मंगलवार, 6 अगस्त 2013

भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!

               इस आलेख का आधार श्री  पूरण खंडेलवाल जी  द्वारा उठए गए महत्वपूर्ण प्रश्न "भ्रष्टाचार और अपराध पोषित व्यवस्था  को बदलने  का रास्ता आखिर क्या है ?" इसके टिप्पणी संक्षेप में तो दे दिया था परन्तु बात दिमाग में गूंजती रही और अंतत: इसका उत्तर  विस्तृत रूप में यह खुद ही एक आलेख बन गया  है.।
              वास्तव में इस प्रश्न से जुड़े कोई भी व्यक्ति इस प्रश्न का उत्तर  नहीं देना चाहता है ,राजनेता तो  कतई  नहीं। इस प्रश्न के उत्तर के लिए हमें   लोकतंत्र के प्रमुख आधारों पर विचार करना पड़ेगा।भारतीय संविधान के अनुसार लोकतंत्र के तीन आधार स्तंभ हैं।  वे है संसद (Legislative), कार्यकारिणी/प्रबंधकारिणी (Executive ), और  न्यायलय (Judiciary )। लेकिन आधुनिक समय में एक और जुड़ गया है ,वह है मिडिया। इस प्रकार लोकतंत्र में चार आधार स्तंभ हो गए है।  इन  चार आधार स्तंभ के अलावा जनता को सबसे शक्तिशाली आधार स्तंभ माना गया है.। यह जब चाहे शासन में उलट फेर कर सकती है। सैद्धांतिक रूप से यह सुनने में बहुत अच्छा लगता है परन्तु वास्तविकता से यह कोशों दूर है.। वास्तविकता यह है की भारत में जनतंत्र के नाम पर करीब ५५० परिवारों का राज चल रहा है और बाकी जनता उनका बंधक हैं। भ्रष्टाचार और अपराध को मिटाने के लिए जनता के पास कुछ मौलिक अधिकार होना चाहिए जो उनके पास नहीं है.। वे अधिकार हैं १. यदि उनके चुने हुए प्रतिनिधि  जनता के हित में काम ना करे तो उसे पद से हटाने की क्षमता (right to recall ) होनी चाहिए ,वह अभी नहीं है.।  २. यदि उम्मीदवार का क्रिमीनल रिकॉर्ड है तो उसे रिजेक्ट (right to reject )करने का आप्शन मतपत्र में होने चाहिए ,यह भी अभी नहीं है.। अत: वर्तमान परिस्थिति में जनता व्होट के माध्यम से कोई परिवर्तन नहीं ला सकता। सभी पार्टी के उम्मीदवार  दागी है ,उन्ही में से किसी को वाध्य होकर चुनना पड़ेगा। जनता के पास कोई विकल्प नहीं है.।  जनता लाचार है.।   
           संविधान के निर्मातायों ने दुनियाँ के संविधानों से अच्छी अच्छी बातों को लेकर भारत के संविधान को उदार और आदर्श संविधान बनाने की कोशिश की। उन्होंने सातिर बदमास और संगीन अपराधियों पर नकेल कसने की कोई कोशिश नहीं की.। असल में उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि  कोई अपराधी भी सांसद   बन सकते हैं.।  उदारता  से उन्होंने संविधान में यह प्रावधान रखा है कि २/३ बहुमत से संविधान के किसी भी धारा को बदला या नई धारा जोड़ी जा सकती है.। इसी का फायदा उठाकर , लोकतंत्र के रक्षक न्यायालय ,चुनाव आयोग एवं अन्य संस्थायों द्वारा दिया गया जनहित निर्णयों को संसद में नियम बनाकार निरस्त  किया जाता है और अपराधियों को बचाया जाता है.।  हाल ही में आर टी आई द्वारा फैसला सुनाया है  कि सभी पार्टिया आर टी आई के दायरे में आएगी । इसको निरस्त करने के लिए केबिनेट ने 'पार्टी को आर टी आई से बाहर' रखने का प्रस्ताव पास कर दिया।चूँकि यह सभी पार्टी के हित में है ,इसमें कोई बहस नहीं होगी और सर्वसम्मति से एक दिन में ही पास हो हाने की उम्मीद है.।  सुप्रीम  कोर्ट ने फैसला दिया है कि जिसको दो साल या उससे ज्यादा की सजा हुई है वह चुनाव नहीं लड़ सकता और कोई जेल से चुनाव नहीं लड़ सकता। पार्टियाँ इस फैसले से भी  खुश  नहीं हैं और इसको भी विधेयक द्वारा निरस्त करने की तैयारी चल रही है.। यह संविधान द्वारा दिया गया विशेषाधिकार का दुरूपयोग है जो ना तो जनता के हित में है ना देश के हित में है.। यह अधिकार सिर्फ जनता और देश हित में उपयोग  होना चाहिए था पर यह गुंडे-बदमास ,आर्थिक अपराधियों और बाहुबलियों  को बचाने में किया जा रहा है.।
             जनता "भ्रष्टाचार और आपराधिक " परिस्थिति में परिवर्तन दो ही तरीके से ला सकती है.। पहला वैलेट द्वारा (व्होट द्वारा ),दूसरा है क्रांति द्वारा।व्होट के द्वारा परिवर्तन संभव नहीं हैं ,इसका कारण उपरोक्त  पंक्तियों  में मैंने बताया है.। दूसरा है क्रान्ति। इसमें  भी जल्दी कोई परिवर्तन लाना संभव नहीं दीखता। क्रान्ति के लिए एक ऐसा नेता चाहिए जो सभी दृष्टिकोण से साफ़ सुथरा छबि रखता हो ,साथ में गांधीजी जैसे जनता का हिताकांक्षी हो,जिनके आह्वान पर जनता मर  मिटने के लिए तैयार  हो जाय.। आज भारत  जाति ,धर्म, साम्प्रदायिकता , भाषा आदि में बंटा हुआ है.।  इस  दशा में कोई सर्वमान्य नेता का होना भी मुश्किल लगता है.। इसीलिए क्रान्ति तो दूर दूर तक दिखाई नहीं देती। हाँ नेता विहीन जन-क्रान्ति अगर हो जाय तो यह एक नया इतिहास होगा। फिलहाल जनता मार खाने के मुड  में हैं और नेतायों द्वारा हर तरफ से पिटे जा रहे हैं।
            मिडिया सामाजिक पिलर है.। आज यह पिलर सबसे शक्तिशाली पिलर के रूप में उभरी है.।  जनता की सफलता उसके  कार्य प्रणाली पर निर्भर है.। भ्रष्टाचार के  विरुद्ध श्री अन्ना हजारे के  आन्दोलन को जब मिडिया का  सहयोग मिला, बहुत सफल हुआ परन्तु जब मिडिया ने सपोर्ट  करना बंद कर दिया वह आनोलन अब मृतप्राय है.। इसका कारण यही है की मिडिया भी ईमानदार नहीं है.। अपने स्वार्थ के लिए कभी भी पल्ला बदल लेते हैं.। यही कारण है कि  सचाई की जीत नहीं होती। मिडिया छोटी छोटी बातों को सनसनीखेज बना देती है और कभी कभी बड़ी बड़ी सचाई को दबा देती है.। भ्रष्टाचारी राजनीतिज्ञों और अपराधियों के करतूतों को पहले तो उछालते  हैं फिर अचानक न जाने उनके सुर  क्यों बदल जाते हैं.। या तो वे चुप बैठ जाते हैं या उनके ही कसीदे पड़ने लग जाते हैं.। निष्पक्षता नहीं के बराबर है ,जबकि समाचार प्रसारण में अपनी मत नहीं, वास्तविकता का प्रसारण होना चाहिए। ज्यादातर चेनलों के मालिक व्यावसायी या राजनेता हैं ,इसीलिए ये निष्पक्ष नहीं हो सकते।अपने पैर पर कुल्हाड़ी कैसे मारेंगे ? जनता के हित के पहले उन्हें तो अपना हित देखना है ,इसीलिए जनता  को इनसे भी ज्यादा आशा नहीं रखनी चाहिए।
            अब हम संवैधानिक पिलर की बात करें। उनमें सबसे पहले है   संसद (Legislative)। जनता चुनकर अपना प्रतिनिधि संसद भेजती है इस उम्मीद से कि  वे जनता के हित के लिए ही काम करेंगे, परन्तु पिछले साठ  वर्ष का अनुभव बताता है कि चुनाव जीतने के बाद इनको अपनी फायदा के सिवाय कुछ याद् नहीं रहता है.।पूंजीवादी व्यवस्था में जनता को उतना ही साधन उपलब्ध कराया जाता है  जितना उसको जीवित रहने केलिए आवश्यक है.। हमारे चुने हुए प्रतिनिधि भी यही कर रहे हैं.। खुद सभी सुख सुविधायों का उपभोग कर रहे हैं और जनता को जीवित रखने के लिए दो टुकड़े उनके सामने डाल देते हैं.। प्रजातंत्र के आड़ में पूंजीवाद को चला रहे हैं.। वे केवल अपनी फायदा की बात सोचते हैं.। अभी यदि वे लखपति हैं ,तो करोडपति कैसे बने? करोडपति हैं तो अरबपत कैसे बने ? यही होता है उनका प्रमुख एजेंडा। पूरी सरकारी योजना इस बात को ध्यान में रखकर बनयी जाती है कि  उस से उनको कितना लाभ होने वाला है.। अपने और अपने गुर्गों के फायदा के लिए कोई भी नियम को तोड़ मरोड़ सकते हैं और बिना कोई दंड के इस अपराध से मुक्ति पा लेते हैं.। मौजूदा क़ानून उनके ऊपर नकेल कसने में असमर्थ हैं या असमर्थ बना दिया गया है.। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को प्रभावहीन कर दागी और सजायाप्त नेतायोंको चुनाव लड़ने का अधिकार को पुनर्जीवित  करने के लिए  सभी पार्टियाँ एक मत हो जाएँगे परन्तु जनहित के लिए "जन लोकपाल बिल " या 'महिला आरक्षण बिल' पर कभी एक मत नहीं होंगे। इसीलिए मौजूदा परिस्थिति में चुने हुए प्रतिनिधियों से कुछ अच्छाई या जनता के पक्ष में गुणात्मक सुधर की उम्मीद करना , अपने आपको छलना होगा।
             दूसरा संवैधानिक पिलर है कार्यकारिणी/प्रबंधकारिणी (Executive )। यह संसद की छाया है या यों कहे सांसद और मंत्रियों की छाया है.। जो भी नियम संसद में पारित होता है ,उसका पालन करना /कराना कार्यकारिणी/प्रबंधकारिणी की जिम्मेदारी है.। यह अधिकार मुख्यत: आई ए एस और आई पी  एस अधिकारियों के हाथ में हैं.। इंसान स्वाभाव से लालची होते हैं और यह सच साधू महात्माओं पर भी लागू होता है.।  आई ए एस और आई पी  एस तो  हम आप जैसे साधारण लोग होते हैं.। इनमे भी वे दुर्गुण हैं परंतु  सुप्त अवस्था में रहते है लेकिन संगत से आदत बिगड़ जाती है.। दिनरात वे भ्रष्ट नेतायों के साथ घूमते रहते हैं.। नेता उन्ही से गलत काम करवाते हैं ,क़ानून तुड़वाकर देश की सम्पद लुट रहे हैं,बदले में उन्हें भी कुछ टुकड़े  डाल  देते हैं.। पकडे गए तो बलि का बकरा यही अधिकारी को बनाया जाता है , नेता नहीं ।  इसीलिए इनमे  यह सोच भी आ जाता है कि बलि   का बकरा जब बनना है तो खाकर ही बनो।  यहीं से अधिकारी भी भ्रष्ट हो जाते  हैं.। लेकिन सभी आई ए एस और आई पी  एस अधिकारी इस विचार धारा के पोषक नहीं है.। इसका ज्वलंत उदहारण है दुर्गा शक्ति नागपाल।यह भली भांति जानते हुए कि उत्तर प्रदेश की भ्रष्ट सरकार के मंत्री और अधिकारीयों से पंगा लेना भारी पड़ेगा ,   उसने अपनी इमानदारी पर आंच आने नहीं दी.। कल तक दुर्गा शक्ति नागपाल को कोई नहीं जानता था परन्तु आज उसकी इमानदारी , उसकी सच्ची पहचान बनकर पूरा भारत में फ़ैल गया है.। उसकी इमानदारी और हिम्मत ने भ्रष्टाचारी सरकार की पोल खोल दी.। समाचार के अनुसार आई ए एस असोसिएसन "दुर्गा शक्ति " के सपोर्ट  में चट्टान की तरह खड़ी है.। अगर यह सच है तो उत्तर प्रदेश सरकार उसका बाल भी बांका नहीं कर सकती। आई ए एस अधिकारी चाहें तो एक दिन में ही अखिलेश सरकार को झुका  सकती है.। यही मौका है उन्हें नियानुसार सरकार को नोटिस  देकर असहयोग आन्दोलन करना चाहिए। जनता को असुविधा  जरुर होगी परन्तु लम्बी अवधी में यह जनता के लिये  फायदामंद साबित होगा , इसीलिए यदि आई ए एस अधिकारी असहयोग आन्दोलन करते हैं तो जनता को उनसे सहयोग करना चाहिए। जनता और कार्यकारिणी/प्रबंधकारिणी मिलकर भ्रष्ट नेताओं को आइना दिखा सकते हैं.। कार्यकारिणी/प्रबंधकारिणी को चाहिए कि वह नेताओं के अनैतिक ,गैर कानूनी आदेश का पालन ना करे। हमेशा कानून के दायरे में काम करे और जनता के हित में काम करे.। सरकार तो असल में वही चलाते हैं ,इसीलिए जनता का अभी भी उन भर पूरा भरोसा है.। वे चाहें तो भारत को भ्रषाचार मुक्त बनाने में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं.। 
             संवैधानिक तीसरा और अंतिम पिलर है न्यायलय (Judiciary )। जब लोग संसद और कार्यकारिणी से निराश हो जाते हैं तो न्यायलय (Judiciary ) के शरण में आते हैं.। लोगो को अभी भी न्यायालय  पर भरोषा है। बिगत दिनों में दिया गया सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय कि, "जिसको दो  साल  या उससे ज्यादा दंड मिला हो वह चुनाव नहीं लड़ सकता और कोई व्यक्ति जेल से चुनाव नहीं लड़ सकता। " जनता का विश्वास को और दृढ़ बनाता है.। परन्तु न्यायाधीश निर्मल यादव के बारे में सुनकर शंका उत्पन्न होती है.। हालाकि सभी न्यायाधीश ऐसे नहीं होते है.। भ्रष्टाचारी न्यायाधीशों की संख्या नगण्य हैं.। इसीलिए जनता न्यायालय के प्रति पूर्ण आस्था रखती है.।  भविष्य में अगर किसी से सबसे ज्यादा उम्मीद है तो वह है न्यायालय, जो जनता की आज़ादी और हित की सही  रक्षक हैं.। उपरोक्त दोनों निर्णय जैसे जनहित निर्णय यदि न्यायालय सुनाते रहे तो संसद कितने निर्णयों को प्रभाव हीन बना पायेंगे ? अगर ऐसा करेंगे तो फिर जनक्रान्ति तो निश्चित है.।  इसीलिए मेरा विचार है कि न्यालालय , कार्यकारिणी और जनता  मिलकर ही भारत की 'भ्रष्टाचार और अपराध पोषित" छबि को बदल सकते हैं.।

नोट : ऊपर बताये गए सभी विचार मेरे व्यक्तिगत विचार हैं ,आप सहमत हो सकते है और नहीं भी। टिप्पणी  में अपना विचार व्यक्त कर सकते हैं.। 


कालीपद  "प्रसाद"


26 टिप्‍पणियां:

Ramakant Singh ने कहा…

CHRCK AND BALANCE THEORY
संतुलन और नियंत्रण के सिद्धांत की कमी और विशाल भारत में संविधान के नियमन में कमी इसका कारन प्रतीत होता है और शायद बदलता परिदृश्य भी जिम्मेदार हो गया है

दिगम्बर नासवा ने कहा…

इन चार खम्बों के अलावा सामाजिक क्रान्ति भी एक खम्बा हुआ करती थी हमारे देश में जो सदियों तक देश का संचालन करती रही इन सभी खम्बों के अलावा ... वैसे भी इन चार खम्बों में समाज की सीधी भागीदारी बस एक ही खम्बे में है जिसका फायदा समाज को बाँट के नेता लोग करते रहते हैं ... दरअसल समाज में अच्छे लीडर नहीं पैदा हो रहे ...

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

आप सही कह रहे हैं दिगम्बर नासवा जी ,असल में हमारे देश में निस्वार्थ नेता पैदा ही नहीं हो रहे है .उसका इन्तेजार रहेगा

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

हमें संविधान नें तीन खम्बे ही दिए थे और चौथा खम्बा तो अपनीं उपयोगिता के कारण ही स्वस्थापित हुआ है लेकिन आज उस खम्बे की हालत भी जर्जर अवस्था को प्राप्त कर चुकी है ! संविधान प्रदत खम्बों में जिस खम्बे की विश्वनीयता सबसे संदिग्ध हो चली है उसी नें बाकी खम्बों पर आधिपत्य स्थापित कर लिया है इसलिए अब अगर इसमें सुधार नहीं होता है तो जिसकी आशा दिखाई दे नहीं रही है तो जनक्रांति की और अग्रसर हो सकता है भारत क्योंकि लोगों का गुस्सा व्यवस्था के प्रति स्पष्ट बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है !!
मेरे आलेख को विस्तारित करनें के लिए आपका सादर आभार !!

Maheshwari kaneri ने कहा…

कालॊ प्रसाद जी ..अब बहुत होगया बदलाव तो चाहिए ही मैं आप के विचारों से सहमत हूँ

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

महेश्वरी जी !हमसब चाहते है परिवर्तन लेकिन परिवर्तन हो तो कैसे ?यही तो प्रश्न .एकमात्र रास्ता है जनता रास्ते पर आजाये और सरकार को मजबूर कर दे जन लोक पाल जैसे बिल पास करने लिए

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन के टीम का ह्रदय से आभार

देवदत्त प्रसून ने कहा…

मित्र,लंबी अवधि के बाद स्वास्थ्य- लाभ प्राप्त कर के आप की सेवा में उपद्थित हूँ ! आप के ई सत्य-निष्ठा के लिये वधाई !

Kailash Sharma ने कहा…

बदलाव की अतीव आवश्यकता है लेकिन जो आज के हालात हैं उसमें कुछ होने की उम्मीद कम ही दिखाई देती है....

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…


आप बहुत जल्दी फिट हो जाइये और साहित्य सेवा करते रहिये

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

मुझे मेरी टिप्पणी दिखाई नहीं दे रही स्पैम में चली गयी क्या !

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुंदर सटीक !

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

आपका कमेंट्स मेरे मेल में आया है .उसका कापी यहाँ पेस्ट कर रहा हूँ .........................
पूरण खण्डेलवाल ने आपकी पोस्ट " भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!! " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

हमें संविधान नें तीन खम्बे ही दिए थे और चौथा खम्बा तो अपनीं उपयोगिता के कारण ही स्वस्थापित हुआ है लेकिन आज उस खम्बे की हालत भी जर्जर अवस्था को प्राप्त कर चुकी है ! संविधान प्रदत खम्बों में जिस खम्बे की विश्वनीयता सबसे संदिग्ध हो चली है उसी नें बाकी खम्बों पर आधिपत्य स्थापित कर लिया है इसलिए अब अगर इसमें सुधार नहीं होता है तो जिसकी आशा दिखाई दे नहीं रही है तो जनक्रांति की और अग्रसर हो सकता है भारत क्योंकि लोगों का गुस्सा व्यवस्था के प्रति स्पष्ट बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है !!
मेरे आलेख को विस्तारित करनें के लिए आपका सादर आभार !!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए पहले स्वयं को बदलना होगा तब कहीं ये संभव हो पायेगा,,,,,

RECENT POST : तस्वीर नही बदली

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

जनता का सचेत होने के साथ अपनी पूरी क्षमता के साथ सक्रिय होना भी ज़रूरी है - नहीं तो कुछ नहीं होने का.

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

एक विचारणीय आलेख .....
सामयिक और सटीक पोस्ट.....
सादर

virendra sharma ने कहा…

भाई साहब हवा पानी मिट्टी अग्नि आकाश और पृथ्वी को हिजिस तंत्र ने गंधा दिया उसे तो पहले अब सरकंडे की फसल की तरह जलाना ही होगा। उम्मीद तो भारतीय प्रशाशनिक सेवा ,न्याय सेवा सभी से बंधती है लेकिन। ..... अँगरेज़ आई सी एस तंत्र की मार्फ़त ही भारत पर शाशन कर पाए थे। राय बहादुर राय साहब अब काले हो गए हैं पहले गोर थे। ये फिर से गोर बनें तो बात बने। गोर बोले तो निर्दोष निष्ठा वाले समर्पित लोग। गोर बोले तो अंग्रेजों के मनमोहन नहीं।

Anita ने कहा…

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को प्रभावहीन कर दागी और सजायाप्त नेतायोंको चुनाव लड़ने का अधिकार को पुनर्जीवित करने के लिए सभी पार्टियाँ एक मत हो जाएँगे परन्तु जनहित के लिए "जन लोकपाल बिल " या 'महिला आरक्षण बिल' पर कभी एक मत नहीं होंगे

राजनीति में आयी गिरावट से डरकर अच्छे व्यक्ति इससे दूर ही रहते हैं, इसका खामियाजा देश को भुगतना पड़ता है.

Unknown ने कहा…

आपका लेख पढ़कर तो यही लगता है कि अभी परिस्थितियां आनन फानन में सुधरने वाली नहीं हैं ..और सच्चाई भी ये ही है । ये बहुत ही लम्बी प्रक्रिया प्रतीत हो रही है ।आज की इस भौतिक सुखों की बढती लालच को बहुत ही ज्यादा प्राथमिकता दे दी गई है आम जिन्दगी में .और लोगों ने अपनी दौलत को बढ़ाने के लिए हर रास्ते अपनाने की ठान ली है ..चाहे वो रास्ते नैतिक हों या अनैतिक ..उसे समझने के लिए कौन सिरदर्द करे और क्यूँ करे । इंसानियत की गिरावट ..डॉलर के मुकाबले रूपए की कीमत में आई गिरावट से कहीं सौ गुनी तेजी से हो रही है ।

Neeraj Neer ने कहा…

देश और समाज व्यक्ति से मिलकर बनता है . देश और समाज को सुधरने के लिए हरेक व्यक्ति को अपना चरित्र सुधारना होगा और अनुशासन बनाने के लिए दंड विधान का सख्ती से पालन किया जाना आवश्यक है ..

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

नैतिक मूल्यों का गिरावट रूपया के गिरवट से ज्यादा है .आप सही कह रहे हैं

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

हम तो प्यारे मोहन को इमानदार बोले तो गोरे समझ रहे थे

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

अच्छे अभिमन्यु की कमी नहीं है पर उनके पास चुनाव जितने केलिए पैसा नहीं है .जनता भी उसको जिताएंगे नहीं ,पूरा सिस्टम ऐसा बना दिया गया है की iइमानदार चुनाव ही लड़ ना पाए

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…


वर्तमान परिस्थिति में दंड विधान मे परिवर्तन होने की उम्मीद नहीं है. 'जन लोकपाल बिल' का हाल तो सबको बिदित है

Arvind Mishra ने कहा…

भारत के लिए अब लोकतंत्र एक भयावह मायावी राक्षस बन गया है गया है -वह हर उस जुगत को फेल कर देगा जो उसके ऊपर उंगली भी उठाएगा

ब्लॉग - चिट्ठा ने कहा…

आपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियाँ ( 6 अगस्त से 10 अगस्त, 2013 तक) में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।

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