रविवार, 22 दिसंबर 2019

मन मोहक नारे


“हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, हम सब हैं भाई भाई”
सुनने में कितना अच्छा लगता है न? हम सब हैं भाई भाई| यही तो संविधान की आत्मा है| किंतु क्या यह नारा दिल में उतरता है या दिमाग में बैठता है? अगर यह दिल से निकलता है तो इसमें प्रेम प्रीति सहानुभूति मिश्रित होती है| और अगर यह दिमागी उपज है तो इसे भुला नहीं जा सकता | परंतु खेद की बात यह है न इन नारों में प्रेम प्रीति सहानुभूति है और न यह याद रखा जाता है| काम हो जाने के बाद भुला दिया जाता है| जैसे “ सबके हाथ सबके साथ’ भुला दिया गया | असल में यह नारे न दिमाग तक पहुंचते है न दिल तक | यह तो कमाल है दांतो के बीच में चलती जवान की है| यहीं से निकलते है और यहीं खत्म हो जाते है | सब ने अपने अपने हाथ का उपयोग करके वोट दिया | उनके साथ खड़े हुए | परंतु अब न किसी का हाथ चाहिए न साथ | गरीबी हटाते हटाते गरीब हटाने का प्रोजेक्ट बन गया | गरीब की जमीन को छीन कर उद्योगपति को दिया गया | गरीबी हट गई | आखिर इन नारों की जरूरत क्यों पड़ती है | इसका उत्तर नेता लोग बहुत अच्छी तरह समझते हैं | जैसे चावल बिखरने से कौये आ जाते हैं | भजन के नाम से भक्त आ जाते हैं वैसे ही नारे से मंदबुद्धि लोग जल्दी आकर्षित हो जाते हैं | इन नारों से देश की प्रगति तो नहीं होती परंतु अल्प बुद्धि लोगों में जोश आ जाता है और बिना समझे बुझे नारा देने वाले का जय जय कार करने लगते हैं उन्हीं को ही वोट देते हैं और बाद में पछताते हैं | 15 लाख के लालच में बैंक में खाते खुल गए लेकिन खाते मे अभी भी जीरो बैलेंस है| उम्मीद अभी भी लगी हुई हैं कि कभी ना कभी 1500000 तो आएगा ही | यह है मुंगेरीलाल के हसीन सपने | यह सपने हर पार्टी दिखाती है, बार-बार दिखाती है, परंतु सपना तो सपना ही रह जाता है कभी पूरा नहीं होता | हिन्दुस्तानी भोलीभाली जनता सपने में ही जी रही है | राजनेता उन्हें धनवान बनाने का सपना दिखा रहा है | मुल्ला ,पंडित इबादत /पूजा से जन्नत /स्वर्ग सुख का सपना दिख रहे है |भोली भली जनता द्विविधा में हैं | इसीलिए नेता उन्हें भोली भली गाय समान मानते है, उन्हें जिधर हांकों उधर जायगी |अशिक्षित, अन्धविश्वासी, ईश्वरसे भयभीत जो हैं | ईश्वर के नाम से इनसे कोई भी काम कराया जा सकता है |इसका फैदा हर मज़हब के लोग बड़ी चतुराई से उठा रहे हैं | वाह रे तथा कथित समाज के मार्ग दर्शक वाह ! विवेकानंद को आदर्श मानने वाले विवेकानंद की परछाईं से कोशो दूर हैं | गाँधी के अहिंसा में विश्वास रखने वाले हिंसा और भेद भाव फैला रहे हैं | क्या यही देश का विकास का मार्ग है ? गाँधी तेलिस्मा का उदाहरण तो देते है पर नीतियाँ उसके विपरीत क्यों बनती है ? दोस्तों ज़रा सोचिये निष्पक्ष होकर |

कालीपद 'प्रसाद'