कोमल,मुलायम भाव के धनी,
चुनकर शब्द सागर से मोती दो चार ,
भाव-धागों में पिरीते क्रम से, और
बनकर तैयार होता है मोती-हार।
उन्माद लहरें डराते सबको,
खड़े हैं जो सागर तट में ,
साहसी , सूरबीर, लहर चीरकर,
चुन लाते हैं मोती, सागर तल से।
मैंने देखा कुछ बिखरे मोती,
पड़े हैं मेरे मन के भाव सागर में ,
किस धागे में पिराऊं उनको,
पड़ गया मैं इसी सोच में।
कभी भाव मिले तो शब्द नहीं,
कभी शब्द मिले तो भाव नहीं ,
शब्द - भाव में कुछ मेल हो सकता है ,
पर पूर्ण मिलाप आसान नहीं।
माना कि शब्द में शक्ति अनत है ,
पर भाव के आगे वह लाचार है,
हर नया भाव ,विचार के लिये ,
करना पड़ता है नया शब्द का संचार है।
ह्रदय वीणा में उठती कम्पन करती है ,
उद्वेलित और चंचल मन प्राण ,
बलवती ,वेगवान भावना बहने लगती है कलम से ,
छोड़ जाती है कागज पर छाप, शब्द रूप में।
भाव जब चरम सीमा में हो ,
नहीं करती इंतजार कागज कलम का ,
आह !!!!!! वाह !!!!!! के रूप में गूंज उठती है ,
आवाज बनके धड़कन दिल का।
आवाज भी शब्द का अन्य रूप है ,
गूंजती है सदा , सर्वत्र सूक्ष्मरूप में,
भाव भी सूक्ष्म है, रहती है मन के आँगन में ,
भाव ,शब्द एक हो जाता है मिलकर ब्रह्मनाद में।
कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित
चुनकर शब्द सागर से मोती दो चार ,
भाव-धागों में पिरीते क्रम से, और
बनकर तैयार होता है मोती-हार।
उन्माद लहरें डराते सबको,
खड़े हैं जो सागर तट में ,
साहसी , सूरबीर, लहर चीरकर,
चुन लाते हैं मोती, सागर तल से।
मैंने देखा कुछ बिखरे मोती,
पड़े हैं मेरे मन के भाव सागर में ,
किस धागे में पिराऊं उनको,
पड़ गया मैं इसी सोच में।
कभी भाव मिले तो शब्द नहीं,
कभी शब्द मिले तो भाव नहीं ,
शब्द - भाव में कुछ मेल हो सकता है ,
पर पूर्ण मिलाप आसान नहीं।
माना कि शब्द में शक्ति अनत है ,
पर भाव के आगे वह लाचार है,
हर नया भाव ,विचार के लिये ,
करना पड़ता है नया शब्द का संचार है।
ह्रदय वीणा में उठती कम्पन करती है ,
उद्वेलित और चंचल मन प्राण ,
बलवती ,वेगवान भावना बहने लगती है कलम से ,
छोड़ जाती है कागज पर छाप, शब्द रूप में।
भाव जब चरम सीमा में हो ,
नहीं करती इंतजार कागज कलम का ,
आह !!!!!! वाह !!!!!! के रूप में गूंज उठती है ,
आवाज बनके धड़कन दिल का।
आवाज भी शब्द का अन्य रूप है ,
गूंजती है सदा , सर्वत्र सूक्ष्मरूप में,
भाव भी सूक्ष्म है, रहती है मन के आँगन में ,
भाव ,शब्द एक हो जाता है मिलकर ब्रह्मनाद में।
कालीपद "प्रसाद "
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4 टिप्पणियां:
कभी भाव मिले तो शब्द नहीं,
कभी शब्द मिले तो भाव नहीं ,
शब्द - भाव में कुछ मेल हो सकता है ,
पर पूर्ण मिलाप आसान नहीं।.... जीवन के वास्तविक कैनवस पर यह आंखमिचौली ही सत्य है,अपूर्णता में ही पूर्णता की तलाश है
सुंदर भावपूर्ण रचना |
किस धागे में पिराऊं उनको,
पड़ गया मैं इसी सोच में।
आप पहले ही इसे अपने शब्दों के धागे में पिरो चुके है
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
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