महाराष्ट्र में पुणे जिले के मालन गाँव में प्राकृतिक आपदा आई है |
इस प्रलय में ७१ लोग मारे गए ,१०० से ज्यादा लोगों की मलवे में दबे होने की आशंका है | ८ लोगो को बचा लिया गया है| टी वी चनेलो में ,समाचार पत्रों में यह प्रचार किया जा रहा है कि यह महादेव का प्रकोप है | वास्तविकता तो यह है कि अत्यधिक वर्षा के कारण मिट्टी बहुत गिली हो गयी और पत्थर के साथ मिटटी भी नीचे आगये जिससे यह हादसा हुआ | ऐसे हर प्राकृतिक घटना को भगवान से जोड़कर जनता को डराना ठीक नहीं है| गाँव के नजदीक स्थित ज्योतिर्लिंग भीमा शंकर मंदिर में पूजा पाठ किया जा रहा है | अभी पीड़ितों की मदत ज्यादा जरुरी है या पूजा ? राज्य सरकार ने मृतकों के परिवार को ५-५ लाख रुपये का मुवाब्ज़ा का एलान कर चूका है , केंद्र सरकार भी २-२ लाख मुवाब्ज़ा का एलान किया है | लेकिन प्रश्न उठता है कि जिस परिवार के एक भी व्यक्ति जीवित नहीं है तो मुवाब्ज़ा किसको मिलेगा ? कौन लेगा मुवाब्ज़ा ? क्या यह मुवाब्ज़ा सरकारी मसिनरी में दफ़न हो जायेगा या सरकारी खजाने से निकलेगा ही नहीं ? केवल घोषणा बनकर रह जायेगा?
माना जाता है भक्त हैं तभी भगवान् का मान है ,मर्यादा है , अस्तित्व है |अगर भक्त ही नहीं है तो भगवान को कौन पुजेगा ? उनके अस्तित्व को कौन स्वीकार करेगा ? इसीलिए भगवान् भक्तों का नुक्सान नहीं कर सकता | मंदिर के पुजारी और प्रबंधक इस बात को नज़र अंदाज़ कर देते हैं | वे भूल जाते हैं कि मंदिर में दान भक्त ही करते है | तिरुपति का बालाजी मंदिर हो या शिर्डी का साईं मंदिर हो ,उनके खजाने में जो भी अरबों की संपत्ति जमा है ,सब भक्तो का ही तो दिया हुआ है | अब जब भक्त मुसीबत में है तो क्या वे रुपये भक्तो का काम नहीं आना चाहिए ? क्या मंदिरों के प्रबंधक मिलकर पीड़ित व्यक्तियों के लिए नया गाँव बसा नहीं सकता ? उनके खेतीबाड़ी ,व्यवसाय का इंतजाम नहीं कर सकता ? बच्चों के लिए दूध और बड़ों के लिए भोजन,वस्त्रादि का इंतजाम नहीं कर सकता ? इस मुसीबत के मारे लोगों के लिए यदि इन रुपये का उपयोग नहीं हुआ तो यह अकूत धनराशी किसके और किस काम आएगा ? हवन के नाम से घी जलाना और अभीषेक के नाम से दूध का नदी बहाना क्या उचित है जहाँ बच्चे कुपोषण से ग्रसित हैं और दूध के लिए विलख रहे हैं? अभीषेक के बदले यदि दूध बच्चों को पीने केलिए दिया जाय तो क्या महादेव नाराज़ हो जायेंगे ? शायद जनहितकारी यह कार्य पुजारी एवं प्रबंधकों को मंजूर नहो, कारण सर्व विदित है |
साईं फ़क़ीर थे और उन्होंने हर इंसानकी मदत की जो मुसीबत में पड़कर उनके पास आया |मालन गाँव के सभी निवासी साईं के भक्त है और भगवान शकर की भी, किन्तु मंदिरों के प्रबंधकों को भगवन के भक्तों की कोई चिंता नहीं | भगवान् शंकर का एक नाम आशुतोष भी है जिसका अर्थ है तुरंत,आसानी से या थोड़े में खुश होनेवाले देव |क्या ऐसा देव भक्तों का अनिष्ट कर सकता है ? कभी नहीं ,कभी नहीं ...| क्या प्रबंधक और पूजारी साईं के परोपकार करने की सिद्धांत से और आशुतोष के गुणों से कुछ नहीं सीखा ?
कालीपद "प्रसाद "
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19 टिप्पणियां:
आपका हार्दिक आभार कुलदीप जी !
hamari laparwahi ka khamiyaja hamen bhugatna padta hai .....mausam aur prakriti ka mijaaj hamen kab samajh me aayega ? sarthak lekh ...
मुसीबत में है तो वे रुपये भक्तो का काम हीं आना चाहिए 1 लेकिन हमारे यहाँ धर्म का मर्म कोई नहिइ जानता सब धन के पीर हैं1
सुंदर प्रस्तुति , आप की ये रचना चर्चामंच के लिए चुनी गई है , सोमवार दिनांक - 4 . 8 . 2014 को आपकी रचना का लिंक चर्चामंच पर होगा , कृपया पधारें धन्यवाद !
मंदिर का चढ़ाव कौन कौन कैसे कैसे प्रयाग करता है ये कोई छुपी हुयी बात नहीं है ...
पर आज हम ही भगवान् का नाम खराब कर रहे हैं अपने स्वार्थ के चलते.... ऐसी किसी भी आपदा के लिए हम खुद ही दोषी हैं ....
आपका आभार आशीष भाई |
आ . दिगाम्बर नासवा जी आपने सही कहा कि हम ही इस आपदा के लिए जिम्मेदार हैं परन्तु इस हम में कुछ विशेष' हम ' इसके लिए जिम्मेदार हैं और वही पहरेदार हैं और चोर भी |
हमें अपनें कर्तव्यों प्रति अधिक सजग और संवेदनशील होना पड़ेगा, सुन्दर रचना
सार्थक एवं प्रासंगिक लेख. हमें असली वजहों को समझना होगा.
आपका आभार , मैंने अपना दोनों ब्लॉग को ब्लॉग प्रहरी में पंजीयन कर दिया | लोग इन नहीं हो रहा है |
प्रासंगिक लेख. ......
सार्थक एवं प्रासंगिक लेख
फुर्सत मिले तो .शब्दों की मुस्कुराहट पर आकर नै पोस्ट जरूर पढ़े....धन्यवाद :)
उम्दा लेख ..समसामयिक
सार्थक, प्रासंगिक, समसामयिक और संवेदनशील लेख ..
हम अपनी लापरवाहियों और कृत्यों पर ध्यान न देकर भगवान को दोष देने लगते हैं...बहुत सटीक प्रस्तुति...
सार्थक लेखन .... शायद कुछ की आँख खुल जाए ....
सादर
ssahi kaha aapne ....ishwer kyun kop karega yah to insan ke karam hi aise hain
मानव निर्मित आपदाऐं ।
प्रभु सब को सद्बुद्धि दें अपने थोड़े से फायदे के लिए लोग जानमाल न गंवाएं ..विकास भी सब सोच समझ के हो तो आनंद आये ..सुन्दर लेख ..एक बड़ी आपदा.. कहीं बाढ़ कहीं सूखा अब तो
भ्रमर ५
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