
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