बुधवार, 29 मई 2013

विविधा -2










कवि ,कृषक,बनिक, वकील और डॉक्टर

कभी नहीं होते हैं वे अपने काम से रिटायर।

कर्मवीर हैं ये कर्म करते रहते हैं जीवन भर

थमते हैं तब ,जब जाते हैं दुनियां के  पार।।

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बह  गए  कितने  पानी  बनकर  उफनती  धारा,

चुप चाप खड़ा है वहीँ के वहीँ , नदी के दो किनारा।


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इश्क कमबख्त छुत की बिमारी है ,तू इधर उधर मत देख

हो जाता है किसी में होता देख ,कभी किसी को करता देख।


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रात कितनी भी लम्बी हो , कितना  गहरा  हो अँधेरा

हिम्मत का हाथ थामे रहो ,निश्चित है ,आएगा सबेरा ।


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बहुरूपिये से भरी है दूनियाँ, गर असली नकली को नहीं पहचानोगे

वजूद मिट जायगा ,गर दोस्त छोड़, कातिल को  गले लगाओगे ।

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कहता है तू घमंड से , ख़ुदा से तेरा इश्क है  बेइन्ताह

क़ाफ़िर भी ख़ुदा की खुदाई है ,खुदाई से क्यों नफरत है ?


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मज़हब के नाम से इन्सान को बाँटा ,कोई बात नहीं ,

क़ाफ़िर  से इश्क़ करेगा तो आसमां ख़ुश होगा।


शब्दार्थ :आसमां = ख़ुदा

रचना :

कालीपद "प्रसाद"

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रविवार, 19 मई 2013

विविधा -1

१  


सुख के हर दिन,  हर पल,  ख़ुशी के नहीं  होते

महकते मखमली गुलाब भी निष्कंटक नहीं होते।

 

सड़क  पर  खून  से  लटपत   औरत  दम  तोड़  रही  है 

संवेदनहीनता देखिये गाडी से झांककर कायर भाग रहे है। 

 

इंसान थे ,बन गए नेता ,इंसानियत खो गयी कहीं 

शायद मर गई ,हो गया मुर्दा ,उनमे अब संवेदना नहीं।

 

 गम -ए -ज़माना का आलम  अजीब है 

आदमी ही आदमी का खून प़ी  रहा है।

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२  

दुनिया फरेबी हो  जाए तो होने दीजिये ,खुद न बदलिए.

ले जाने दीजिये सब तगमे ,आप लालच न कीजिये।

 

ना काया से ,ना मोह कोई रिश्तों से, क्षण भंगुर है सारा 

मौसम  के अनुकूल चढो  ऊपर नीचे  जैसे धातु पारा। .

 

हर परिचय के लिए थकना पड़ता है 

तब कहीं अनाम को नाम मिलता है।   

 

ना मंदिर , ना  मस्जिद ,ना गिरजे में मिलेंगे 

आँखें मुदों , दिल-द्वार खोलो , खुदा वहीँ मिलेंगे।

 

रचना :

कालीपद "प्रसाद"

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गुरुवार, 9 मई 2013

क्षणिकाएं


१.

लड़की की शादी

माता पिता

दहेज़ विरोधी।

२.

लड़के की शादी

माता पिता

दहेज़ की हिमायती।

३ .

लड़की की शादी

सामत घराती की

नखरे बाराती की।

नई दुल्हन

दहेज़ लेकर आयी

घर की गृहलक्ष्मी।

५.

  नई दुल्हन

दहेज़ नहीं लायी

 कुलक्षनी।

६ .

चित्र गूगल से साभार

 

दुल्हन वही

पिया मन भाये

सास को रखे रिझाये।

  ७ .

ननद

परिवार  का नारद

बिगाड़े सास -बहु  सम्बन्ध ।

देवर

भाभी का सहारा

जब बाहर हो भैया बेचारा।

 ९

ससुर

राग अलापता सुबह शाम

बेचारा श्रोताहीन, है अ-सुर।

 १ ०

चित्र गूगल से साभार 

 

सास

लेडी गब्बारा

बहु के सर फोडती गुब्बारा।

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रचना :

कालीपद "प्रसाद"

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