शनिवार, 8 जून 2013

जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !







            जन्म और मृत्यु ,यही है दो अटल सत्य।जन्म होगा तो मृत्यु  निश्चित है। जन्म और मृत्यु के बीच के समय को जीवन की संज्ञा  दी गई है। इस प्रकार जन्म ,जीवन और मृत्यु ,यही है कहानी हर जीव की।परन्तु जन्म के पहले की अवस्था ,स्थिति क्या  है , मृत्यु के बाद की स्थिति क्या है ? कहाँ  जाते हैं ? यह किसी को पता नहीं है।जन्म के पहले क्या ?  मृत्यु के बाद क्या ? यही है शाश्वत प्रश्न।
              शास्त्रों  में 'आत्मा' 'की  बात कही गई  है। कहते हैं आत्मा नश्वर शरीर  को छोड़कर अलग हो जाती है और परमात्मा में विलीन हो जाती  है जिसे 'मोक्ष' कहते हैं। अतृप्त आत्मा फिर जन्म लेती है अर्थात कोई नया शरीर धारण करती है और यह सिलसिला तब तक चलता रहता है जबतक उसे 'मोक्ष' नहीं मिल जाता है।आत्मा का नया शरीर धारण करने को 'पुनर्जन्म ' कहा जाता है।अब प्रश्न उठता   है ,
 "आत्मा क्या है? शरीर क्या है ?"
शरीर में आत्मा है तो वह जीवित है। शरीर आत्माहीन है तो वह मृत है,शव है। इसका अर्थ है, आत्मा और शरीर का युग्म ही जीव है।शरीर पञ्च तत्व से बना है।शरीर के नष्ट होने पर वे तत्व पांच अलग अलग तत्वों में मिल  जाते हैं, अर्थात पूरा शरीर का रूप परिवर्तन हो जाता  है। यहाँ विज्ञान का सिद्धान्त लागू होता है कि ,"किसी पदार्थ को नष्ट नहीं किया जा सकता है केवल उसका रूप परिवर्तन किया जा सकता है। The matter cannot be destroyed but it can be transformed into another form." इसीलिए मरने के बाद शव को जलाना या कब्र में रखना, रूप परिवर्तन की प्रक्रिया है। इसके बाद के जो क्रिया कर्म ,रस्म रिवाज़ हैं उस से न आत्मा का,  न शरीर का  कोई सम्बन्ध है और न उनको कोई लाभ या हानी होती है। ये क्रियाएं शरीर और आत्मा के लिए अर्थहीन हैं और अंधविश्वास से प्रेरित हैं।
               आत्मा और शरीर का युग्म ही जीव है इसीलिए आत्मा और शरीर का घनिष्ट सम्बन्ध है। शरीर स्थूल है ,दृश्य है।आत्मा सूक्ष्म ,तीक्ष्ण ,तीब्र और अदृश्य है।शरीर पाँच तत्वों से बना है। वे तत्व हैं अग्नि ,वायु ,जल ,मृत्तिका और आकाश।ये सब मिलकर शरीर बनाते हैं और इनकी प्राप्ति माँ से होती है।माँ के गर्भ में जब शरीर बनकर तैयार हो जाता है उसमें कम्पन उत्पन्न होता है जिसे आत्मा का शरीर में प्रवेश का नाम दिया गया है अर्थात आत्मा ने एक नया शरीर धारण कर लिया है। 
                लेकिन इसे यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो यह कम्पन पैदा कैसे होता है?
               पाँच तत्वों में अग्नि उष्मा(Heat Energy)  का स्वरुप है।हीट एनर्जी परिवर्तित होकर (Electrical Energy )इलेक्ट्रिकल एनर्जी बन जाता है। यह शरीर के हर सेल (Bio Cell) को विद्युत् सेल बना देता है। यह स्वनिर्मित विद्युत् है। सब सेलों का  समुह शरीर का पॉवर हाउस बन जाता है।पुरे शरीर में विद्युत् प्रवाहित होने लगता है।हमारे शरीर में जो रिफ्लेक्स एक्शन होता है वह इसी विद्युत् प्रवाह के कारण  होता है।हमारे ब्रेन तेजी से काम करता है वह भी विद्युतप्रवाह के कारण कर पाता  है।पैर में चींटी काटता  है तो हमें दर्द महसूस होता है ,यह रिफ्लेक्स एक्शन के कारण होता है और रिफ्लेक्स एक्शन विद्युत प्रवाह के कारण होता है।जिस सेल में विद्युत् प्रवाह नहीं होता है उसमें चैतन्यता नहीं रहती (स्नायु हीन होता है ).इसीलिए उस सेल में होने वाले दर्द हमें पता नहीं लगता। यही विद्युत् जबतक शरीर में रहता है ,शरीर चैतन्य की हालत में रहता है।
              अग्नि उष्मा के रूप में वायु की गति को नियंत्रित करती है।यही वायु और विद्युत् मिलकर अपनी अपनी प्रवाह से ह्रदय ,फेफड़े तथा  अन्य महत्वपूर्ण अंगो  में कम्पन उत्पन्न करता है और यही कम्पन जीवन की निशनी है।जल और मृत्तिका शरीर को स्थूल रूप देने के साथ साथ विद्युत् और वायुके गति निर्धारण में निर्णायक भुमिका निभाते हैं। दो सेल के बीच  में कुछ स्थान खाली रहता है ,यह सेल के चलन में सहायक है।उसी प्रकार शरीर के अन्दर दो अंगो के बीच में खाली स्थान रहता है।सेल और अंगो के बीच में खालीस्थान को आकाश (शून्य ) कहते हैं।अगर खाली  स्थान नहीं होगा तो वांछित कम्पन उत्पन नहीं होगा। मन की शुन्यता भी आकाश है।इस प्रकार पञ्च तत्त्व शरीर में कम्पन उत्पन्न करने में (प्राण प्रतिष्ठा ) महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।शरीर में अग्नि का कमजोर होने पर या अत्यधिक बढ़ जाने पर वायु की गति में भी तदनुसार परिवर्तन होता है। विद्युत् संचार में भी परिवर्तन होता है।इसीलिए शरीर का तापक्रम पर नियंत्रण रखना बहुत जरुरी है।वृद्धावस्था में या बिमारी की अवस्था में शरीर में उष्मा की कमी हो जाता है। विद्युत् संचार कम हो जाता हैऔर धीरे धीरे ऐसी अवस्था में आ जाता है जब सेल आवश्यक विद्युत् उत्पन्न नहीं कर पाता  है। ऊष्मा की कमी के कारण हवा की गति रुक जाती है।यही मृत्यु की अवस्था है। शरीर में बचा  विद्युत् (Residual) निकलकर अंतरिक्ष के तरंगों में मिलजाता है। शरीर के पाँच तत्त्व अलग अलग होकर पञ्च तत्त्व में विलीन हो जाता है। इस अवस्था में किसी आत्मा की कल्पना करना या उसकी मोक्ष की कल्पना करना ,वास्तव में कल्पना ही लगता है।
           रही बात पुनर्जन्म की तो शरीर जिन अणु परमाणु से  बना था ,दूसरा शरीर वही अणु ,वही परमाणु से नहीं बनता ,इसीलिए शरीर का पुनर्जन्म संभव नहीं है। नया शरीर में पञ्च तत्व के नए अणु ,परमाणु होंगे। अत: उनमे नया कम्पन होगा।विद्युत् पॉवर हाउस भी नया होगा। यहाँ कम्पन का पुनर्जन्म या विद्युत् का पुनर्जन्म कहना सही नहीं लगता। कम्पन आत्मा नहीं ,विद्युत्  भी आत्मा 







नहीं। अत: 'आत्मा' एक वैचारिक तत्त्व है और वैचारिक  तत्त्व न नष्ट होता है, न उसका पुनर्जन्म
होता है।



नोट : विद्वान पाठकों से निवेदन है कि  वे विषय पर केवल अपनी सोच/विचार व्यक्त करे।किसी के कमेंट्स के ऊपर कमेंट्स कर वाद विवाद ना करें। इस लेख का उद्देश्य है विभिन्न विचार धारायों से खुद को और पाठकों को  परिचय कराना।  


कालीपद "प्रसाद "


©सर्वाधिकार सुरक्षित
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36 टिप्‍पणियां:

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

बेहतरीन और विचारणीय व्याख्या ,एक गंभीर सवाल उठाती
प्रस्तुति

प्रवीण ने कहा…

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अच्छा आलेख,

मैं अपने तरीके से मानव के संदर्भ में इसे कुछ इस तरह कहूँगा...

मानव शुक्राणु व अंडाणु... दोनों एक कोशिकीय और मानव शरीर के भीतर भी उत्पन्न होने के बाद कुछ दिनों से अधिक जीवित रहने में अक्षम... इन दोनों का संयोग और भ्रूण का बनना... वह भ्रूण जो करोड़ों सालों के जैव विकास के परिणाम स्वरूप नारी गर्भाशय के अंदर मानव शिशु बनने के लिये प्रोग्राम्ड है... फिर जन्म के उपरांत यही मानव शिशु खाद्म व पेय के रूप में बाहर से उर्जा लेता है, उसी को रूपान्तरित कर शरीर विकसित होता है और आयु के बढ़ने के साथ साथ ही मानव शरीर भी उस स्थिति को प्राप्त करने के लिये प्रोग्राम्ड है जब वह उपापचय में संतुलन नहीं रख पाता... नतीजा मृत्यु...



...

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सुन्दर व्याख्यात्मक आलेख !!

Ramakant Singh ने कहा…

एक शाश्वत सत्य की व्याख्या बेहतरीन

Guzarish ने कहा…


आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा सोमवार (10-06-2013) के चर्चा मंच पर लिंक
की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

Shalini kaushik ने कहा…

यहाँ कम्पन का पुनर्जन्म या विद्युत् का पुनर्जन्म कहना सही नहीं लगता। कम्पन आत्मा नहीं ,विद्युत् भी आत्मा नहीं। अत: 'आत्मा' एक वैचारिक तत्त्व है और वैचारिक तत्त्व न नष्ट होता है, न उसका पुनर्जन्म
होता है।
a universal truth

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

आभार सरिता भाटिया जी !

Unknown ने कहा…

सुन्दर रचना

अरुणा ने कहा…

अच्छा आलेख,

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

बेहतरीन,संजीदगी से तर -बतर प्रस्तुति

Meri antrdrishti ने कहा…

ज्ञान वर्धक लेख ..आत्मा , जीवन ,मर्त्यु ,पुर्नजन्म ये सब सवाल अक्सर मन में उठते हैं ....इनको वेज्ञानिक तरीके से समझाने की बहुत अच्छी कोशिश...

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

शाश्वत सत्य की व्याख्या
सार्थक प्रस्तुति

दिगम्बर नासवा ने कहा…

शाश्वत सत्य है ये ... और जनम और मृत्यु तो देखे भी हैं इंसान ने पर मोक्ष ...?
सार्थक प्रस्तुति ...

Anita ने कहा…

मन क्या है पहले आप यह जान लें फिर आत्मा का पता चल जायेगा..

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

अनीता जी ,आपकी बात समझ मे नहीं आई .क्या आप यह कहना चाहती हैं कि मन ही आत्मा है ? मन तो चंचल है. अभी मन किया ये चाहिए ,कभी मन किया वो चाहिए .तो क्या मन को आप इच्छायों और इच्छा को आत्मा से तो नहीं जोड़ रही हैं ? या फिर कोई और बात आप कहना चाहती है?कृपया विस्तार से बताये जिससे हम समझ सके कि मन से आत्मा की क्या सम्बन्ध है और आत्मा क्या है ?

Pallavi saxena ने कहा…

गहन चिंतन लिए विचारणीय प्रस्तुति...

Unknown ने कहा…

अनन्य | इससे अधिक क्या कहूँ |

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

bahut acchha vishleshan ....acchha laga kuch nai jankari mili ....

Jyoti khare ने कहा…

आत्मा और शरीर के गहरे संबंधों को
आध्यात्म और दर्शन के माध्यम से समझाती
विचारणीय रचना
सादर

आग्रह है- पापा ---------

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

एक शाश्वत सत्य की व्याख्या करती पोस्ट .....

Anupama Tripathi ने कहा…

शरीर के पाँच तत्त्व अलग अलग होकर पञ्च तत्त्व में विलीन हो जाता है। इस अवस्था में किसी आत्मा की कल्पना करना या उसकी मोक्ष की कल्पना करना ,वास्तव में कल्पना ही लगता है।

सुंदरता से समझाया शरीर और आत्मा का भेद ....

सुज्ञ ने कहा…

अधिक तो क्या कहें, इसलिए कि बस आपकी विचारधारा है और उसे एक भिन्न विचारधारा की तरह ही लेना चाहिए

virendra sharma ने कहा…

मन आत्मा नहीं है आत्मा की विचार करने की शक्ति है बुद्धि आत्मा की परखने की शक्ति है .जैसा विचार वैसा फिर कर्म और फिर वैसा ही कर्म भोग बोले तो परिणाम .

आई और माइन दो बातें हैं .आई एम ए सोल .दिस इज माय बॉडी .मैं आत्मा कानों द्वारा सुनती हूँ मुख द्वारा बोलती हूँ ,आँखों द्वारा देखती हूँ ये ज्ञानेन्द्रिया मेरे अधीन हैं मैं इनका स्वामी हूँ .मैं बोले तो आत्मा .चैतन्य ऊर्जा .मन मेरा (आत्मा )का मुरीद हो मैं (आत्मा )मन का नहीं .राजा मैं हूँ मन मेरी प्रजा है .बुद्धि सेनापति है .

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

आत्मा वैचारिक तत्व कैसे हो सकती है -वह इससे भी सूक्ष्म है ,जिसका नाश नहीं होता ,ऊपर के आवरण जो जन्म क्रम में निर्मित होते हैं वे बदलते हैं.
वैसे सबका अपना विश्वास और अपनी मान्यता !

Kailash Sharma ने कहा…

प्रतिभा सक्सेना जी के विचारों से पूर्णतः सहमत..आत्मा सिर्फ वैचारिक तत्व नहीं. आत्मा का एक अस्तित्व है जो सूक्ष्म और अविनाशी है. आत्मा जन्म नहीं लेती केवल उसका बाहरी रूप शरीर बदलता रहता है, पूर्वजन्म कर्मानुसार...
वैसे सब के अपने विचार और आस्था हैं..

shyam gupta ने कहा…

सही कहा है --- विचार सहित सभी तत्व अविनाशी हैं ...यह विश्व सिर्फ इसी आत्मा या विचार-तत्व या माया ...का खेल है जिसमें तत्व एक दूसरे में व विविध रूप में परिवर्तित होते रहते हैं अपना अपना कृतित्व निभाते हैं फिर उसी में लीन होजाते हैं...
---आत्मा एक विचार है भी तो भी सत्य है क्योंकि विचार ही मूल सत्य है सर्वप्रथम उस अव्यक्त असद परमतत्व के मन में विचार ही उत्पन्न हुआ था...'एकोहं बहुस्याम' उसके पश्चात ही ...यह सद, व्यक्त ब्रह्म उत्पन्न हुआ एवं ऊर्जा, मन आदि सबकुछ ... वही मूल विचार ही आत्मा है ....जो जब 'अब में पुनः एक होजाऊँ' के रूप में उत्पन्न होता है तो समस्त जगत पसारे को समेट लेता है..स्वयं में ...
--- यह विचार-तत्व ही श्रेष्ठतम इच्छा रूप में ईश्वर ( इष = इच्छा+ वर=श्रेष्ठ --> ईश्वर ) का रूप लेती है| प्रत्येक परम-भाव ( अथा परम ताप, परमार्थ ) में परमात्मा का.इसलिए कहा है ...अहं ब्रह्मास्म, सोहं , तत्वमसि आदि...

shyam gupta ने कहा…

रही बात पुनर्जन्म की तो पुनर्जन्म शरीर का नहीं मूल आत्म-तत्व का ही तो होता है ---जब मूल-तत्व एक ही है( अब वैज्ञानिक जिसे ईश्वर कण कह रहे हैं ---वेदों में ब्रह्म कहा गया है ) जिससे समस्त अन्य का जन्म व प्रसार होता है तो वही मूल कण बार बार विभिन्न रूप में उपस्थित होता है ...यही पुनर्जन्म है ...
--- समस्त परमाणु सदा एक ही होते हैं विभिन्न नहीं ( अणु भिन्न भिन्न होते है गुण सहित) अतः पंचतत्व के.. नए के भी पुराने के भी.. सभी परमाणु वही होते हैं ..यही तो पुनर्जन्म है ...

shyam gupta ने कहा…

"पैर में चींटी काटता है तो हमें दर्द महसूस होता है ,यह रिफ्लेक्स एक्शन के कारण होता है और रिफ्लेक्स एक्शन विद्युत प्रवाह के कारण होता है।"
---परन्तु वह हम कौन है..कहाँ है, कहाँ से आता है ..मूल प्रश्न तो यही है , विद्युत प्रवाह कैसे उपन्न होता है ...मृत शरीर में क्यं नहीं होता जबकि सारे तत्व तो उपस्थित होते हैं...वस्तुतः यह वही चेतन आत्मतत्व है जो प्रत्येक कण में तत्व में उपस्थित होकर उसे गति देता है ...अतः --नमन कथन..असंगत है..कि.

"शरीर के पाँच तत्त्व अलग अलग होकर पञ्च तत्त्व में विलीन हो जाता है। इस अवस्था में किसी आत्मा की कल्पना करना या उसकी मोक्ष की कल्पना करना ,वास्तव में कल्पना ही लगता है।"
---आत्म तत्व इन पञ्च-तत्वों से भिन्न है..आत्मतत्व को ही शिव या ब्रह्म या चेतन कहा गया है .... पञ्च-तत्व .को प्रकृति, आदि-शक्ति या माया कहा गया है ....यही चेतन तत्व ...दृष्टि की दृष्टि...श्रोत्र का श्रोत्र है ...यही वह 'हम' है...जो दर्द महसूस करता है ..

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

@आत्मा एक विचार है भी तो भी सत्य है क्योंकि विचार ही मूल सत्य है सर्वप्रथम उस अव्यक्त असद परमतत्व के मन में विचार ही उत्पन्न हुआ था...'एकोहं बहुस्याम' उसके पश्चात ही ...यह सद, व्यक्त ब्रह्म उत्पन्न हुआ एवं ऊर्जा, मन आदि सबकुछ ... वही मूल विचार ही आत्मा है

-----आत्मा एक विचार है ,यह सत्य है ,परन्तु किस रूप में ? क्या आकार है ?क्या प्रकृति है ? किस प्रकार इसकी उत्पत्ति हुई है ? आपने कहा ,"एकोहम बहुस्याम ". यह विचार किसके मन में आया ? यह विचार तो किसी जीव /व्यक्ति (नाम चाहे कुछ भी दें )के मन में आ सकता है। यदि आप कहते हैं वह ईश्वर है, तो कुछ लोग तो ईश्वर को स्थूल व्यक्ति (सगुण ) मानते है और कुछ लोग उन्हें निर्गुण .निराकार ,सूक्ष्म एक शक्ति (उर्जा ) के रूप में मानते .हैं। ईश्वर यदि कोई स्थूल /व्यक्ति होते तो आदि कालसे आज तक कोई न कोई उन्हें देखे होते ,प्रत्न्तु आज तक इसका कोई प्रमाण नहीं मिला। अत: निर्गुण .निराकार ,सूक्ष्म एक शक्ति (उर्जा ) होंने का सिद्धांत ज्यादा उपयुक्त लगता है। अगर यही सच है तो उर्जा (ऊष्मा .विद्युत् ......आदि ) की कोई इच्छा नहीं होती।वह तो किसी नियमों के अनुसार प्रवाहित होती है। ऊष्मा के प्रवाहित होने के नियम है ,विद्युत् प्रवाह के भी नियम है। प्रकृति ने यह नियम बना दिया है। मनुष्यों ने कुछ का पता लगा लिया है और बहुत नियमों से अनजान हैं।बादल से बादल टकराने पर विद्युत् पैदा होता है,अन्यथा वह सुप्त रहता है।भिन्न भिन्न विचारों का जब टकराव होगा ,तब शायद आत्मा और परमात्मा पर पड़े पर्दा उठ सके।इसके लिए हमें पारम्पारिक भावुकता से हट कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सोचना होगा।

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…
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कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

शरीर का पुनर्जन्म होता ही नही है यह तो आप मानते हैं। मूल तत्व (आत्म-तत्व ) जिसे वैज्ञानिक 'ईश्वरीय कण 'कह कर उसके खोज में लगे हैं।आपने उदहारण में बिलकुल सही कहा है कि अणु में पदार्थ का गुण होता है परन्तु अणु जब टूट कर परमाणु में परिवर्तित हो होते है तो उसमे पदार्थ की कोई गुण मौजूद नहीं रहता है। ये निर्गुण होते हैं। सभी परमाणु एक जैसे निष्क्रिय ,चार्ज से मुक्त (+ अथवा - ) होते हैं-- यूँ कहे सभी भावों से मुक्त होते हैं। तो क्या आप परमाणु को आत्मा कह सकते है ? धार्मिक विचारों से परमाणु आत्मा नहीं हो सकता क्योकि आत्मा तो अविभाज्य है और परमाणु का विभाजन इलेक्ट्रोन .प्रोटान और न्यूट्रान में होता है। इलेक्ट्रान ,प्रोटोन में स्वनिर्मित विद्युत् होता हैपरन्तु विरोधाभासी। क्या ये आत्मा है या आत्मा की उत्पत्ति का मूल है ?



पुनर्जन्म : यदि आप आत्म तत्व को परमाणु से भी सूक्ष्म मानते हैं तो अगर आत्मा को इलेक्ट्रोन .प्रोटान और न्यूट्रान के रूप में माने तो आत्मा का विभाजन नहीं होता।लेकिन इलेक्ट्रान प्रोटोन ना नस्ट होता है न पुनर्निर्मित होता है ,इसीलिए पुनर्जन्म नहीं होता है।

इसके अलावा आपके कोई निजी विचार धारा हो तो उससे जरुर अवगत कराये।

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

'हम' से यदि आपका तात्पर्य आत्मा से है तो यही तो मेरा भी प्रश्न है कि हम से पहले "मैं -आत्मा का रूप क्या है ? क्या आकार है ? क्या प्रकृति है ? किस प्रकार इसकी उत्पत्ति हुई ? शारीर के नष्ट होने पर आत्मा किस रूप में रहती है ?

--------- माँ के शरीर में ऊष्मा है और .बाओ सेल में यही ऊष्मा परिवर्तित होकर विद्युत् बन जाती है।गर्भ में स्थित शिशु माँ के शरीर का अभिन्न भाग है अत: उसमे विद्युत् उत्पन्न होता अस्वाभाविक नहीं है।

----------मुर्दे में विद्युत क्यों नहीं उत्पन्न होता ?

----------मैंने यह उल्लेख किया है कि वृद्धावस्था या बीमारी में शरीर में ऊष्मा की कमी हो जाती है जिस से बाओ सेल आवश्यक विद्युत् उत्पन्न नहीं कर पाते है क्योंकि सेल में खराबी आ जाती है।ऊष्मा की कमी से वायु प्रवाह धीरे धीरे समाप्त हो जाता है।विद्युत् भी समाप्त हो जाता है। बाओ सेल में जिन कारणों से ऊष्मा की कमी होती है या विद्युत् उत्पन्न नहीं होती ,यदि उन कारणों को दूर कर दिया जाय तो मृत शरीर में फिर विद्युत् का संचार हो सकता है और मृत व्यक्ति जीवित हो सकता है।वैज्ञानिक भी इसी दिशा में काम कर रहे है। शायद सफलता मिल जाय।

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

बेहतरीन लेखन

रविकर ने कहा…

विचारणीय पोस्ट-
आभार
स्पष्ट करने में सफल रहे आप-
शुभकामनायें-

shyam gupta ने कहा…

वृद्धावस्था या बीमारी में शरीर में ऊष्मा की कमी नहीं होती ....ऊर्जा की कमी...वह भी कमी इनका कारण नहीं अपितु प्रभाव है...जीव कोशिका में अपद्रव्य एकत्रित होने से ( रोग या वृद्धावस्था जिनके कारण वाह्य व सहज प्राकृतिक हैं) विद्युत् प्रवाह में गतिरोध होता है, जैसे बेटरी ख़राब होजाती है,
उन्हीं अपद्रिव्यों को पुनर्स्थापित करने के प्रयोग ये सफल होते हैं तो व्यक्ति युवा होसकता है....परन्तु अभी मृत बेटरी को भी हम नया नहीं कर पाते हैं अपितू उसे फेंक कर नयी लेनी पड़ती है ...इसी प्रकार मृत शरीर को भौतिक व्यवस्था से जीवन नहीं दिया जा सकता क्योंकि चेतन तत्व आत्मा को पुनर्स्थापन नहीं हो सकता ..नयी बेटरी अर्थात नया शरीर ही लेना पड़ता है...