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गूगल से साभार |
चंदा मामा है ....दूर देश में ...
घुमते फिरते हैं .. आकाश में ...|
पल पल बढ़ते ..बढ़ते जाते ...
सूरज जैसा गोल हो जाते ...
पूर्णिमा को धवल चाँदनी
धरती पर वो फैलाते .....,
चांदनी फैली वन जंगल में
हिम आलय ओ अम्बर में...
चंदा मामा है ....दूर देश में ...
घुमते फिरते हैं .. आकाश में ..|
फिर मामा का रूप बदलता...
पल पल वो घटता जाता ...
अमावश में वो छिप जाता...
धरती पर अँधेरा छा जाता .....
एक दिन का विश्राम लेकर
फिर उग जाते आकाश में ....
चंदा मामा है ....दूर देश में ...
घुमते फिरते हैं .. आकाश में ..|
कालीपद "प्रसाद "
©सर्वाधिकार सुरक्षित
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15 टिप्पणियां:
CHANDAMAAMA KA SUNDAR CHITRAN AUR PRAKRITI KA MANORAM DARSHAN
चन्द्र कलाओं को बाल रचना के रूप में समझा दिया आपने।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (17-12-13) को मंगलवारीय चर्चा मंच --१४६४ --मीरा के प्रभु गिरधर नागर में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
bahut sundar rachna
आपका आभार मयंक जी!
बहुत सुन्दर भाव लिए ... अच्छी प्रस्तुति ...
बहुत खूब ,उम्दा पोस्ट के लिए बधाई |
चन्द्र कलाओं को शब्द देती सुन्दर प्रस्तुति
बहुत ही उम्दा,अभिव्यक्ति ...!
RECENT POST -: एक बूँद ओस की.
बहुत सुन्दर रचना.
चन्द्र कलाओं को द्र्शाती सुन्दर प्रस्तुति..आभार
BAHUT HI SUNDAR RACHNA ...............
बहुत सुंदर सरल शब्दावली ........
बहुत सुन्दर .
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