सोमवार, 30 दिसंबर 2013
बुधवार, 25 दिसंबर 2013
ईसु का जन्म !
ईसु
परमपिता परमेश्वर नहीं
चाहते बनना ,मानव शिशू
दूत बनाकर पुत्र को भेजा
नाम था उसका ईसु |
समाज की रीतियाँ ,बेड़ियों,
अन्धविश्वास को त्तोडना था
बेत्लेहेम में ,अस्तबल में
कुवांरी माँ से जन्मा था !
मरियम माता थी और
पिता परमेश्वर की इच्छा थी
मानव और ईश्वर के बीच की
वही तो मुक्ति बैतरनी थी |
तीस वर्ष की उम्र तक किया
साधारण मजदूर बढाई का काम
तीसवें साल में दीक्षा ली और
गुरु बना उनका युहन्ना जॉन |
सहृदय,निशंकोच, धर्मप्रचारक थे
किन्तु निर्लिप्त ,अनाशक्त थे
'पाप से घृणा करो पापियों से नहीं "
ऐसे उत्तम उनके विचार थे |
ईश्वर रूपहीन हैं ,वह अदृश्य हैं
पर ईशु,परमेश्वर का दृश्य रूप है
ईश्वर अकथनीय ,अव्यक्त हैं
किन्तु ईशु उनकी अभिव्यक्ति है |
ईशु के माध्यम सन्देश दिया
प्रेम करो और प्रेम से रहो सब साथ
पडोशी हो ,मित्र हो या शत्रु हो
प्रेम से मिलो ,प्रेम से मिलाओ हाथ |
क्षमा करना कष्ट दाता को
मानना उसे नादान ,अबोध है
करो प्रेम परमात्मा से सदा
वह जग पिता ,सबका पिता है |
ईशु ने किया क्षमा सब आततायी को
किया प्रार्थना परमेश्वर से
"हे प्रभु ! वे नादान है ,मुझे क्रूस पर जो लटका रहे हैं
इन्हें क्षमा करना ,नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं |"
कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित
रविवार, 22 दिसंबर 2013
चाँदनी रात
चाँदनी रात
१
१
सूरज जब छुप जाता हैं
सांझ की काली आँचल में ,
तारों में तुम अकेला चंदा
चाँदनी फैलाते हो जग में |
२
२
कभी बादलों के पीछे
कभी पेड़ के पीछे
छुपते छुपाते तुम आते हो
हम बच्चों को पुलकित कर जाते हो |
३
ऊपर आकाश नीला
नीचे जलधि का जल नीला
अँधेरे को भगाती चाँद की चाँदनी
नाविक का रास्ता बनाती उजला |
३
ऊपर आकाश नीला
नीचे जलधि का जल नीला
अँधेरे को भगाती चाँद की चाँदनी
नाविक का रास्ता बनाती उजला |
साभार : चित्र गूगल से साभार
कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित
शनिवार, 21 दिसंबर 2013
सोमवार, 16 दिसंबर 2013
चंदा मामा
![]() |
गूगल से साभार |
चंदा मामा है ....दूर देश में ...
घुमते फिरते हैं .. आकाश में ...|
पल पल बढ़ते ..बढ़ते जाते ...
सूरज जैसा गोल हो जाते ...
पूर्णिमा को धवल चाँदनी
धरती पर वो फैलाते .....,
चांदनी फैली वन जंगल में
हिम आलय ओ अम्बर में...
चंदा मामा है ....दूर देश में ...
घुमते फिरते हैं .. आकाश में ..|
फिर मामा का रूप बदलता...
पल पल वो घटता जाता ...
अमावश में वो छिप जाता...
धरती पर अँधेरा छा जाता .....
एक दिन का विश्राम लेकर
फिर उग जाते आकाश में ....
चंदा मामा है ....दूर देश में ...
घुमते फिरते हैं .. आकाश में ..|
कालीपद "प्रसाद "
©सर्वाधिकार सुरक्षित
|
गुरुवार, 5 दिसंबर 2013
कालाबाश फल
मित्रों ! तीन दिसम्बर को मैं हाइगा बनाने की कोशिश कर रहा था ! मेरे केमेरा द्वारा लिया गया एक चित्र पर मेरी नज़र पड़ी ! एक पेड़ पर कुछ लौकी जैसे फल लगे थे पर लौकी नहीं थे | कठहल जैसे लटक रहे थे पर शरीर पर कांटे नहीं थे अत: कठहल नहीं था |सोचने लगा क्या था वह ? तभी दिमाग में बात आई क्यों न इसपर एक हाइकु लिखकर हाइगा बना दिया जाय और जानकारो से जान लिया जाय | झट पट एक हाइकु लिख डाला --
Scientific name.... Crescentia Cujete
Common name .....Calabash Tree
Family ...............Bignanioceae
मैंने calabash गूगल सर्च मे डाला तो उसके चित्र सहित पुरा जानकारी मेरे सामने था |उसका कुछ चित्र यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ |अधिक जानकारी केलिए गूगल में " Calabash fruit" लिख कर सर्च करें|
इसकी उत्पत्ति मध्य अमेरिका में हुआ परन्तु इसका उपयोग फिलीपींस में दवाई के रूप में होने लगा था ! अब पुरे विश्व में इसका सिमित रूप में उपयोग होता है ! मैंने इसे हैदराबाद से ४० किलोमीटर दूर प्रगति रिसोर्ट में देखा था |यह एक हर्बल रिसोर्ट है |हाइगा चित्र वहीँ का है | अभी का सभी चित्र गूगलसे साभार लिया गया है |
कालीपद "प्रसाद "
वृक्ष का फल
जैसे लौकी वैसा हूँ
बोलो कौन हूँ |
चित्र के साथ पब्लिश कर दिया |आप सब ने देखा परन्तु सही नाम शायद किसी को मालुम नहीं है |मैं भी नहीं जानता था | पेड़ के पास एक बोर्ड था|उसका चित्र मैंने ले लिया था , जिसपर लिखा था :-Scientific name.... Crescentia Cujete
Common name .....Calabash Tree
Family ...............Bignanioceae
मैंने calabash गूगल सर्च मे डाला तो उसके चित्र सहित पुरा जानकारी मेरे सामने था |उसका कुछ चित्र यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ |अधिक जानकारी केलिए गूगल में " Calabash fruit" लिख कर सर्च करें|
इसकी उत्पत्ति मध्य अमेरिका में हुआ परन्तु इसका उपयोग फिलीपींस में दवाई के रूप में होने लगा था ! अब पुरे विश्व में इसका सिमित रूप में उपयोग होता है ! मैंने इसे हैदराबाद से ४० किलोमीटर दूर प्रगति रिसोर्ट में देखा था |यह एक हर्बल रिसोर्ट है |हाइगा चित्र वहीँ का है | अभी का सभी चित्र गूगलसे साभार लिया गया है |
कालीपद "प्रसाद "
मंगलवार, 3 दिसंबर 2013
सोमवार, 2 दिसंबर 2013
हँस-हाइगा
दोस्तों ! शिक्षा की दृष्टि से पूरी जिंदगी ही बाल्यकाल है | बाल्यकाल में ही शिक्षा आसानी होती है |कोशिश कर रह हूँ बाल्यकाल को फिर से जीने की और नई चीज सीखने की | आप लोगो से ही जाना हाइगा क्या है | हाइगा का प्रथम चित्र प्रकाशित कर रहा हूँ |बताइए सही बना कि नहीं ? सुझाव सादर आमंत्रित है |
कालीपद "प्रसाद"
![]() | ||||
चित्र- मेरे केमेरा |
कालीपद "प्रसाद"
शनिवार, 16 नवंबर 2013
मन्दिर या विकास ?
हिंदुस्तान में नेताओं की नज़र कुर्सी पर टिकी रहती है | वे जानते हैं कि कुर्सी पाने का एक ही रास्ता है वह है "व्होट "| भारतीय जनता भावुक हैं ,धार्मिक हैं ,जात -पात और समुदाय से प्रभावित हैं |यूँ कहे कि यही है जनता की कमजोरी | नेता लोग इन्ही कमजोरी का फायदा उठाकर कभी धर्म के नाम से ,कभी जात -पात के नाम से ,कभी भाषा के नाम से ,उनकी भावनाओं को भड़का कर ,उनको आपस में लडाकर व्होट हासिल करते हैं | जनता की आर्थिक प्रगति (विकास) की बात कोई नहीं करता |
अभी अभी बिहार में विश्व का सबसे बड़ा रामायण मंदिर बनाने के लिए शिलान्यास हुआ है |अनुमान है इसमें ५०० करोड़ रपये का खर्चा आएगा ! यह रुपये लोगो से दान के रूप में संग्रह किया जायेगा | जहाँ भारत में हजारों मंदिर हैं वहाँ एक और मंदिर ,वो भी ५०० करोड़ रूपए खर्च करके बनाना क्या जनता का पैसा का अपव्यय नहीं है ? इस पैसे को यदि कल्याणकारी कार्य /प्रगति मूलक कार्य में लगाया जाता तो युवकों को अपने भविष्य संवारने में मदत मिलती |देश/राज्य की प्रगति होती | लेकिन नितीश कुमार को इन बातों से क्या मतलब ? उन्हें तो व्होट से मतलब है | इसीलिए बी जे पी के राम मंदिर के प्रस्ताव को छोटा दिखाने के लिए उसने विश्व का सबसे बड़ा रामायण मंदिर बनाने का पासा फेका |उद्येश्य है- बी जे पी के व्होट बैंक में सेध लगाना | उन्होंने शिलान्यास किया और बी जे पी में खलबली मचा दी | नितीश कुमार यदि राज्य की प्रगति चाहते तो रामायण मंदिर के बदले उसी जगह पर विश्व का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय, जिसमें सभी प्रकार के शिक्षा उपलब्ध हों और शिक्षा सस्ती हों, बना सकते थे | प्राचीन काल में बिहार का नालंदा विश्वविद्यालय विश्व में शिक्षा का केन्द्र था | विश्व का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय बनाकर प्राचीन गौरव और संस्कृति का पुनोरोद्धार कर सकते थे | लेकिन उसमे शायद उन्हें "व्होट "का लाभ नहीं मिलता | इसीलिए नितीश कुमार मंदिर के शरण में आ गए |
बी जे पी भी यदि चाहे राम मंदिर का प्रस्ताव बदलकर विश्वस्तर का विश्वविद्यालय बना सकते हैं | परन्तु इसमें उनको भी व्होट का फ़ायदा नहीं होगा ,इसीलिए विश्वविद्यालय भी नहीं बनेगा |
नेता के अतिरिक्त करोड़पतियों और अरबपतियों में होड़ लगा रहता है कि कौन कितना मंदिर को दान देता है | ये लोग करोडो रुपये के साथ सोना ,चाँदी ,हीरे ,जवाहरत भी मंदिर में दान करते हैं | यह दान भगवान स्वीकार करते हैं कि नहीं यह तो भगवान ही जाने पर यह निश्चित है कि भगवान के तथकथित एजेंट सहर्ष नतमस्तक इसे स्वीकार करते हैं क्योकि ये धन इन्ही के तो काम आते हैं | ये धन न देश के न आम जनता के काम आते हैं | यह एक अनुपयोगी दान है | मंदिर को दान करने के बदले में यदि इस धन को समाज और जनता के प्रगति मूलक कार्य में खर्च किया जाय तो देश निश्चित रूप में प्रगति करेगा | समाज और व्यक्ति की प्रगति का मूल आधार है शिक्षा | शिक्षा दिनोदिन महँगी होती जा रही है | निम्नमध्य वर्ग और निम्न वर्ग के पहुँच के बाहर हो रहा है | उनके लिए अच्छे विद्यालय /महाविद्यालयीन शिक्षण सुविधाएँ उपलब्ध करा सकते हैं | इनके लिए अलग संस्था की व्यावस्था इन पैसों किया जा सकता है | परन्तु ये काम नहीं करेंगे क्योंकि शिक्षा की महँगी दुकान तो इन्ही की है | शिक्षा को इन्ही लोगो ने महँगी बनाके रखा है|
मान लिया कि ये लोग अपना धंधा बंद नहीं करना चाहते हैं ,परन्तु दान के लिए रखे धन को समाज के दुसरे कल्याणकारी काम में तो लगा सकते हैं | आज़ादी के ६५ साल के बाद भी गांवों में बुनियादी नागरिक सुविधाएँ उपलब्ध नहीं है | सौचालय नहीं है ,पीने कि पानी नहीं है ,सड़क नहीं है , साफसफाई कर्मचारी नहीं है ...... इत्यादि ,इत्यादि .....|ये अरबपति मंदिर को दान देने के बदले इन गांवों को एक एक कर गोद लें और दान के लिए रखे धन से इन गाँव को सभी सुविधाएँ उपलब्ध कराएँ तो सही माने में जनता जनार्धन की सेवा होगी , नर नारायण की सेवा होगी |देशकी सेवा होगी |देश आगे बढेगा ,पैसे का सदुपयोग होगा | स्वस्थ सेवाएं भी बहुत महँगी हो गयी है | इन रुपयों से जनता को सस्ती स्वस्थ सेवाएं भी उपलब्ध करा सकते हैं | परन्तु ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि महँगी शिक्षा की दुकान हो या महँगी स्वस्थ सेवा दुकान हो, सब इनके और इनके चेलों का है | मंदिर में दान शायद इसीलिए करते है कि भगवान इनकी महँगी दूकान चलाने में मदत करें | वैसे कई मंदिरों के पास अरबों रुपये हैं जो बैंक खाते में पड़े हुए हैं, उनका कोई सदुपयोग नहीं हो रहा है | उनपर राज नेताओं के गिद्ददृष्टि गढा हुआ है ,मौके के तलाश में है, कब उसको डकार लेंगे किसी को पता नहीं लगेगा |
अंत में यही कहूँगा कि नेता और उद्योगपति मिलकर जनता को बन्धक की जिंदगी जीने के लिए मजबूर कर दिया है | जनता को अब जाग जाना चाहिए ....सोचना चाहिए कि धर्म,मंदिर ,मस्जिद जैसे मुद्दे उनके प्रगति में बाधक है ,देश की प्रगति में बाधक है | प्रगति के कार्य किये बिना उनके बच्चों का भविष्य अंधकारमय है |जनता उन्ही कार्यों में सहयोग करें जिस से देश की प्रगति हो ,जिसमें नवयुवक/युवतियों को अपने भविष्य संवारने का मौक़ा मिले | अनुत्पादक कार्य का विरोध करे | नेता और उद्योगपति केवल अपने फायदे को ध्यान में रखकर कार्यक्रम बनाते हैं | न देश के बारे में सोचते है न जनता के बारे में | जनता को ही जनता और देश की प्रगति के बारे में सोचना है और अपने सबसे बड़ा अस्त्र "व्होट "को सावधानी से उपयोग करना है | जाति ,धर्म से ऊपर उठकर सर्वांगीण विकास (प्रगति) को ध्यान में रख कर इसका प्रयोग करना है |
कालीपद "प्रसाद '
अभी अभी बिहार में विश्व का सबसे बड़ा रामायण मंदिर बनाने के लिए शिलान्यास हुआ है |अनुमान है इसमें ५०० करोड़ रपये का खर्चा आएगा ! यह रुपये लोगो से दान के रूप में संग्रह किया जायेगा | जहाँ भारत में हजारों मंदिर हैं वहाँ एक और मंदिर ,वो भी ५०० करोड़ रूपए खर्च करके बनाना क्या जनता का पैसा का अपव्यय नहीं है ? इस पैसे को यदि कल्याणकारी कार्य /प्रगति मूलक कार्य में लगाया जाता तो युवकों को अपने भविष्य संवारने में मदत मिलती |देश/राज्य की प्रगति होती | लेकिन नितीश कुमार को इन बातों से क्या मतलब ? उन्हें तो व्होट से मतलब है | इसीलिए बी जे पी के राम मंदिर के प्रस्ताव को छोटा दिखाने के लिए उसने विश्व का सबसे बड़ा रामायण मंदिर बनाने का पासा फेका |उद्येश्य है- बी जे पी के व्होट बैंक में सेध लगाना | उन्होंने शिलान्यास किया और बी जे पी में खलबली मचा दी | नितीश कुमार यदि राज्य की प्रगति चाहते तो रामायण मंदिर के बदले उसी जगह पर विश्व का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय, जिसमें सभी प्रकार के शिक्षा उपलब्ध हों और शिक्षा सस्ती हों, बना सकते थे | प्राचीन काल में बिहार का नालंदा विश्वविद्यालय विश्व में शिक्षा का केन्द्र था | विश्व का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय बनाकर प्राचीन गौरव और संस्कृति का पुनोरोद्धार कर सकते थे | लेकिन उसमे शायद उन्हें "व्होट "का लाभ नहीं मिलता | इसीलिए नितीश कुमार मंदिर के शरण में आ गए |
बी जे पी भी यदि चाहे राम मंदिर का प्रस्ताव बदलकर विश्वस्तर का विश्वविद्यालय बना सकते हैं | परन्तु इसमें उनको भी व्होट का फ़ायदा नहीं होगा ,इसीलिए विश्वविद्यालय भी नहीं बनेगा |
नेता के अतिरिक्त करोड़पतियों और अरबपतियों में होड़ लगा रहता है कि कौन कितना मंदिर को दान देता है | ये लोग करोडो रुपये के साथ सोना ,चाँदी ,हीरे ,जवाहरत भी मंदिर में दान करते हैं | यह दान भगवान स्वीकार करते हैं कि नहीं यह तो भगवान ही जाने पर यह निश्चित है कि भगवान के तथकथित एजेंट सहर्ष नतमस्तक इसे स्वीकार करते हैं क्योकि ये धन इन्ही के तो काम आते हैं | ये धन न देश के न आम जनता के काम आते हैं | यह एक अनुपयोगी दान है | मंदिर को दान करने के बदले में यदि इस धन को समाज और जनता के प्रगति मूलक कार्य में खर्च किया जाय तो देश निश्चित रूप में प्रगति करेगा | समाज और व्यक्ति की प्रगति का मूल आधार है शिक्षा | शिक्षा दिनोदिन महँगी होती जा रही है | निम्नमध्य वर्ग और निम्न वर्ग के पहुँच के बाहर हो रहा है | उनके लिए अच्छे विद्यालय /महाविद्यालयीन शिक्षण सुविधाएँ उपलब्ध करा सकते हैं | इनके लिए अलग संस्था की व्यावस्था इन पैसों किया जा सकता है | परन्तु ये काम नहीं करेंगे क्योंकि शिक्षा की महँगी दुकान तो इन्ही की है | शिक्षा को इन्ही लोगो ने महँगी बनाके रखा है|
मान लिया कि ये लोग अपना धंधा बंद नहीं करना चाहते हैं ,परन्तु दान के लिए रखे धन को समाज के दुसरे कल्याणकारी काम में तो लगा सकते हैं | आज़ादी के ६५ साल के बाद भी गांवों में बुनियादी नागरिक सुविधाएँ उपलब्ध नहीं है | सौचालय नहीं है ,पीने कि पानी नहीं है ,सड़क नहीं है , साफसफाई कर्मचारी नहीं है ...... इत्यादि ,इत्यादि .....|ये अरबपति मंदिर को दान देने के बदले इन गांवों को एक एक कर गोद लें और दान के लिए रखे धन से इन गाँव को सभी सुविधाएँ उपलब्ध कराएँ तो सही माने में जनता जनार्धन की सेवा होगी , नर नारायण की सेवा होगी |देशकी सेवा होगी |देश आगे बढेगा ,पैसे का सदुपयोग होगा | स्वस्थ सेवाएं भी बहुत महँगी हो गयी है | इन रुपयों से जनता को सस्ती स्वस्थ सेवाएं भी उपलब्ध करा सकते हैं | परन्तु ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि महँगी शिक्षा की दुकान हो या महँगी स्वस्थ सेवा दुकान हो, सब इनके और इनके चेलों का है | मंदिर में दान शायद इसीलिए करते है कि भगवान इनकी महँगी दूकान चलाने में मदत करें | वैसे कई मंदिरों के पास अरबों रुपये हैं जो बैंक खाते में पड़े हुए हैं, उनका कोई सदुपयोग नहीं हो रहा है | उनपर राज नेताओं के गिद्ददृष्टि गढा हुआ है ,मौके के तलाश में है, कब उसको डकार लेंगे किसी को पता नहीं लगेगा |
अंत में यही कहूँगा कि नेता और उद्योगपति मिलकर जनता को बन्धक की जिंदगी जीने के लिए मजबूर कर दिया है | जनता को अब जाग जाना चाहिए ....सोचना चाहिए कि धर्म,मंदिर ,मस्जिद जैसे मुद्दे उनके प्रगति में बाधक है ,देश की प्रगति में बाधक है | प्रगति के कार्य किये बिना उनके बच्चों का भविष्य अंधकारमय है |जनता उन्ही कार्यों में सहयोग करें जिस से देश की प्रगति हो ,जिसमें नवयुवक/युवतियों को अपने भविष्य संवारने का मौक़ा मिले | अनुत्पादक कार्य का विरोध करे | नेता और उद्योगपति केवल अपने फायदे को ध्यान में रखकर कार्यक्रम बनाते हैं | न देश के बारे में सोचते है न जनता के बारे में | जनता को ही जनता और देश की प्रगति के बारे में सोचना है और अपने सबसे बड़ा अस्त्र "व्होट "को सावधानी से उपयोग करना है | जाति ,धर्म से ऊपर उठकर सर्वांगीण विकास (प्रगति) को ध्यान में रख कर इसका प्रयोग करना है |
कालीपद "प्रसाद '
मंगलवार, 5 नवंबर 2013
फूलों की रंगोली
दीपावली चली गई परन्तु सबके जीवन में कुछ न कुछ प्रभाव अवश्य छोड़ गई | दीपावली में प्राय:सभी घरों में रंगोली बनाई जाती है और गृहिणियां या बेटियां ही ये रंगोली बनाती है| नए नए प्रयोग भी करती है | इस दिवाली में हमारी दो बेटियों ने मिलकर फूलों से रंगोली बनाई | उसका एक नमूना यहाँ आपसे साझा कर रहा हूँ | आशा है आपको पसंद आएगा |
फूल और पत्तियों का रंगोली |
शनिवार, 5 अक्तूबर 2013
नई रौशनी !
गणतंत्र भारत में जनगण की आवाज़ भले ही जनता के प्रतिनिधियों ने नहीं सुनी परन्तु उनकी आवाज़ का अहसास माननीय सर्वोच्च न्यायालय को है l दुसरे शब्दों में यूँ कहें कि गणतंत्र के दुसरे स्तम्भ संसद और कार्यपालिका की आत्मा जहाँ विवेक शून्य हो गई है वहीँ न्यायालय की आत्मा अभी भी जनता की आत्मा के स्पंदन के साथ स्पंदित हो रही है l जनता के संवेदना को एहसास कर रही है l संसद और कार्यपालिका ने तो देश में भ्रष्टाचार और कुशासन से निराशा का वातावरण पैदा कर दिया है l पार्टियाँ और राजनेता यह समझने लगे हैं कि वे जो चाहे कर सकते हैं, जनता कुछ नहीं कर सकती l इस परिस्थिति में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निम्नलिखित चार निर्णय भारतीय गणतंत्र के लिए निराशा में आशा की नई रौशनी है l माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने १० जुलाई २०१३ को दो निर्णय दिया l
१. यदि किसी सांसद या एम्.एल.ए को किसी भी संगीन जुर्म में २ साल या उस से ज्यादा कारावास का दंड मिलता है तो उसकी संसद / विधान सभा की सदस्यता तुरंत निरस्त हो जायेगी l
२.गिरफ्तार किये गए व्यक्ति जेल से चुनाव नहीं लड़ सकता l
तीसरा महत्वपूर्ण निर्णय न्यायालय ने १३ सितम्बर २०१३ को सुनाया ,वह है :-
३ कोई भी उम्मीदवार ईमानदारी से अपने चल और अचल संपत्ति का पूरा सही सही व्यावरा और शैक्षणिक एवं अपराधिक पृष्ठभूमि का सही सुचना दिए बिना चनाव नहीं लड़ सकता l
चौथा महत्वपूर्ण ऐतिहासिक निर्णय २७ सितम्बर को सुनाया गया .l वह है "राइट टू रिजेक्ट "l
४. "राइट टू रिजेक्ट ":- माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने "राइट टू रिजेक्ट " का अधिकार देकर मतदाता को शक्तिशाली बना दिया है l यह अन्ना हजारे जी के मांगों में एक था l इसे लागू करने के लिए निर्वाचन आयोग को आदेश दिया गया है कि वे वोटिंग मशीन में (नोटा) बटन भी लगाये जिससे मतदाता को कोई भी उम्मीदवार पसंद न होने पर (नोटा) दबाकर यह बता सके कि इनमे से कोई उम्मीदवार पसंद नहीं l
न्यायालय के प्रथम निर्णय अर्थात "यदि किसी सांसद या एम्.एल.ए को किसी संगीन जुर्म में २ साल या उस से ज्यादा कारावास का दंड मिलता है तो उसकी संसद / विधान सभा की सदस्यता तुरंत निरस्त हो जायेगी " को निष्क्रिय करने के लिए सभी दल एकजुट हो गए थे क्योंकि अपराधी सभी दलों में है और किसी किसी दल के दलपति ही इस निर्णय के चंगुल में आ रहे थेl इसीलिए जल्दीबाजी में इस आदेश को निरस्त करने का बिल पास करवाना चाहते थे l लेकिन उनके दुर्भाग्य और देश के सौभाग्य से बिल पास नहीं हो पाया l इससे सभी पार्टी के प्रभावित सदस्यों के रक्तचाप बढ़ गए ,दिल की धड़कने भी तेज हो गई l वे सरकार पर दबाव डालकर अध्यादेश ले आये और आनन फानन में केबिनेट की मंजूरी लेकर राष्ट्रपति को भेज दिया ,जिसे कांग्रेस के वाईस प्रेसिडेंट राहुल गाँधी ने "नॉनसेंस" की संगा देकर फाड़कर फेंक देने की बात कही l उम्मीद है सरकार यह अध्यादेश वापिस ले लेगी l राहुल गाँधी को भगवान इसी तरह सद्वुद्धि देते रहे l जनता चाहती है कि वे नए लोग जिनकी छबि साफसुथरी है उन्हें लेकर चुनाव मैदान में उतरें और दागियों (पैसे और मसल पावर ) को टिकेट न दें l
न्यायालय के दूसरा निर्णय अर्थात " गिरफ्तार किये गए व्यक्ति जेल से चुनाव नहीं लड़ सकता " को सरकार निरस्त कर चुकी है l अच्छा होता राहुल गाँधी इसमें भी वीटो लगाते और जेल से चुनाव लड़ने पर प्रतिबन्ध लगा रहता l अगले संसद में इसको सही किया जा सकता है l
तीसरा निर्णय (संपत्ति ,अपराधिक इतिहास ,इत्यादि ) पर केवल चुनाव आयोग ही छानबीन के बाद निर्णय ले सकते हैं l
चौथा निर्णय "राइट टू रिजेक्ट " बहुत ही महत्वपूर्ण है l एकबार मतदाता ने सभी उम्मीदवार को नकार दिया और दुबारा चुनाव कराया तो पार्टियाँ साफ़ सुथरी छाबिवाले उम्मिद्वार चुनने के लिए मजबूर हो जायेंगे l इस निर्णय से अब मतदाता अधिक संख्या में वोट डालने आयेंगे क्योंकि जो लोग किसी भी उम्मीदवार को वोट देना नहीं चाहते थे, वे नहीं आते थे l अब (नोटा ) को दबाकर अपनी बात बता सकते हैं कि हमें इनमे से कोई उम्मीदवार पसंद नहीं l लेकिन इसमें भी थोडा खामी है l वह यह है कि यदि सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले उम्मीदवार की मत सख्या, (नोटा ) की मत संख्या से अधिक हुआ तो वह विजयी घोषित हो जायगा भले ही उसे केवल १५% वोट मिले होंl १५% परसेंट वोट बहुमत का वोट नहीं हो सकता फिर भी वह चुना जायगा l इसलिए इसमें सुधर कर एक लिमिट बना देना चाहिए जैसे कुल मतदान का ३३% या उसे से अधिक वोट मिलना चाहिए तभी वह विजयी घोषित होना चाहिए l
ये चारो निर्णय भारतीय लोकतंत्र में मील का पत्थर साबित हो सकता है यदि इन्हें सही ढंग से लागू किया जाय l
कालिपद "प्रसाद"
सर्वाधिकार सुरक्षित
१. यदि किसी सांसद या एम्.एल.ए को किसी भी संगीन जुर्म में २ साल या उस से ज्यादा कारावास का दंड मिलता है तो उसकी संसद / विधान सभा की सदस्यता तुरंत निरस्त हो जायेगी l
२.गिरफ्तार किये गए व्यक्ति जेल से चुनाव नहीं लड़ सकता l
तीसरा महत्वपूर्ण निर्णय न्यायालय ने १३ सितम्बर २०१३ को सुनाया ,वह है :-
३ कोई भी उम्मीदवार ईमानदारी से अपने चल और अचल संपत्ति का पूरा सही सही व्यावरा और शैक्षणिक एवं अपराधिक पृष्ठभूमि का सही सुचना दिए बिना चनाव नहीं लड़ सकता l
चौथा महत्वपूर्ण ऐतिहासिक निर्णय २७ सितम्बर को सुनाया गया .l वह है "राइट टू रिजेक्ट "l
४. "राइट टू रिजेक्ट ":- माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने "राइट टू रिजेक्ट " का अधिकार देकर मतदाता को शक्तिशाली बना दिया है l यह अन्ना हजारे जी के मांगों में एक था l इसे लागू करने के लिए निर्वाचन आयोग को आदेश दिया गया है कि वे वोटिंग मशीन में (नोटा) बटन भी लगाये जिससे मतदाता को कोई भी उम्मीदवार पसंद न होने पर (नोटा) दबाकर यह बता सके कि इनमे से कोई उम्मीदवार पसंद नहीं l
न्यायालय के प्रथम निर्णय अर्थात "यदि किसी सांसद या एम्.एल.ए को किसी संगीन जुर्म में २ साल या उस से ज्यादा कारावास का दंड मिलता है तो उसकी संसद / विधान सभा की सदस्यता तुरंत निरस्त हो जायेगी " को निष्क्रिय करने के लिए सभी दल एकजुट हो गए थे क्योंकि अपराधी सभी दलों में है और किसी किसी दल के दलपति ही इस निर्णय के चंगुल में आ रहे थेl इसीलिए जल्दीबाजी में इस आदेश को निरस्त करने का बिल पास करवाना चाहते थे l लेकिन उनके दुर्भाग्य और देश के सौभाग्य से बिल पास नहीं हो पाया l इससे सभी पार्टी के प्रभावित सदस्यों के रक्तचाप बढ़ गए ,दिल की धड़कने भी तेज हो गई l वे सरकार पर दबाव डालकर अध्यादेश ले आये और आनन फानन में केबिनेट की मंजूरी लेकर राष्ट्रपति को भेज दिया ,जिसे कांग्रेस के वाईस प्रेसिडेंट राहुल गाँधी ने "नॉनसेंस" की संगा देकर फाड़कर फेंक देने की बात कही l उम्मीद है सरकार यह अध्यादेश वापिस ले लेगी l राहुल गाँधी को भगवान इसी तरह सद्वुद्धि देते रहे l जनता चाहती है कि वे नए लोग जिनकी छबि साफसुथरी है उन्हें लेकर चुनाव मैदान में उतरें और दागियों (पैसे और मसल पावर ) को टिकेट न दें l
न्यायालय के दूसरा निर्णय अर्थात " गिरफ्तार किये गए व्यक्ति जेल से चुनाव नहीं लड़ सकता " को सरकार निरस्त कर चुकी है l अच्छा होता राहुल गाँधी इसमें भी वीटो लगाते और जेल से चुनाव लड़ने पर प्रतिबन्ध लगा रहता l अगले संसद में इसको सही किया जा सकता है l
तीसरा निर्णय (संपत्ति ,अपराधिक इतिहास ,इत्यादि ) पर केवल चुनाव आयोग ही छानबीन के बाद निर्णय ले सकते हैं l
चौथा निर्णय "राइट टू रिजेक्ट " बहुत ही महत्वपूर्ण है l एकबार मतदाता ने सभी उम्मीदवार को नकार दिया और दुबारा चुनाव कराया तो पार्टियाँ साफ़ सुथरी छाबिवाले उम्मिद्वार चुनने के लिए मजबूर हो जायेंगे l इस निर्णय से अब मतदाता अधिक संख्या में वोट डालने आयेंगे क्योंकि जो लोग किसी भी उम्मीदवार को वोट देना नहीं चाहते थे, वे नहीं आते थे l अब (नोटा ) को दबाकर अपनी बात बता सकते हैं कि हमें इनमे से कोई उम्मीदवार पसंद नहीं l लेकिन इसमें भी थोडा खामी है l वह यह है कि यदि सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले उम्मीदवार की मत सख्या, (नोटा ) की मत संख्या से अधिक हुआ तो वह विजयी घोषित हो जायगा भले ही उसे केवल १५% वोट मिले होंl १५% परसेंट वोट बहुमत का वोट नहीं हो सकता फिर भी वह चुना जायगा l इसलिए इसमें सुधर कर एक लिमिट बना देना चाहिए जैसे कुल मतदान का ३३% या उसे से अधिक वोट मिलना चाहिए तभी वह विजयी घोषित होना चाहिए l
ये चारो निर्णय भारतीय लोकतंत्र में मील का पत्थर साबित हो सकता है यदि इन्हें सही ढंग से लागू किया जाय l
कालिपद "प्रसाद"
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