गुरुवार, 7 मार्च 2013

अहम् का गुलाम (भाग एक )

 आधुनिक युग में यद्यपि शिक्षा के  प्रचार प्रसार से जागरूकता बढ़ी है परन्तु दांपत्य जीवन में  जो धैर्य ,सहनशीलता और ठहराव चाहिए  उसकी कमी कदम कदम पर दिखाई देती है। आज कल नवदम्पति में समझदारी और समझौता की कमी है।फलस्वरूप बात तलाक  तक पहुँच जाती है। समय रहते यदि दोनों में से एक को भी सद्-बुद्धि आ जाये तो परिवार बच जाता है . देखिये कैसे ...........एक कहानी

                                    "अहम् का गुलाम " 

 

रश्मि ने कलाई में बंधी घडी देखी।रात्रि  के तीन बज रहा था।चारो तरफ निस्तब्तता  छायी हुई थी।रश्मि को छोड़कर दुनियां में शायद सभी नर,नारी ,बाल ,वृद्ध  गहरी नींद में सो रहे थे लेकिन उसकी आँखों में नींद नहीं थी।पास वाले पलंग पर प्रकाश  भी गहरी नींद में  सो रहा था।  लेकिन उसके दिमाग में प्रकाश के एक एक शब्द गूंज रहा था।स्वभाव से शांत ,सहनशील और मितभाषी प्रकाश ने रात को सोते समय शांत स्वर में ही कहा था ," रश्मि , सोचता हूँ कि पति-पत्नी का अर्थ एक छत के नीचे रहना नहीं है वल्कि उस से आगे है कुछ ।पति-पत्नी एक दुसरे के सुख दुःख के भागीदार होते हैं।  दोनों एक दुसरे के पूरक होते हैं।दोनों मिलकर ही एक पूर्ण व्यक्ति बनता है।इस पूर्णता के लिए यह जरुरी है कि पति-पत्नी एक दुसरे को अच्छी तरह समझने  की कोशिश करे। दुर्भाग्य से हम दोनों की प्रकृतियाँ ही भिन्न भिन्न है।शायद इसमें तुम्हारा या मेरा दोष कम है बचपन का परिवेश का प्रभाव ही इसके लिए जिम्मेदार है। "

           कुछ देर रुककर फिर कहा  ,"रोज रोज की झगडे भी  जीवन में कटुता का बिष  घोल रहा है ,तूम्हारे भी और मेरे भी।  इस नारी मुक्ति वर्ष में क्यों न हम दोनों तलाक  लेकर इस बिष  मय जीवन से मुक्त हो जाएँ ?" प्रकाश क्षणभर रूककर रश्मि की ओर देखा। रस्मी जो अभी तक आँख बंद किये हुए प्रकाश की बाते सुन रही थी, विस्फारित नयनों से प्रकाश की ओर ऐसे देखने लगी मानो उसके कान बादल के गर्जन से बहरे हो गए  और  आँखे बिजली की चमक से चौधियां गई हो।वह शिथिल हो गई थी।कुछ नहीं बोल पा रही थी। प्रकाश ने ही आगे कहा ,"इसमें न तुम मेरे ऊपर कोई दोषारोपण करोगी न मैं तुम पर।चूँकि दोंनो की प्रकृतियाँ ही अलग अलग है  इसलिए  दोनो  स्वेच्छा से इस बंधन से मुक्त हो जायेंगे वैसे, जैसे दो पथिक पथ में मिलते है ,कुछ् देर साथ चलते हैं और फिर चौराहे पर आकर अपने अपने पथ पर चल पड़ते  हैं। हम दोनों भी आज जीवन के चौराहे पर खड़े हैं। बिछुड़ने का दुःख तो होगा परन्तु  चौराहे पर खड़े रहना वुद्धिमानी नहीं है।" प्रकाश ने दीर्घ स्वांस छोड़कर कहा ,"गहन रात्री में जब तुम्हारा गुस्सा उतर जाए ,चारो तरफ शांति का वातावरण हो , तब निष्पक्ष होकर सोचना इस विषय पर और अच्छी तरह सोच समझकर मुझे बता देना। जो तुम चाहोगी वही होगा ,अंतिम फैसला तुम्हे ही करना है । " प्रकाश  करवट बदल कर लेट गया और न जाने कब उसकी नींद लग गई।रश्मि के दिमाग में तो प्रकाश की आवाज गूंज रही थी।उसके धमनियों में जैसेकुछ समय के लिए रक्त का संचार रुक गया था।वह स्वयं नारी मुक्ति संगठन की एक सक्रिय सदस्या थी।कई अवसरों पर उसने तलाक  पर व्याख्यान दिए ,दूसरों को तलाक  के लिए प्रोत्साहित भी किया ,परन्तु उसे अपनी तलाक की बात सुनकर उसका रक्त जम  गया था ।

                     रात्रि के चतुर्थ प्रहर समाप्त  होने वाला था परतु रश्मि  प्रकृतिस्थ नहीं हो पायी।सिरहाने पर रखे गिलास से उसने पानी पिया।थोडी देर  और आँख मुंद कर लेटी रही, मन में उठे तूफान को शांत करने की कोशिश करने लगी परन्तु उसके दिमांग में प्रकाश के ये शब्द गूंज रहे थे "........हम मुक्त हो जायेंगे वैसे ही ,जैसे दो पथिक पथ में मिल जाते हैं, कुछ दूर साथ साथ चलते  हैं ,फिर चौराहे पर आकर अपने अपने पथपर चल पड़ते है।" सच तो है .......,वे दोनों भी तो पथिक हैं ......।जीवन पथ पर पहली बार अपने ही घर में मिले थे ,कुछ दिन साथ रहे -बिछुड़े -फिर मिले।रश्मि सोचने लगी .....।स्मृति रेखा के सहारे वह अतीत में पहुँच गयी।उसके आँखों के सामने अपने जीवन की   हर बीती हुई घडी  चलचित्र की भांति गुजरने लगी। पिताजी सेना में मेजर थे।अत्यधिक तबादला के कारण मेरी पढ़ाई  में  क्षति उठाना पड़ता  था ,इसलिए मुझे कालेज हॉस्टल में भर्ती कर दिया गया।   उन दिनों मै बी . एस . सी . फ़ाइनल की परीक्षा देकर घर आई हुई थी।तभी एक दिन हमारे घर कुछ मेहमान आये।    पिताजी ने उन्हें बड़े आदर से बैठाया।मेहमानों में एक सुन्दर ,शांत और मितभाषी युवक भी था।जब पिताजी ने परिचय कराया तब पता लगा कि वह बी .ई .फ़ाइनल का छात्र था ।पापा ने कहा ,"यह  प्रकाश है।वह  प्रोफ़ेसर साहब का बेटा  है , बी .ई .फ़ाइनल का छात्र है ,और हमेशा कक्षा में प्रथम आता है। वह भी छुट्टी में घर आया हुआ है ।"*

                                                              (  क्रमश:)

कालीपद "प्रसाद "

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13 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

आपकी कलम जादू की तरह चलती है।
आपकी इस साइट की सदस्यता मैंने ग्रहण कर ली है। आशा है आप मुझे आर्शीवाद प्रदान करते रहेंगे।

Unknown ने कहा…

आगे की कहानी पढने की उत्कंठा है ...जल्द पोस्ट करियेगा

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

आभार !

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

आभार !

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

utsukta ko badhati prastuti,sundar prastuti,NEW---lipat kar....2.nav vama......

virendra sharma ने कहा…

पूर्व दीप्ति में आगे बढती कथा में दम है .तलाक एक शब्द नहीं माइंड सेट है ,बदलाव है जीवन धारा में .

virendra sharma ने कहा…

तलाक !तलाक! तलाक! का क्या मतलब होता होगा ?

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा ...

nayee dunia ने कहा…

आगे क्या हुआ ....? दिलचस्पी बढ़ गयी ..

Jyoti khare ने कहा…

उत्सुकता जारी है----
बढ़िया लिखा जा रहा है

dr.mahendrag ने कहा…

Achhi kahani,aagey ka intjar rahega,par talak ka faisla hamare antarman ko nichay hi dukhi karega. DEKHO KYA HOTA HAE?

Anita ने कहा…

रोचक कहानी..

vandana gupta ने कहा…

teesra bhag nahi padh payi abhi tak aaj hi dono padhe hain teesra open hi nahi ho raha