हिंदुस्तान में नेताओं की नज़र कुर्सी पर टिकी रहती है | वे जानते हैं कि कुर्सी पाने का एक ही रास्ता है वह है "व्होट "| भारतीय जनता भावुक हैं ,धार्मिक हैं ,जात -पात और समुदाय से प्रभावित हैं |यूँ कहे कि यही है जनता की कमजोरी | नेता लोग इन्ही कमजोरी का फायदा उठाकर कभी धर्म के नाम से ,कभी जात -पात के नाम से ,कभी भाषा के नाम से ,उनकी भावनाओं को भड़का कर ,उनको आपस में लडाकर व्होट हासिल करते हैं | जनता की आर्थिक प्रगति (विकास) की बात कोई नहीं करता |
अभी अभी बिहार में विश्व का सबसे बड़ा रामायण मंदिर बनाने के लिए शिलान्यास हुआ है |अनुमान है इसमें ५०० करोड़ रपये का खर्चा आएगा ! यह रुपये लोगो से दान के रूप में संग्रह किया जायेगा | जहाँ भारत में हजारों मंदिर हैं वहाँ एक और मंदिर ,वो भी ५०० करोड़ रूपए खर्च करके बनाना क्या जनता का पैसा का अपव्यय नहीं है ? इस पैसे को यदि कल्याणकारी कार्य /प्रगति मूलक कार्य में लगाया जाता तो युवकों को अपने भविष्य संवारने में मदत मिलती |देश/राज्य की प्रगति होती | लेकिन नितीश कुमार को इन बातों से क्या मतलब ? उन्हें तो व्होट से मतलब है | इसीलिए बी जे पी के राम मंदिर के प्रस्ताव को छोटा दिखाने के लिए उसने विश्व का सबसे बड़ा रामायण मंदिर बनाने का पासा फेका |उद्येश्य है- बी जे पी के व्होट बैंक में सेध लगाना | उन्होंने शिलान्यास किया और बी जे पी में खलबली मचा दी | नितीश कुमार यदि राज्य की प्रगति चाहते तो रामायण मंदिर के बदले उसी जगह पर विश्व का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय, जिसमें सभी प्रकार के शिक्षा उपलब्ध हों और शिक्षा सस्ती हों, बना सकते थे | प्राचीन काल में बिहार का नालंदा विश्वविद्यालय विश्व में शिक्षा का केन्द्र था | विश्व का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय बनाकर प्राचीन गौरव और संस्कृति का पुनोरोद्धार कर सकते थे | लेकिन उसमे शायद उन्हें "व्होट "का लाभ नहीं मिलता | इसीलिए नितीश कुमार मंदिर के शरण में आ गए |
बी जे पी भी यदि चाहे राम मंदिर का प्रस्ताव बदलकर विश्वस्तर का विश्वविद्यालय बना सकते हैं | परन्तु इसमें उनको भी व्होट का फ़ायदा नहीं होगा ,इसीलिए विश्वविद्यालय भी नहीं बनेगा |
नेता के अतिरिक्त करोड़पतियों और अरबपतियों में होड़ लगा रहता है कि कौन कितना मंदिर को दान देता है | ये लोग करोडो रुपये के साथ सोना ,चाँदी ,हीरे ,जवाहरत भी मंदिर में दान करते हैं | यह दान भगवान स्वीकार करते हैं कि नहीं यह तो भगवान ही जाने पर यह निश्चित है कि भगवान के तथकथित एजेंट सहर्ष नतमस्तक इसे स्वीकार करते हैं क्योकि ये धन इन्ही के तो काम आते हैं | ये धन न देश के न आम जनता के काम आते हैं | यह एक अनुपयोगी दान है | मंदिर को दान करने के बदले में यदि इस धन को समाज और जनता के प्रगति मूलक कार्य में खर्च किया जाय तो देश निश्चित रूप में प्रगति करेगा | समाज और व्यक्ति की प्रगति का मूल आधार है शिक्षा | शिक्षा दिनोदिन महँगी होती जा रही है | निम्नमध्य वर्ग और निम्न वर्ग के पहुँच के बाहर हो रहा है | उनके लिए अच्छे विद्यालय /महाविद्यालयीन शिक्षण सुविधाएँ उपलब्ध करा सकते हैं | इनके लिए अलग संस्था की व्यावस्था इन पैसों किया जा सकता है | परन्तु ये काम नहीं करेंगे क्योंकि शिक्षा की महँगी दुकान तो इन्ही की है | शिक्षा को इन्ही लोगो ने महँगी बनाके रखा है|
मान लिया कि ये लोग अपना धंधा बंद नहीं करना चाहते हैं ,परन्तु दान के लिए रखे धन को समाज के दुसरे कल्याणकारी काम में तो लगा सकते हैं | आज़ादी के ६५ साल के बाद भी गांवों में बुनियादी नागरिक सुविधाएँ उपलब्ध नहीं है | सौचालय नहीं है ,पीने कि पानी नहीं है ,सड़क नहीं है , साफसफाई कर्मचारी नहीं है ...... इत्यादि ,इत्यादि .....|ये अरबपति मंदिर को दान देने के बदले इन गांवों को एक एक कर गोद लें और दान के लिए रखे धन से इन गाँव को सभी सुविधाएँ उपलब्ध कराएँ तो सही माने में जनता जनार्धन की सेवा होगी , नर नारायण की सेवा होगी |देशकी सेवा होगी |देश आगे बढेगा ,पैसे का सदुपयोग होगा | स्वस्थ सेवाएं भी बहुत महँगी हो गयी है | इन रुपयों से जनता को सस्ती स्वस्थ सेवाएं भी उपलब्ध करा सकते हैं | परन्तु ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि महँगी शिक्षा की दुकान हो या महँगी स्वस्थ सेवा दुकान हो, सब इनके और इनके चेलों का है | मंदिर में दान शायद इसीलिए करते है कि भगवान इनकी महँगी दूकान चलाने में मदत करें | वैसे कई मंदिरों के पास अरबों रुपये हैं जो बैंक खाते में पड़े हुए हैं, उनका कोई सदुपयोग नहीं हो रहा है | उनपर राज नेताओं के गिद्ददृष्टि गढा हुआ है ,मौके के तलाश में है, कब उसको डकार लेंगे किसी को पता नहीं लगेगा |
अंत में यही कहूँगा कि नेता और उद्योगपति मिलकर जनता को बन्धक की जिंदगी जीने के लिए मजबूर कर दिया है | जनता को अब जाग जाना चाहिए ....सोचना चाहिए कि धर्म,मंदिर ,मस्जिद जैसे मुद्दे उनके प्रगति में बाधक है ,देश की प्रगति में बाधक है | प्रगति के कार्य किये बिना उनके बच्चों का भविष्य अंधकारमय है |जनता उन्ही कार्यों में सहयोग करें जिस से देश की प्रगति हो ,जिसमें नवयुवक/युवतियों को अपने भविष्य संवारने का मौक़ा मिले | अनुत्पादक कार्य का विरोध करे | नेता और उद्योगपति केवल अपने फायदे को ध्यान में रखकर कार्यक्रम बनाते हैं | न देश के बारे में सोचते है न जनता के बारे में | जनता को ही जनता और देश की प्रगति के बारे में सोचना है और अपने सबसे बड़ा अस्त्र "व्होट "को सावधानी से उपयोग करना है | जाति ,धर्म से ऊपर उठकर सर्वांगीण विकास (प्रगति) को ध्यान में रख कर इसका प्रयोग करना है |
कालीपद "प्रसाद '
अभी अभी बिहार में विश्व का सबसे बड़ा रामायण मंदिर बनाने के लिए शिलान्यास हुआ है |अनुमान है इसमें ५०० करोड़ रपये का खर्चा आएगा ! यह रुपये लोगो से दान के रूप में संग्रह किया जायेगा | जहाँ भारत में हजारों मंदिर हैं वहाँ एक और मंदिर ,वो भी ५०० करोड़ रूपए खर्च करके बनाना क्या जनता का पैसा का अपव्यय नहीं है ? इस पैसे को यदि कल्याणकारी कार्य /प्रगति मूलक कार्य में लगाया जाता तो युवकों को अपने भविष्य संवारने में मदत मिलती |देश/राज्य की प्रगति होती | लेकिन नितीश कुमार को इन बातों से क्या मतलब ? उन्हें तो व्होट से मतलब है | इसीलिए बी जे पी के राम मंदिर के प्रस्ताव को छोटा दिखाने के लिए उसने विश्व का सबसे बड़ा रामायण मंदिर बनाने का पासा फेका |उद्येश्य है- बी जे पी के व्होट बैंक में सेध लगाना | उन्होंने शिलान्यास किया और बी जे पी में खलबली मचा दी | नितीश कुमार यदि राज्य की प्रगति चाहते तो रामायण मंदिर के बदले उसी जगह पर विश्व का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय, जिसमें सभी प्रकार के शिक्षा उपलब्ध हों और शिक्षा सस्ती हों, बना सकते थे | प्राचीन काल में बिहार का नालंदा विश्वविद्यालय विश्व में शिक्षा का केन्द्र था | विश्व का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय बनाकर प्राचीन गौरव और संस्कृति का पुनोरोद्धार कर सकते थे | लेकिन उसमे शायद उन्हें "व्होट "का लाभ नहीं मिलता | इसीलिए नितीश कुमार मंदिर के शरण में आ गए |
बी जे पी भी यदि चाहे राम मंदिर का प्रस्ताव बदलकर विश्वस्तर का विश्वविद्यालय बना सकते हैं | परन्तु इसमें उनको भी व्होट का फ़ायदा नहीं होगा ,इसीलिए विश्वविद्यालय भी नहीं बनेगा |
नेता के अतिरिक्त करोड़पतियों और अरबपतियों में होड़ लगा रहता है कि कौन कितना मंदिर को दान देता है | ये लोग करोडो रुपये के साथ सोना ,चाँदी ,हीरे ,जवाहरत भी मंदिर में दान करते हैं | यह दान भगवान स्वीकार करते हैं कि नहीं यह तो भगवान ही जाने पर यह निश्चित है कि भगवान के तथकथित एजेंट सहर्ष नतमस्तक इसे स्वीकार करते हैं क्योकि ये धन इन्ही के तो काम आते हैं | ये धन न देश के न आम जनता के काम आते हैं | यह एक अनुपयोगी दान है | मंदिर को दान करने के बदले में यदि इस धन को समाज और जनता के प्रगति मूलक कार्य में खर्च किया जाय तो देश निश्चित रूप में प्रगति करेगा | समाज और व्यक्ति की प्रगति का मूल आधार है शिक्षा | शिक्षा दिनोदिन महँगी होती जा रही है | निम्नमध्य वर्ग और निम्न वर्ग के पहुँच के बाहर हो रहा है | उनके लिए अच्छे विद्यालय /महाविद्यालयीन शिक्षण सुविधाएँ उपलब्ध करा सकते हैं | इनके लिए अलग संस्था की व्यावस्था इन पैसों किया जा सकता है | परन्तु ये काम नहीं करेंगे क्योंकि शिक्षा की महँगी दुकान तो इन्ही की है | शिक्षा को इन्ही लोगो ने महँगी बनाके रखा है|
मान लिया कि ये लोग अपना धंधा बंद नहीं करना चाहते हैं ,परन्तु दान के लिए रखे धन को समाज के दुसरे कल्याणकारी काम में तो लगा सकते हैं | आज़ादी के ६५ साल के बाद भी गांवों में बुनियादी नागरिक सुविधाएँ उपलब्ध नहीं है | सौचालय नहीं है ,पीने कि पानी नहीं है ,सड़क नहीं है , साफसफाई कर्मचारी नहीं है ...... इत्यादि ,इत्यादि .....|ये अरबपति मंदिर को दान देने के बदले इन गांवों को एक एक कर गोद लें और दान के लिए रखे धन से इन गाँव को सभी सुविधाएँ उपलब्ध कराएँ तो सही माने में जनता जनार्धन की सेवा होगी , नर नारायण की सेवा होगी |देशकी सेवा होगी |देश आगे बढेगा ,पैसे का सदुपयोग होगा | स्वस्थ सेवाएं भी बहुत महँगी हो गयी है | इन रुपयों से जनता को सस्ती स्वस्थ सेवाएं भी उपलब्ध करा सकते हैं | परन्तु ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि महँगी शिक्षा की दुकान हो या महँगी स्वस्थ सेवा दुकान हो, सब इनके और इनके चेलों का है | मंदिर में दान शायद इसीलिए करते है कि भगवान इनकी महँगी दूकान चलाने में मदत करें | वैसे कई मंदिरों के पास अरबों रुपये हैं जो बैंक खाते में पड़े हुए हैं, उनका कोई सदुपयोग नहीं हो रहा है | उनपर राज नेताओं के गिद्ददृष्टि गढा हुआ है ,मौके के तलाश में है, कब उसको डकार लेंगे किसी को पता नहीं लगेगा |
अंत में यही कहूँगा कि नेता और उद्योगपति मिलकर जनता को बन्धक की जिंदगी जीने के लिए मजबूर कर दिया है | जनता को अब जाग जाना चाहिए ....सोचना चाहिए कि धर्म,मंदिर ,मस्जिद जैसे मुद्दे उनके प्रगति में बाधक है ,देश की प्रगति में बाधक है | प्रगति के कार्य किये बिना उनके बच्चों का भविष्य अंधकारमय है |जनता उन्ही कार्यों में सहयोग करें जिस से देश की प्रगति हो ,जिसमें नवयुवक/युवतियों को अपने भविष्य संवारने का मौक़ा मिले | अनुत्पादक कार्य का विरोध करे | नेता और उद्योगपति केवल अपने फायदे को ध्यान में रखकर कार्यक्रम बनाते हैं | न देश के बारे में सोचते है न जनता के बारे में | जनता को ही जनता और देश की प्रगति के बारे में सोचना है और अपने सबसे बड़ा अस्त्र "व्होट "को सावधानी से उपयोग करना है | जाति ,धर्म से ऊपर उठकर सर्वांगीण विकास (प्रगति) को ध्यान में रख कर इसका प्रयोग करना है |
कालीपद "प्रसाद '