शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

शिशु



                    
चित्र गूगल से साभार !
छोटा सुदर्शन अवोध शिशु
माँ के गोद में लेटा निश्छल शिशु
कभी मुस्कुराता है
कभी जोरजोर से रोता है
कभी ऊँगली मुहँ में डालता है
कहता है मानो ,मुहँ ही ब्रह्माण्ड है l
कभी जीभ निकालकर
दुनियाँ वालों को चिढाता है ,
कभी किसी बात पर हँसता है
कभी गंभीर एकटक निहारता है ,
कभी जोरसे चीखकर अपनी
नाराजगी का इज़हार करता है l
उसकी ख़ुशी हो या गम
आ ..आ ..ओ ..ओ .वो.. की ध्वनि
उसके शब्दकोष का प्रथम शब्द
मानव शब्दकोष की जननी l
भूख लगती है तो
मुख खोलकर दिखाता है ,
माँ ना समझे तो
रोने लगता है l
दूध पी कर सो जाता है दुनियाँ को भूलकर
किन्तु फिर उठता है दुगुना ताजा होकर l
ज्यादा देर सोना उसे पसंद नहीं
सुस्त बैठना भी उसे रास आता नहीं
उसे तो खड़ा होना है
अपने पैरों पर नाचना है
खुद खुश होना है
औरो को भी खुश करना है l
उसका निष्पाप निश्छल अलाप
धो देता हैं मनुज के मन के पाप
करता है दूर कलुष, सब मनस्ताप l  
तन मन हो जाता है पवित्र ,शिशु संग
कोरा ,निर्मल और निष्कलंक l

रचना : कालीपद “प्रसाद “
सर्वाधिकार सुरक्षित

20 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

तन मन हो जाता है पवित्र ,शिशु संग
कोरा ,निर्मल और निष्कलंक l
.लाज़वाब....दिल को छूते बहुत कोमल अहसास...

Sadhana Vaid ने कहा…

वाकई एक शुशु के सान्निध्य में मन सचमुच निर्मल निष्कलुष हो जाता है ! सारी चिंताएं और कड़वाहट स्वयमेव तिरोहित हो जाता है ! बहुत सुंदर रचना !

राजीव कुमार झा ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुति.
इस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 22/02/2014 को "दुआओं का असर होता है" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1531 पर.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

तन मन हो जाता है पवित्र ,शिशु संग
कोरा ,निर्मल और निष्कलंक l

लाज़वाब,बहुत कोमल अहसास......!

RECENT POST - आँसुओं की कीमत.

kavita verma ने कहा…

sundar prastuti ...

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

aapkaaa aabhaar Rajiv Ji

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

बहुत सुन्दर

Poonam Matia ने कहा…

धो देता हैं मनुज के मन के पाप
करता है दूर कलुष, सब मनस्ताप l
तन मन हो जाता है पवित्र ,शिशु संग
कोरा ,निर्मल और निष्कलंक l// atyant sunder shabd sanrachna evam bhav

nayee dunia ने कहा…

man agar shishi ki bhanti ho jaye to kya kahiye ...bahut sundar

रविकर ने कहा…

मनोहारी-
आभार आदरणीय-

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत कोमल अहसास .......

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत बहुत आभार !

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

mamtamayi ahsas ....

virendra sharma ने कहा…

अष्टांग हृदयम को मथ के आपने मख्खन परोस दिया है। विस्तृत पड़ताल करती श्रंखला आयुर्वेद के बुनियादी सिद्धांतों और आधार का। आभार आपकी निष्काम टिप्प्णियों का।

सुन्दर है श्रीमान !

virendra sharma ने कहा…

सुन्दर शब्द चित्र है शिशु का।

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

बहुत भाव-प्रवण रचना है !

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

'यह शिशु,अपनी नन्ही मुट्ठियों मे ,
कसकर बाँधे है सारा भविष्य !
''मेरे शिशु ,क्या ले कर आए हो इस मुट्ठी में ?"
और मुंदी कली- सी अँगुलियाँ खोलना चाहती हूं ,
वह कस कर भींच लेता है !
..और मैं हँस पड़ती हूँ ....'
-प्रतिभा.

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

शिशु के मुट्ठी में भविष्य है और मुस्कराहट में रहस्य है !

prritiy----sneh ने कहा…

ma avum shishu ka prem alokik hota hai... sunder rachna

shubhkamnayen

Akhil ने कहा…

aadarniya aapki rachnaye hamesha nav srijan ki prerana deti hain..bahut bahut abhiwadan