बुधवार, 29 मई 2013
रविवार, 19 मई 2013
विविधा -1
१
सुख के हर दिन, हर पल, ख़ुशी के नहीं होते
महकते मखमली गुलाब भी निष्कंटक नहीं होते।
सड़क पर खून से लटपत औरत दम तोड़ रही है
संवेदनहीनता देखिये गाडी से झांककर कायर भाग रहे है।
इंसान थे ,बन गए नेता ,इंसानियत खो गयी कहीं
शायद मर गई ,हो गया मुर्दा ,उनमे अब संवेदना नहीं।
गम -ए -ज़माना का आलम अजीब है
आदमी ही आदमी का खून प़ी रहा है।
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२
दुनिया फरेबी हो जाए तो होने दीजिये ,खुद न बदलिए.
ले जाने दीजिये सब तगमे ,आप लालच न कीजिये।
ना काया से ,ना मोह कोई रिश्तों से, क्षण भंगुर है सारा
मौसम के अनुकूल चढो ऊपर नीचे जैसे धातु पारा। .
हर परिचय के लिए थकना पड़ता है
तब कहीं अनाम को नाम मिलता है।
ना मंदिर , ना मस्जिद ,ना गिरजे में मिलेंगे
आँखें मुदों , दिल-द्वार खोलो , खुदा वहीँ मिलेंगे।
रचना :
कालीपद "प्रसाद"
सर्वाधिकार सुरक्षित
गुरुवार, 9 मई 2013
क्षणिकाएं
१.
लड़की की शादी
माता पिता
दहेज़ विरोधी।
२.
लड़के की शादी
माता पिता
दहेज़ की हिमायती।
३ .
लड़की की शादी
सामत घराती की
नखरे बाराती की।
४
नई दुल्हन
दहेज़ लेकर आयी
घर की गृहलक्ष्मी।
५.
नई दुल्हन
दहेज़ नहीं लायी
कुलक्षनी।
दुल्हन वही
पिया मन भाये
सास को रखे रिझाये।
७ .
ननद
परिवार का नारद
बिगाड़े सास -बहु सम्बन्ध ।
८
देवर
भाभी का सहारा
जब बाहर हो भैया बेचारा।
९
ससुर
राग अलापता सुबह शाम
बेचारा श्रोताहीन, है अ-सुर।
सास
लेडी गब्बारा
बहु के सर फोडती गुब्बारा।
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रचना :
कालीपद "प्रसाद"
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