मंजिल
ऐ मेरे आंगन के चाँद सितारे
नजर उठाकर देखो नीला अम्बर में
उमडते घुमड़ते कुछ बादल में
छुपते छुपाते सूरज के सिवा
कुछ नजर नहीं आयगा तुम्हें
पर यह सच नहीं है ,
यह नजर का भ्रम है।
जरा सूरज को अस्ताचल में छुपने दो ,
फिर नजर घुमाओ आसमान में
देख पाओगे आकाश गंगा में
झिलमिलाते तारों के बारातियों में ,
तब खो जाओगे तुम अचरज में।
उत्तर दिशा को करता इशारा
नाम है उसका ध्रुव तारा
पुकार पुकार कर मानो
अपनी चमक से , कह रहा है तुम से ,
"उठो ,जागो , भ्रमित मत हो ,
मैं भी एक नन्हा सा बच्चा था ,
माँ का दुलारा था।
पर सब को छोड़कर, बन्धनों को तोड़कर
दिल में अटूट विश्वास लिए
मन में द्रीड संकल्प लिए
चल पड़ा था दुर्गम राह पर
अपने लक्ष को पाने के लिए।
मैंने अपना लक्ष पा लिया
करोड़ों अरबों नक्षत्रों में
अपने स्थान बना लिया।"
" तुम भी ठान लो , दृढ़ संकल्प कर लो
मन में विश्वास भर लो और चल पड़ो,
अपने आप पगडण्डी बन जायगी
लक्ष तुम्हारे पास आएगा एक दिन
मंजिल तुम्हे मिल जायगी।
टीम टिमाते तारों को देख
शायद तुम भ्रमित हो क़ि -
तारा बहूत छोटा होता है।
पर यह सच नहीं
हर तारा एक सूरज है
सूरज से कई गुना बड़ा है
पर हमारी नज़र कमजोर है ,
अत: दूर से उनकी बड़प्पन
हमको नज़र नहीं आता है " .
"बच्चों !
तुम अपने दिल की नज़र कमजोर मत करो
दूर द्रष्टा बनो , उदार बनो
जाति ,धर्म की दूरी को दूर करो ,
कल्पना की उड़ान से प्रेरणा लो
सुनीता के संकल्पों को चुन लो
तुम भी विचरण करोगे चाँद सितारों में
सफ़लता तुम्हारे चरण चूमेगी
मंजिल तम्हारे पास आयगी
मंजिल तुम्हे मिल जायगी।"
रचना : कालीपद "प्रसाद "
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